लालच मौत का कारण – पंचतंत्र की कहानी

Lalach se jaan gai, Panchtantra ki kahani.. किसी गांव में हरदत्त नाम का एक ब्राहमण रहता था। वह स्वभाव में बड़ा दयालु और शांति प्रिय था। अगर कोई उसका अहित भी कर देता था, तो वह यह कहकर चुप हो जाता था कि इसके अन्याय की सजा इसे कोई और देगा।

गर्मी के दिन थे। वह अपने खेत में ही एक पेड़ की छाया में लेटा हुआ था। एकाएक उसने सांप के फुंफकारने की आवाज सुनी तो हडबडा कर उठ बैठा। उसने देखा कि पास ही एक काला सांप अपने बिल में फन फैलाये बैठा है।

हरदत्त बहुत डर गया। साहस करके वह वहां से उठा, पर उसने सोचा – यह तो बड़ा भला सांप है। पास लेटे हुए देखकर इसने मुझ पर हमला नहीं किया, न ही मुझे काटा। मुझे इसको दूध पिलाना चाहिए।

यही सोचकर वह घर जाकर एक कटोरी दूध भर लाया और सांप के आगे रख दिया।

दूसरे दिन हरदत्त जब खेत पर आया, तो उसने देखा कि सांप के बिल के पास खाली कटोरी में एक मुहर रखी है। हरदत्त खुश हो गया। वह निर्धन था, एक मोहर के रूप में उसे अच्छा धन मिल गया।

अब उसका हररोज का यही नियम बन गया कि वह सांप के कटोरे में दूध डाल जाता और रोज ही उसे मोहर मिल जाया करती। धीरे-धीरे हरदत्त की गरीबी मिटने लगी। उसने खेती के लिए कुछ और जमीन खरीद ली और थोड़ा-बहुत व्यापार भी फैला लिया। हर तरह से हरदत्त संतुष्ट था।

एक बार किसी काम से हरदत्त को दूसरे गांव जाना पड़ा। जाते हुए वह अपने बेटे से ये कह गया – सांप को दूध पिलाना न भुलला।

अगले दिन हरदत्त के पुत्र ने सांप के कटोरे में दूध डाल दिया। दूसरे दिन जब वह वहां आया, तो देखा कि कटोरी में एक सोने की मुहर पड़ी है। उसने सोचा, इस सांप का बिल जरुर सोने की मुहरों से भरा पड़ा है। अगर इसे मार डाला जाए, तो यह सारा खजाना अपना हो जायेगा।

उसने एक डंडा लिया और उस पेड़ के पास पहुंचा।

सांप ने डंडे को लिए उसके बेटे को देखा। लड़के ने डंडे से सांप पर वार किया, पर वार खाली चला गया। क्रोध से फुंफकारता हुआ सांप फन उठाये आगे बढ़ा और उसने अपने विषैले दांतों से हरदत्त के बेटे को काट लिया।

हरदत्त का लड़का मारे दर्द के तड़पने लगा और देखते ही देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गये।

जब हरदत्त लौटा, तो उसने सारी बात सुनने के बाद अपना सर पिट लिया। लेकिन अब क्या हो सकता था? बेचारा रो धोकर चुप हो गया। अगले दिन वह दूध लेकर फिर सांप के बिल पर जा पहुंचा।

सांप ने बिल के अन्दर से ही कहा – हरदत्त, हमारी तुम्हारी मित्रता अब टूट चुकी है। तुम्हारे बेटे के लालच से ऐसा हुआ है। अब प्रयत्न करने पर भी वह जुड़ नहीं सकती। आगे से यहाँ कभी मत आना। ना मैं तेरे पुत्र के डंडे की चोट भूल सकता हूँ, न तू अपने पुत्र की मृत्यु की बात भूल सकता है। इसलिए तेरा मेरा यह मेल आगे नहीं चल सकेगा। अब तुम यहाँ से चले जाओ।

बेचारा हरदत्त बेटे की मूर्खतापूर्ण लालच के कारण अपने पुत्र और एक अच्छे मित्र से वंचित हो गया।

हरदत्त फिर कभी उस बिल की और नहीं गया।

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