रूपया बोलता है- निबंध

जी हाँ, मैं रूपया हूं। मैं आदमी के दिमाग की उपज हूं। मेरा जन्म होने के बाद मनुष्य के आर्थिक लेन-देन में क्रांति आ गई। चीजों को खरीदना-बेचना आसान हो गया। दुनिया ने मुझे तांबे, चांदी और सोने के रूप में देखा है। एक दिन की बादशाहत में एक मोची ने चमड़े के सिक्के भी चलाए थे। अब तो मैं कई धातुओं के मिश्रण से बनता हूं। आपने मेरे कागजी रूप को भी देखा होगा। मैं लक्ष्मी जी का प्रतिक हूं।

कहीं में पौंड, कही डॉलर, कहीं रूबल, कहीं येन तो कहीं फ्रांक कहलाता हूं। मेरी शक्ति अपार है। जिस देश का खजाना बड़ा होता है, उसी का दुनिया में प्रभाव रहता है। आज जिसे देखो वह अमेरिका जा रहा है, क्योंकि वहां के डॉलर की जबरदस्त माया है। दुबई, सिंगापुर, हांगकांग आदि की दौलत ने आज लोगों को दीवाना बना दिया है।

रिश्तों के बनने-बिगड़ने में मेरा बहुत बड़ा हाथ है। जिस पर में खुश रहता हूं, उसकी सभी खुशामद करते हैं। कवि लोग पूनम में चाँद को आकर्षक बताते हैं, पर मेरे आकर्षण ने उसे भी मात दिया है। मुझे पाने के लिए बड़े-बड़े युद्ध होते हैं। मेरा अतिशय आकर्षण इन्सान को हैवान बना देता है।

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बुराइयों को ढंकने में तो मेरा कोई जवाब नहीं। मेरे कारण काले को भी गोरे जैसा प्यार मिलता है। बादशाह तैमुरलंग लंगड़ा था, पर लाखों दो पौरवालो पर उसकी तूती बोलती थी। महाराज रणजीत सिंह को एक ही आंख थी, पर दो आँखोंवाले तमाम लोग उन्हें सिर नवाते थे। जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है, वैसे ही मेरे स्पर्श से अवगुण भी गुण में बदल जाते हैं।

रूपया न होने पर व्यक्ति को कोई नहीं पूछता। परिवार में उसकी इज्जत नहीं रहती। पड़ोसी उसे सम्मान नहीं देते। सगे-संबंधी भी उससे दूर रहते हैं। सबको यही डर रहता है कि कहीं यह रुपये न मांग बैठे।

मेरी मानो तो तुम भी रुपये जोड़ना सीखो। फिर रुपयों की मदद से और रुपये कमाओ और दौलतमंद बनो। यह मत भूलो कि मेरे बिना और कोई तुम्हें सच्चा आनंद नहीं दे सकता। यह पंक्ति मेरा सही महत्व दर्शाती है –

बाप बड़ा न भैया। सबसे बड़ा रुपैया।

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