बच्चें गलती करे तो क्या करना चाहिए?

अपने बच्चें को शिष्ट, सभ्य एवं व्यवहार कुशल बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि आप उसकी गलतियों को नजरअंदाज न करें। इस संबंध में वर्मा जी का एक उदाहरण मुझे मुझे याद आता है। एक शाम जब वर्मा परिवार मेरे घर पधारे तो उनका सात वर्षीय बेटा भी उनके साथ था। बहुत प्यारा और देखने में धीर-गंभीर।

हम लोग बातों में व्यस्त हो गए। जबकि बच्चे ने मेरी छड़ी उठाई और paper weight को ball बनाकर क्रिकेट खेलने लगा।

वर्मा जी उसकी प्रशंसा करने लगे – हमारा बेटा बहुत अच्छा क्रिकेट खेलता है। चौका छक्का लगाना भी अब सिख गया है। हमें पूरा विश्वास है कि आगे चलकर ये बहुत अच्छा खिलाड़ी बनेगा।

बेटा क्या बनेगा इस विषय में वर्मा जी बेहतर जानते थे। मैं तो केवल इतना जनता था कि उनके बेटे ने मेरे बरामदे में रखे मेरे दोनों गमले तोड़ दिए थे। फिर भी वर्मा जी अपने बेटे की प्रशंसा किए जा रहे थे। तभी मेरे मुंह से चीख निकल गई।

बच्चे ने छक्का मारकर कमरे में रखा गुलदान तोड़ दिया था। वर्मा जी ने ये देखकर जोरों से हँसे और बोले, बहुत ही शैतान है हमारा बेटा, पूरे दिन शैतानी करता है, अभी दो दिन पहले की तो बात है, जब इसने अपने एक साथी के सिर पर bat मारा था।

बच्चे गलती करे तो क्या करना चाहिए? Bacche Ki Galtiyo Ko Kaise Sudhare?

बच्चें गलती करे तो क्या करना चाहिए?
Baccho ki mistake ko ignore na kare (Image Credit: Unsplash)

वर्मा जी के लिए यह गर्व की बात थी। जबकि मुझे उनके बच्चे के भविष्य स्पष्ट नजर आ रहा था। बच्चे को निश्चय ही बड़े होकर दादा बनना था।

इसके लिए दोषी कौन होंगे?

वर्मा जी।

उनका बेटा जो कुछ भी कर रहा था वह उनके लिए गर्व एवं खुशी की बात थी। अपने बच्चे की गलतियों को वे जानबूझकर अनदेखा कर रहे थे।

इसी संबंध में एक और उदाहरण सुकला जी का है। जनाब अपने 10 वर्षीय बच्चे से दुखी है। कहते हैं, उनका बेटा एक पल के लिए भी घर नहीं रुकता और हर समय मुहल्ले के बच्चों के साथ मार-पिट करता रहता है। वे ये भी बता रहे थे कि अब तो उसने अपनी जेब में छोटा सा चाकू भी रखना शुरू कर दिया है।

मगर वे अपनी भूलों को स्वीकार करते हैं।

वे कहते हैं कि बच्चे को खुद उन्होंने बिगाड़ा है। शुरू में जब उनका बच्चा शैतानी करता था तो वे खुश होते थे। बच्चा किसी बच्चे के मुंह पर थप्पड़ मार देता तो वे गर्व की बात समझते।

काश, उन्होंने बच्चे की छोटी-छोटी बातों को गंभीरता से लिया होता। साहब अब अपने बेटे हो डाँटते हैं, पिटते हैं पर मैं जनता हूं कि सांप तो निकाल चुका है और अब लकीर पीटने से कोई लाभ नहीं। बच्चा जब सुधर सकता था, तब उन्होंने उसे सुधारने का प्रयास नहीं किया।

बच्चे आमतौर पर शैतान होते हैं।

पर बच्चों की शैतानी को अनदेखा न करें।

उनकी बुराइयों की ओर ध्यान दें।

उसे प्यार से समझायें।

बच्चा अभी आपके हाथ में हैं। आप उसे जैसा चाहे बना सकते हैं लेकिन जैसे ही वह बाहर के वातावरण में साँस लेगा, तब वह किसी दूसरे के हाथ में होगा। उस स्तिथि में आपके लिए उसे राह पर लाना कठिन होगा।

बच्चे की बुरी आदतों को कैसे सुधारे?

1. बच्चों कि मांग पूरी करना

तुकमिज़ाज, मुहफट और एक हद तक बदतमीज़ हो चुके बच्चों की मुख्यत दो श्रेणियाँ है – पहले वे जिसके हर ख़्वाहिश पूरी की जाती है, और दूसरे वे जिनके पालन-पोषण बेहद कड़ाई और टोका-ताकि के बीच हुआ है।

दोनो ही स्तिथियाँ ग़लत है। आज कल बहुत से शहरी परिवारों के माता-पिता, दोनों कामकाजी होते है, जिसके चलते वे बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते।

इसकी पूर्ति वे उसकी हर माँग पूरी करके करना चाहते है या फिर थोड़े से समय में ही उस पर सारा ज्ञान, नसीहते और हिदायतें उदेलकर उसे ‘ परिपूर्ण ‘ बना देना चाहते है।

पहला तरीका बच्चे को जिद्दी वा असंवेदनशील बनाता है, तो दूसरा विरोधी। वजहें और भी है। बच्चा बिगड़ता है, तो इसकी जड़ें काफ़ी हद तक माता-पिता के व्यवहार और परवरिश के तरीके में होती है।

बच्चों का जिद्दी स्वभाव

2. माता-पिता कि सिख के कारण

आजकल बहुत सारे युवा दंपति अपने बच्चों को हिदायते देते है की पीटकर मत आना। उन्हे लगता है की इससे वे बच्चों को मजबूत बना रहे है। जमाना बदलने के साथ यह बदलाव भी आया है की पहले के सदगुण अब कमज़ोरी में बदल गये है।

एक महिला बड़ी चिंतित थी की उसका बच्चा बड़ा सीधा-सदा और अच्छा है। पता नही, बड़ा होकर कैसे चल पाएगा। जब आप बच्चों को अक्खड़ता सिखाते है, उसे बार-बार बताते है कि जितना ज़रूरी है, चाहे कैसे भी, तो फिर वह उम्मीद कैसे कर लेते है की वह आपकी ‘ सिख ‘ पर घर के भीतर नहीं चलेगा?

3. माता-पिता का व्यवहार

अपने बच्चों की बदतमीज़ी से परेशान युवा पीढ़ी का व्यवहार अपने से वृद्ध माता-पिता के प्रति कैसा है, यह भी देखे जाने की ज़रूरत है। पति-पत्नी आपस में कैसा व्यवहार करते है, एक-दूसरे को किस भाषा और कितनी उँची आवाज़ में जवाब देते है, इस बारे में भी सोचना चाहिए। बच्चा जो देखता है, वही तो सीखता है।

4. TV, mobile और कंप्यूटर के कारण

TV से भी बच्चों का व्यवहार बिगड़ता है। हालाँकि इसके लिए भी एक हद तक माता-पिता ही ज़िम्मेदार है। बच्चा कैसी फ़िल्मे, धारावाहिक और कार्टून देखता है, यह एक उम्र तक माँ-बाप के नियंत्रण में होता है। लेकिन वे ही उसे अपने साथ अपराध स्टोरी वाला कार्यक्रम और फ़िल्मे दिखाते है। उसे स्मर्टफ़ोने और टॅबलेट/कंप्यूटर पर हिंसक game डाउनलोड करने देते है। और बाद में सिर धुनते है की बच्चें की भाषा कैसे बिगड़ गई।

5. बुरी संगती

इस मामले में एक बाहरी कारण है – बुरी संगत और दोस्तों का दबाव। मित्रों के उकसाए जाने और मज़ाक उड़ाए जाने पर पर भी बच्चा अपनी माँगे मनवाने के लिए किसी भी तरह की भाषा बोल सकता है। जैसे – आपने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है, यह मेरी जिंदगी है या मुझे यह चाहिए तो बस चाहिए।

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सबकुछ परवरिश पर निर्भर

जो बच्चें अभी छोटे है, उनकी परवरिश को लेकर जागरूक रहना होगा, ताकि आगे चलकर उनके बिगड़ने के आसार कम हो।

  • कभी न कहे कि तुम बुरे बच्चे हो। इसके बजाय बताए की तुम तो अच्छे बच्चे हो, बस तुम्हारा यह व्यवहार अच्छा नहीं है। इससे वह उसे सुधारने के लिए प्रेरित होगा।
  • बच्चे की अच्छी बातों पर ज़्यादा ध्यान दे। ग़लतियों को पूरी तरह अनदेखी न करें, पर तारीफ के रूप में फीडबैक अच्छाइयों पर दे। पिता काम से वापस आए तो उन्हे पहले बच्चों की अच्छी बात के बारे में बताएँ, फिर ग़लतियों के बारे मे।
  • माता-पिता बच्चे के साथ गुणवत्तापूर्वक समय बिताए और ऐसे समय में उसे चीज़े या सिख देते रहने से बचे।
  • बच्चे को चीज़े भी दिलाए, उसकी माँगे भी पूरी करें, पर उसे यह एहसास भी दिलाते रहें की उसकी हर इच्छा पूरी नहीं हो सकती।
  • उसके खिलोने और वह टीवी, कंप्यूटर पर क्या देख रहा है, उसके असर को लेकर जागरूक रहें। उसे पुस्तक पढ़ना, खेलना, गाना-बजाना, डॅन्स जैसे के लिए भी मौके दे।
  • यह ध्यान रखें की यदि बच्चे को किसी बात के लिए माना किया जाए, तो घर के सारे सदस्य उस निर्णय पर एकजुट रहें। यह नहीं की पापा ने माना किया, तो दादा-दादी पुचकारने लगे।
  • बच्चे को विनम्रता सिखाए। इसके लिए धन्यवाद, सॉरी, प्लीज़ जैसे मैजिक वर्ड्स का इस्तेमाल माता-पिता खुद भी करें।
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