बच्चों को कब डांटना चाहिए? कब गुस्सा करें?

उस दिन श्रीमान शर्मा के घर मेहमान आए थे। खाने के समय उनके बेटे से पानी का गिलास टूट गया। शर्मा जी ये देखते ही गुस्सा हो गये और उन्होंने बच्चे को दो थप्पड़ मार दिये, साथ ही कुछ अप शब्द भी कहे। बच्चा गुस्सा होकर कमरे से बाहर चला गया।

लेकिन शर्मा जी का गुस्सा फिर भी शांत न हुआ और वे मेहमान के सामने देर तक अपने बच्चे की बुराई करते रहे।

कुछ देर बार मेहमान चले गये। श्रीमती शर्मा ने जब बच्चे से खाना खाने का आग्रह किया तो बच्चा आक्रोश से चीख पड़ा –

‘पानी का गिलास जानबूझकर नहीं गिराया था, हाथ से छूट गया था। हमने जानबूझकर कोई गलती नहीं की थी। फिर भी पापा ने हमें थप्पड़ मारा। Uncle और aunty के सामने हमें जंगली, गंवार और नालायक कहा। कितनी insult की पापा ने मेरी।

क्या सोचा होगा uncle और aunty ने हमारे बारे में, यही न कि सोनू अच्छा बच्चा नहीं है। वह जंगली है। गंवार है।’

कहते हुए बच्चे के होठों से सिसकियाँ फुट पड़ी। श्रीमती शर्मा ने यह देखकर बेटे को हृदय से लगा लिया।

मैं समझता हूं, बहुत से परिवारों में ऐसे उदाहरण आपने देखें होंगे। बात साधारण सी है देखकर अनदेखी कर दी जाती है। किंतु नहीं, यह बात साधारण नहीं।

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बच्चे को दूसरों के सामने, विशेष कर उन लोगों के सामने, जिन पर आप अपने परिवार की शिष्टता, सभ्यता एवं योग्यता का रौब जमाना चाहते है, भूले से भी कोई गलती की और इससे आपके अहंकार को चोट लगी।

आपको लगा, बच्चे ने तो आपकी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी है। आप तो दूसरों को यह बताना चाहते है कि हमारा बच्चा कितना योग्य एवं शिष्ट है। फिर आप बच्चे को डांटते हैं।

डांटने में भी आपका अहंकार छिपा है। आप दूसरों को बताना चाहते हैं कि हमारे बच्चे पूरी तरह से नियंत्रण में हैं। साथ ही बच्चों में इतना साहस नहीं कि वे बिगड़ सकें।

यह तो था, ऐसे माता-पिता का मनोविज्ञान, जो बच्चों को डांटते समय केवल अपने विषय में सोचते हैं। लेकिन संभवत: ऐसे माता-पिता ये नहीं जानते कि आत्म-सम्मान (self respect) की भावना बच्चों में भी होती है, और जब आप उन्हें दूसरों के सामने डांटते हैं तो उनके अहंकार को भी चोट लगती है।

बच्चे को ज़रुर डांटिये, मगर अकेले है।

बच्चों को कब डांटना चाहिए? कब गुस्सा करें?

बच्चे को दूसरों के सामने डांटेगे तो उसमें हिन भावना उत्पन्न होगी। वो खुद को अपमानित महसूस करेगा और समझेगा कि माता-पिता उसे हर प्रकार से अयोग्य समझते हैं।

माता-पिता का ऐसा व्यवहार निश्चय ही बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन लाएगा और वह भी हो सकता है कि अपने आपको अयोग्य समझते-समझते और हमेशा अपने आपको अयोग्य समझेगा, जब वह किसी भी क्षेत्र में सफल न हो सकेगा।

बच्चे को सफल एवं व्यवहार कुशल बनाने के लिए आवश्यक है कि आप उनकी भावनाओं को समझें।

  • उसके आत्म सम्मान को समझें।
  • उसके स्वाभिमान की रक्षा करें।
  • दूसरों के सामने अयोग्य न कहें।

इसी सम्बन्ध में अपने मित्र का उदाहरण मुझे याद है। उनका बच्चा दिन भर प्रसन्नचित्त रहता है किंतु ज्यों ही पिता के घर लौटने का समय होता है, एकाएक वह उदास हो जाता है।

ऐसा नहीं कि वह अपना homework पूरा नहीं करता और ऐसा भी नहीं कि वह दिन भर शैतानी करता है।

एक बात और, जो मैंने नोट किया। घर में बाहर का कोई व्यक्ति आता तो बच्चा घर के एक कोने में चुपचाप books लेकर बैठ जाता।

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एक दिन बच्चे से बातें करने का अवसर मिला तो मैंने उनसे प्रश्न किया – बेटा, तुम हमेशा सहमे-सहमे से रहते ही, क्या बात है?

पापा से डर लगता है।

पापा तुम्हें डांटते हैं।

हर समय, बिना किसी वजह के। मैं उनके सामने खाली नहीं बैठ सकता। किसी से बातें नहीं कर सकता। खेल नहीं सकता। घर में मेहमान आते हैं और मैं उनसे बातें करना चाहता हूं तो पापा तुरंत डांट देते हैं। कहते हैं, जाओ books लेकर बैठो।

इस उदाहरण में व्यवहार से संबंधित कई बातें छुपी हैं। लेकिन मुख्य बात यह है कि आपके डांट से बच्चे के अंदर एक अनजाना भय उत्पन्न कर दिया है और बच्चा अपने माता-पिता को circus का ring master की भांति समझ बैठा है। इस प्रकार के माता-पिता यह भूल जाते हैं कि ऐसा करके वे अपने बच्चे के साथ कितना अन्याय कर रहे हैं।

ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।

ऐसे बच्चे जीवन भर भीरु (shy) बने रहते हैं।

बच्चों की डांटिए अवश्य, लेकिन अकारण और दूसरों के सामने नहीं। ध्यान रखिए, आपकी तरह बच्चा भी दूसरों के सामने अपना सम्मान चाहता है।

बच्चों पर कब गुस्सा करना चाहिए? बच्चों का चिड़चिड़ा स्वभाव

आज के इस युग में ऐसे बहुत कम व्यक्ति हैं, जो तनाव मुक्त जीवन जीते हैं। अन्यथा जिसे देखिए वही समस्याओं से घिरा है। और ये समस्याएं ही तो होती है जो इंसान को तनावपूर्ण रखती हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि आपके समस्याओं के करण पैदा हुई गुस्से को अपने बच्चों के ऊपर उतारे। आप अपने काम से लौटते हैं। ठीक है, थके हारे होते हैं। न जाने कितनी से जूझे हैं आप पूरे दिन।

लेकिन आपके नन्हे मुन्ने, आपके प्यारे बच्चे। वे तो आप से प्यार-दुलार की आशा लगाए बैठे हैं। जबकि आपका व्यवहार होता है उनकी आशाओं के विपरीत।

बच्चे अपने होंठो पर मुस्कान और आँखों में प्रसन्नता की चमक लिए आपके निकट आते हैं और आप!

‘तुम लोग आराम से नहीं बैठ सकते’
‘आते ही सर पर सवार हो जाते हो’
‘जाओ, बाहर खेलो’
‘इतना भी नहीं देखते कि दिन भर files में सर खपाया है। थका-हरा लौटा हूं।’

बच्चे सहम जाते है। होठों पर फैली मुसकान ग़ायब हो जाती है। आँखों में चमकती आशा की ज्योति बुझ जाती है। बच्चे बाहर चले जाते हैं। अपने ध्यान से देखा उन्हें, उनकी निराशापूर्ण और उदास आँखों में झांकने का प्रयास किया आपने, कभी समझने की कोशिश की उनके दर्द को?

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इसका जवाब होगा- कभी नहीं?

इसका करण यह है कि आप तनाव में हैं, समस्याओं से घिरे हैं। आप इतने उलझे हुए हैं कि आपको अपनी उलझनों के अलावा और कुछ भी नजर नहीं आता। आप जानते हैं, ऐसा करके आप अपने बच्चों के साथ कितना बड़ा अन्याय कर रहें हैं। आप जानते हैं, आपका ये व्यवहार बच्चे को चिड़चिड़ा बना सकता हैं?

जरा सोचिये-

आपका बच्चा इस संसार में अभी-अभी आया है। समस्याएं, तनाव और उलझनें क्या होती हैं, वह नहीं जनता। क्योंकि अभी उसके सामने न तो कोई समस्या है, न तनाव और न ही कोई उलझन है। पूरी तरह तनाव मुक्त है वह।

लेकिन यह व्यवहार उसे तनावपूर्ण बना सकता है। वह सोच सकता है कि जिंदगी में कुछ समस्या भी होती है और उलझनें भी हो सकती हैं। बच्चा इन सब बातों पर गहराई से सोच सकता है। यह सोच उसकी सफलता में बाधक बन सकती है।

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इसलिए अपने आपको बदलिए। अपनी problems घर से बाहर छोड़िए। निकाल फेंकिये अपने mind से तमाम उलझनों को और अपने बच्चों से स्नेह से मिलिए। उन्हें आपका स्नेह चाहिए, आपका दुलार चाहिए।

हमारे बगल के घर में शर्मा जी रहते है, मैंने देखा है शर्मा जी जब अपने काम घर लौटते है तो जैसे मानो ख़ुशियों के फूल खील उठे हों। शर्मा जी अपने बच्चों से बड़े ही स्नेह से मिलते है। उनकी कुशलता पूछते हैं और बच्चों के साथ चाय पीते हैं।

आप सोचते हैं, शर्मा जी खुश होंगे। कोई उलझन, कोई समस्या न होगी उनके सामने। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है। मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जनता हूं। अनेक समस्याएं हैं उनके सामने। हमेशा तनाव में रहते हैं। पर घर में घुसते ही न जाने उनका तनाव कहा चला जाता है।

एक दिन मैंने शर्मा जी से इस विषय में पूछा- ‘आप पूरे दिन व्यस्त रहते हैं, आपकी समस्याएं मुझसे छुपी नहीं है। लेकिन इतनी समस्याओं के बावजूद बच्चों से इतना स्नेह?’

‘एक अच्छे पिता का यही ज़िम्मेदारी होता है।’

और आपकी उलझने? आपकी समस्याएं?

समस्याएं मेरी हैं, उनका समाधान मुझे खोजना है। उलझने मेरी हैं और उन्हें केवल मुझे सुलझाना है। बच्चों का मेरी समस्याओं और उलझनों से कोई संबंध नहीं। फिर मैं अपने साथ-साथ उन्हें तनावग्रस्त क्यों बनाऊ? अपनी समस्याएं उनके सामने क्यों जाहिर करूँ?

ठीक कहा था शर्मा जी ने।

बच्चों को व्यवहार- कुशल बनने के लिए ये भी जरूरी है कि आप अगर गुस्से में भी हैं, तो अपना गुस्सा बच्चों पर न उतारे और उन्हें भरपूर स्नेह दें।