शादी और दहेज प्रथा से जुड़ी क़ानूनी जानकारी

दहेज शादी के रीति-रिवाजों से जुड़ी एक प्रथा है। कानून के तहत दहेज देने और लेने दोनों पर पाबंदी है। यह dowry prohibition act 1961 का कानून है। इस act के बावजूद रीति-रिवाज की आड़ में दहेज को लेकर महिलाओं पर कोई अत्याचार होते हैं। दहेज का मसला समय के साथ बढ़ता ही गया है।

समाज में अधिक पढ़े-लिखे लड़के का ‘ दहेज दाम ‘ भी अधिक होता है। लड़की के माँ-बाप बेटी की ख़ुशी और सुख के लिए अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज देने की कोशिश करते है। कर्ज में डूब कर भी वे इस मांग को पूरा करते है।

क्या आप जानते हैं कि हैसियत से अधिक दहेज देना भी गैर-क़ानूनी है ?

दहेज का लालच कई मामलों में पति और उसके घरवालों को अँधा बना देता है। शादी से लेकर शादी के बाद तक लड़की पर कई तरह के ज़ुल्म होते है। यहाँ तक कि बहू को जला कर मार डालने के किस्से भी देखने-सुनने को मिलते है। कई बार लड़की को इतना सताया जाता है कि वह आत्महत्या (suicide) करने पर मजबूर हो जाती है।

दहेज-निषेध कानून क्या कहता है ?

  • दहेज माँगना, देना-लेना, उसमें मदद करना क़ानूनन जुर्म है।
  • इसकी आड़ में बहू पर किया गया हर ज़ुल्म घोर अपराध है।
  • इन अपराधों की शिकायत होने पर सख्त क़ानूनी छानबीन होती है।
  • इन अपराधों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का नियम है। इसमें कई सालों की कैद और जुर्माना हो सकता है।

याद रहे

कानून का यह नियम बहुत कम लोगों को मालूम है कि दहेज में दी गई हर एक वस्तु पर लड़की का अधिकार होता है। ससुराल वाले इसे अपने अधिकार ने नहीं रख सकते। बहू अपनी मर्ज़ी से जिसे चाहे उसे दे सकती है।

शादी में दिए गए उपहार

परिवार वालों के लिए शादी एक ख़ुशी का मौका होता है। दोस्त और मित्रों के लिए यह ख़ुशी मनाने का मौका है। दूल्हा-दुल्हन को हर तरफ से उपहार मिलते है। ये उपहार ‘ दहेज ‘ में नहीं गिने जाते। उपहारों के लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं। इन्हें जानना जरूरी है।

दुल्हन और दूल्हे को अलग-अलग उपहार मिलते हैं और साथ भी।  कानून का नियम कहता है कि शादी के समय इन उपहारों की list बनाई जाए। इस list पर वर-वधु दोनों के signature ले लिए जाएँ।

इन उपहारों पर वर-वधु का बराबर हक है।

दहेज से जुड़े अपराध और सजा कानून

दहेज के अपराधों के संबंध में नीचे लिखे गए तीन कानून/नियम है –

  1. IPC rule 1860 – इस नियम से हमें दहेज से जुड़े दंडनीय अपराधों के बारे में जानकारी मिलती है।
  2. Indian witness act 1872 – यह कानून हमें कई अहम जानकर देता है। अपराध को साबित करने के लिए जिन बातों का ध्यान रखना होगा उससे जुड़ी जानकारी हमें मिलती है। इस नियम में सबूतों और गवाही के बारे में जानकारी दी गई है।
  3. सजा की कार्यवाही का नियम 1973 – इस नियम से हमें क़ानूनी कार्यवाही और सजा के नियमों के बारे में जानकारी मिलती है।

दहेज के अपराध की सजा

  • दहेज से जुड़े अपराधों के लिए और उसके घरवालों को कैद और जुर्माना दोनों की सजा हो सकती है। जिस तरह का उत्पीड़न होगा उसके मुताबिक सजा होगी। दहेज लेने देने के लिए 5 वर्ष की कैद और करीब 15000 रूपए जुर्माना हो सकता है।
  • अगर लड़की की हत्या की गई है तो उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है तो जिम्मेदार लोगों पर हत्या का मुकदमा चलेगा।
  • मौत के दोनों कारणों में पुलिस में रपट लिखवाना जरूरी है।
  • दहेज मांगने की सजा 6 महीने कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है।

पुलिस की कार्यवाही

  • थाणे (police station) में हत्या या आत्महत्या की रपट दर्ज होगी। जिस पर शक है उसके खिलाफ बयान लिखवाना होगा।
  • पुलिस इसकी सूचना मजिस्ट्रेट को देगी। इसके बाद घटना की छानबीन होगी।
  • पुलिस घटना स्थल पर जाकर जांच करेगी।
  • घटना की जगह पर मौजूद लोगों की उपस्थिति में रपट लिखी जाएगी। उनसे भी पूछताछ होगी।
  • पुलिस लाश की डोक्टारी जांच की कार्यवाही करेगी।
  • लिखित रपट के दस्तावेज़ पर पुलिस और जानने वाले लोगों के signature होंगे। जिसने शिकायत दर्ज करवाई है, उसके भी signature होंगे।
  • जांच के बाद रपट जिले के बड़े अफ़सर (ज़िलाधीश) को भेजी जाएगी।
  • आगे की कार्यवाही ज़िलाधीश तय करेंगे।
  • सबूत और गवाही के आधार पर खास ध्यान दिया जाएगा।
  • इस घोर अपराध के लिए कड़ी कैद की सजा का नियम है। यह कैद 14 साल तक की हो सकती है। इसका अपराधी जुर्माना देकर नहीं छूट सकता।

दहेज-उत्पीड़न की शिकायत कौन दर्ज करवा सकता है ?

  • जो महिला दहेज-मांग से पीड़ित हो।
  • पुलिस अफ़सर जानकारी मिलने पर शिकायत दर्ज कर सकता है।
  • समाजसेवी संस्थाएं पीड़ित महिला की तरफ से शिकायत लिखवा सकती है।
  • महिलाओं की समस्या से जुड़े सरकारी विभाग यह काम कर सकते है।
  • लड़की के माता-पिता या अन्य मित्र सदस्य यह कर सकते हैं।

शादी और क़ानूनी अधिकार- जाने क्या सही क्या गलत

शादी और क़ानूनी अधिकार- जाने क्या सही क्या गलत
विवाह अब सात जन्मों के नहीं रहे – पहले विवाह साथ जन्मो क्या जन्म-जन्मान्तर का रिश्ता होता था, लेकिन अब तो कई मामलो में सात महीने तक भी रिश्ता नहीं चलता।

वजह – पहले तलाक की बात जुबान पर लाना भी पाप समझा जाता था। बड़ी-बड़ी समस्या होने पर भी लोग रिश्ता निभाते चले जाते थे, बल्कि सम्मानित परिवार में तो इसे तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन नये कानून विवाहित युगल को आसानी से तलाक लेने में मदद कर रहे है।

पहले पति जब भी चाहे, पत्नी को से-क्स के लिए तैयार रहना पड़ता था। कोई ना-नुकुर नही। पत्नी पति की शारीरिक जरूरतों को पूरा करना अपना फर्ज मानती थी, लेकिन अब तो पति द्वारा से-क्स की इच्छा जाहिर करने पर पत्नी उसे पुलिस की धमकी देने लगी है और ये जताने लगी है कि वो हर समय से-क्स के लिए मौजूद नहीं रह सकती।

वजह – पत्नी की इच्छा के बगैर से-क्स को वैवाहिक बलात्कार का नाम दे दिया गया है।

लोक-लिहाज के नाम पर पहले पुरुष अपनी पत्नियों को घर की चारदीवारी के भीतर रखते थे, लेकिन अब इसे लोक-लिहाज नही, पत्नी के साथ जबरदस्ती और मनमानी माना जाता है। अब पति न ये तय कर सकता है कि पत्नी कितनी बार मैयके जाए और न ही उससे अपने मनपसंद का खाना बनाने की फरमाइश कर सकता है। क्या पता जब पत्नी इसे उत्पीड़न का नाम देकर उसे कानून के दायरे में खड़ा कर दे।

शादी और क़ानूनी अधिकार- जाने क्या सही क्या गलत

ऐसे कई कानून बने है। इन कानून का उद्देश्य था विवाहित संबंधों को सुरक्षा देना, उसे उत्पीड़न से बचाकर खुशहाल बनाना, लेकिन हो रहा है बिल्कुल उल्टा। इन कानूनों की वजह से रिश्ते टूट जाते है। नतीजा तलाक के मामले बढ़ रहे है, परिवार बिखर रहे है और विवाह का रिश्ता कमजोर पड़ रहा है।

मतलब साफ है, कानून अब घर की दहलीज में प्रवेश कर लिया है। सालों तक जिस कानून ने विवाहित मामलो में हस्तक्षेप करने के प्रति अनिच्छा जताई, वही अब इस संबंध में हस्तक्षेप करने लगा है और नतीजा हो रहा है बढ़ते तलाक।

बदला वक़्त भी जिम्मेदार

यह सच है कि समय बदल गया है और अब शादी का मतलब वो नहीं रहा जो पहले हुआ करता था। जब ये सिख देकर बेटी को विदा किया जाता था कि इस घर से डोली उठी है, अर्थी ससुराल से ही उठनी चाहिए। अब तो खुद लड़की के माता-पिता लड़की को कानूनी पैतरे बताते है अपने पति को सताने के लिए। ऐसे में बेटी कैसे साथ निभा पाएगी?

दूसरे, अब ये उम्मीद भी तो नहीं की जा सकती कि महिलाओ को सीता जैसा होना चाहिए, जो हर हाल में पति का साथ निभाने को तैयार हो। पति की आग्यकारी हो, कभी कोई शिकायत न करे, क्योंकि आज की महिलाएं पहले जैसी अनपढ़ और पति पे निर्भर नहीं है।

वे पढ़े-लिखे है और खुद पर होनेवाले अत्याचार का मतलब समझती है कि उसके साथ की जानेवाली कौन सी हरकत अन्याय, अत्याचार की श्रेणी में आती है, लिहाजा उसने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठना शुरू कर दिया। अपने लिए न्याय की गुहार लगाना शुरू कर दिया। मजबूरन उनके हित के लिए कानून बनाने पड़े। ये बात और है की कानून का अब दुरुपयोग होने लगा।

इसके अलावा पहले महिलाएं आर्थिक रूप से पूरी तरह पति पर निर्भर होती थी। पति से अलग होकर उनका जीवन कैसे कटेगा, ये सवाल उनके लिए अहम होता था, इसलिए वो रिश्ता निभाने के लिए मजबूर होती थी, लेकिन आज की अर्थव्यवस्था ने विवाह की इस मजबूरी को भी खत्म कर दिया है। आज महिलाएं खुद अच्छा-खासा कमा रही है और आत्मनिर्भर है।

कानून ने क्या सहूलियत दी है?

अब पति पत्नी के साथ यों संबंध के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकता, इस संबंध में मौखिक या भावनात्मक प्रतारण नहीं कर सकता।

  • अब पति अपनी पत्नी के चरित्र पर उंगली नहीं उठा सकता।
  • बेटा पैदा न करने या दहेज न लाने पर उसे अपमानित नहीं कर सकता।
  • वो उसके स्त्रीधन, गहने, कपड़े आदि का उसकी मर्जी के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकता।
  • से-क्स, पोर्नोग्रफी या अन्य आपत्तिजनक स्तिथि के लिए उसे मजबूर नहीं कर सकता।
  • जहां वो रह रही है, उस घर को वो बेच नहीं सकता। खुद का घर न होने पर उसे किराए के घर की व्यवस्था करनी होगी।
  • उसकी संपत्ति में पत्नी भी हिस्सेदारी होगी।
  • अब वो पत्नी की नौकरी करने या नौकरी छोड़ने के लिए विवश नहीं कर सकता।

क्या है हिन्दू विवाह कानून? Hindu Marriage Act in Hindi

विवाह का भी कानून है, अगर आप हिन्दू हो तो इस विवाह कानून पर जरा गौर करें।

  • Hindu Marriage Act 1955 के section 7 के मुताबिक, शादी हिन्दू धर्म के अनुसार, पूरे रीती-रिवाज से होनी चाहिए।
  • Section 8 शादी के registration के बारे में बताता है। State Government के बनाए नियमों के मुताबिक सबूत के लिए शादी का registration आवश्यक है।
  • Section 14 के मुताबिक, हिंदुओं में शादी के बाद एक साल तक कोई भी तलाक (divorce) के लिए अदालत में अर्जी नहीं दे सकता है।
  • Section 15 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति तभी दोबारा शादी कर सकता है, जब अदालत ने उसका तलाक स्वीकार कर लिया हो। अगर अदालत में तलाक का case चल रहा है, तो उस दौरान भी वह दोबारा शादी नहीं कर सकता।
  • Section 24 के अनुसार यदि applicant की salary कम है, चाहे वो पति हो या पत्नी, जो खर्च afford कर सकता है, उसे अदालत में case का ख़र्चा उठाना पड़ेगा। यही बात respondent पर भी लागू होता है।
  • Special Marriage Act 1954 के मुताबिक, शादी के लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 से कम नहीं होनी चाहिए।
  • दोनों एक ही माता-पिता की संतान न हों।
  • शादी के बाद उसका written notice district के marriage officer को देना जरुरी है।
  • Marriage officer सारी formality पूरी करने के बाद ही new married couple को marriage certificate देता है।
Scroll to Top