चतुराई से जान बची – पंचतंत्र की कहानी

Samajhdari se jaan bachi, panchtantra ki kahani.. दोस्तों क्या आप जानते है कि अपने सूझ-बुझ से हम बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना बड़े ही आसानी से कर सकते है, पर जब कठिनाई आए तो हमें डरना नहीं चाहिए। डर हमारे सोचने की शक्ति को कम कर देता है जिसकी वजह से अनुकूल परिस्थितियों में हम घबरा जाते हैं। बस हमे अपने मन और बुद्धि को अपने वश में करना है, और सारी परेशानियाँ ऐसे चली जाएगी जैसे गधे के सर से सिंघ। आज हम इसी विषय को एक पंचतंत्र की कहानी के माध्यम से समझेंगे।

एक व्यापारी था। वह व्यापार के लिए दूसरे शहर में जा रहा था। रास्ते में उसे भूख महसूस हुई। किन्तु उस सुनसान रास्ते में जंगल ही जंगल था। ना तो कोई गाँव, ना कोई घर दिखाई पड़ रहा था और ना ही कुआँ या तालाब ही दिखाई पड़ता था। भूख, प्यास से वह बेचैन हो उठा। लेकिन पानी की तलाश में बराबर चलता रहा।

बूढ़ी दादी ने सत्तू देते समय कहा था – बेटे रास्ते में भोजन बनाने में बहुत तकलीफ होती है। यह थोड़ा सत्तू रख लो। इसे रास्ते में किसी तालाब या नदी के पानी से अपने अंगोछे में ही गुंथकर खा लेना। इसलिए व्यापारी के भोजन की समस्या तो हल थी, लेकिन बदकिस्मती से पानी नहीं मिल रहा था।

भूख-प्यास से अब उसका गला भी सुख चुका था। फिर वह चलते-चलते भी थक चुका था। पैर आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे। वह क्या करे, क्या न करे, यह समझ में नहीं आ रहा था।

लेकिन वह पानी की तलाश में चलता रहा। काफी समय बाद उसे एक नदी दिखाई दी, लेकिन उस चिलचिलाती धुप में नदी के किनारे कोई छायादार पेड़ नहीं था, जिसकी छाया में वह थोड़ा आराम कर सके।

तभी कुछ दूर पर उसे एक सेमर का पेड़ दिखाई दिया। वह उसी तरफ बढ़ता चला गया। सेमर की जड़े नदी में फैली हुई थी। व्यापारी नदी में हाथ मुंह धोने लगा। इतने में ही एक मगरमच्छ पानी में तैरता हुआ आया और व्यापारी का पैर पकड़कर खींचने लगा।

इस आकस्मिक विपदा से व्यापारी घबरा गया। मौत सामने देखकर उसके होश-हवाश गायब हो गये। मौत के मुंह से बचने के लिए उसका दिमाग तेजी से सोचने लगा। उसको अपने घर की याद आ गई। अपनी दादी का चेहरा याद आते ही उसकी आँखों में आंसू आ गये। वह न तो अब व्यापार को जा सकता है और न घर लौटकर दादी से ही मिल सकता है।

तभी उसके दिमाग में बचने की एक तरकीब सूझी। उसने अपनी चतुराई से मीठी आवाज में कहा –  है मगरमच्छ राजा, आप तो जल के प्राणियों में श्रेष्ठ माने गये हैं, जल में रहने वाले सभी जीव जंतु, आपको राजा मानते हैं। आपके बल का लोहा मानते हैं। समय पर आपसे सलाह भी लेते हैं। जल में बैठे आपके भोजन की व्यवस्था करते हैं, किन्तु आप एक गलतफहमी में फंस गये। मैं यहाँ अपना शरीर आपके हवाले करने आया था, ताकि आप अपना पेट भर सकें। लेकिन आप तो मेरा पैर पकड़ने की बजाय सेमर की जड़ पकड़े बैठे हैं। मगरमच्छ चौंका।

उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गया। वह उसके छलावे को समझ नहीं सका। वह अपनी बेवकूफी पर बड़ा लज्जित हुआ, बोला – ओह मैं भी वाकई मूर्ख हूँ। और फिर उसने तुरंत व्यापारी का पैर छोड़कर सेमर की जड़ को पकड़ लिया।

व्यापारी मगरमच्छ की बेवकूफी का फायदा उठाकर नदी से बाहर निकाल आया।

इसलिए दोस्तों कहा गया है मुसीबत के समय धीरज से काम लेने वाला व्यक्ति अपने प्राणों की रक्षा इसी तरह से कर सकता है। और ये सही भी है। हमेशा मुसीबतों का डट कर और समझदारी से सामना करना चाहिए।

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