वफादार बाज – पंचतंत्र की कहानी

Wafadar baaj, Panchtantra ki kahani.. राजा जयचन्द्र को शिकार का बहुत शौक था। उन्होंने शिकार में दिशा ज्ञान के लिए एक बाज पक्षी पाल रखा था। बाज राजा का बहुत ही विश्वासपात्र था। वह जहाँ भी शिकार को जाते, बाज को साथ ले जाते थे।

एक दिन राजा शिकार करने गए हुए थे। शिकार का पीछा करते-करते बहुत दूर निकाल गए। तब राजा ने बाज से कहा – दोस्त, शिकार तो हाथ से गया, अब तो बहुत प्यास लगी है। पानी तलाश करो।

बाज उड़ गया। खोजते-खोजते वह परेशान हो गया, पर उसे कहीं पानी नजर नहीं आया, तो निराश होकर बाज राजा के पास लौट आया और बोला – राजन, मुझे कहीं पानी नहीं दिखाई दिया।

अब क्या होगा, मारे प्यास के हमारे गले में कांटे चुभ रहे हैं।

आप धीरज रखिए, मैं एक बार फिर कोशिश करता हूं। इतना कहकर बाज फिर एक ओर उड़ गया। उसके जाते ही राजा को इधर-उधर देखा तो एक पेड़ के पास पानी की बूंद टपकती देखकर बड़े खुश हुआ और अपना थैला खोलकर कटोरा टपकती बूंद के नीचे रख दिया।

पानी बूंद-बूंद करके कटोरे में भरने लगा। अभी कटोरा भरा ही था तभी बाज उड़ता हुआ उधर आ पहुंचा। उसने पानी के कटोरे की ओर देखा।

उसी समय राजा ने कटोरा उठाया और पानी पिने के लिए जैसे ही मुंह की ओर बढाया, बाज ने बड़ी तेजी से उड़कर पंजे से झपट्टा मारकर कटोरे का पानी बिखेर दिया।

यह देखकर राजा आगबबुला हो उठा – नमक हराम, तूने मेरे पिने के पानी को गिरा दिया, मैं तेरी बोटी-बोटी नोच डालूँगा।

इतना कहते ही राजा ने म्यान से अपनी तलवार खींचकर बाज की गर्दन काट दी। बाज कुछ समय तड़पकर शांत हो गया। राजा उदास सा वहीं बैठा गया। कुछ समय तक वह उलटे पड़े कटोरे की ओर देखते रहे।

अचानक एक विचित्र बिजली की तरह कौंधा। यह पानी पेड़ के ऊपर कहाँ से आ रहा है? और वह ऊपर नजरें उठाकर देखने लगे। ऊपर नजर पड़ते ही वह बुरी तरह से कांप गये, उन्होंने आँखों में भय और आतंक चमकने लगा। पेड़ की एक शाखा से एक भयंकर अजगर लिपटा हुआ था, उसके मुंह से राल के रूप में पानी टपक रहा था।

अब राजा को काटो तो खून नहीं। वह वहीं बैठकर बाज के धड़ को हाथों में उठाकर पछताने लगे। मगर अब पछताने से क्या? बिना विचारे वह अपने साथी को खो चुके थे। वह रोते-पिटते लौट आए। सच ही कहा गया है बिना विचारे कोई भी काम नहीं करना चाहिए।

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