एक पंछी की आत्मकथा

एक पंछी की आत्मकथा, Hindi essay: आपको अचरज होगा कि पिंजड़े का एक पंछी भी अपनी राम कहानी सुनाना चाहता है। अरे भाई! क्या मैं कोई निर्जीव खिलौना हूँ? मेरे शरीर में भी एक धड़कता हुआ दिल है। मैं भी सुख-दुख का अनुभव कर सकता हूँ।

मेरा जन्म एक घने जंगल में हुआ था। मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी। उसने मुझे दाने चुगना और उड़ना सिखाया। पहली बार की उड़ान तो मुझे आज भी याद है। फिर तो मैं अपने साथियों के साथ आकाश में दूर-दूर तक उड़ने लगा। पेड़ो की पतली टहनियों पर बैठकर मैं झूलता था। मेरी आवाज से सुना आकाश गूंज उठता था। कितना निश्चिंत और सुखी जीवन था मेरा। उन दिनों को याद करता हूँ, तो आँखों में आंसू आ जाते हैं।

एक दिन एक चिड़ीमार उस जंगल में आया। वह मेरे रूप पर मोहित हो गया। उसने मुझे जाल में फंसकर पिंजड़े में कैद कर लिया। मैं बहुत छटपटाया। पर उस निर्दयी का दिल नहीं पसीजा। वह मुझे अपने घर ले गया। मैंने दो दिनों तक कुछ खाया-पिया नहीं। पर चिड़ीमार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसने पिंजड़ा उठाया और बाजार में जाकर मुझे बेच दिया। तब से मैं अपने दुखभरे दिन काट रहा हूँ।

एक पंछी की आत्मकथा जिसे सुनकर आपके आँख भर आयेंगे

मेरा मालिक बहुत दयालु है। घर के सभी लोग बहुत भले हैं। वे मुझे सुनहरे पिंजड़े में रखते है। खाने के लिए मीठे फल देते हैं। पर जंगल के उन फलों की मिठास इन फलों में कहाँ? बार-बार मुझे अपनी माँ की याद आती है। बचपन के साथियों की याद में मैं सदा छटपटाता रहता हूँ। वे मेरे साथ खेलते हैं। मेरे मुंह से “आइए”, राम-राम, सीता-राम आदि शब्द सुनकर वे बहुत खुश होते हैं। पर ये भोले बच्चे मेरे दुख की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

इंसान भी कितना निर्दयी है। उसे पंख नहीं है, फिर भी वह आसमान में उड़ रहा है। भगवान ने मुझे पंख दिए हैं, पर इंसान ने मुझे पिंजड़े में बंद कर मेरा उड़ने का अधिकार छीन लिया है। आज हर कोई अपने अधिकार मांग रहा है। क्या मुझे फिर से उड़ने का अधिकार मिलेगा? क्या मुझे यूँ ही घुट-घुटकर मरना होगा?