बच्चा गिराना कब जायज माना जाता है?

बच्चा गिराना कब जायज माना जाता है? Baccha girane ka legal tarika kya hai? महिलाओं को कुछ ऐसे भी अधिकार हासिल हैं जो उनके स्वास्थ्य से जुड़े है। इन्ही में से एक अधिकार गर्भपात (बच्चा गिराना/abortion) महिलाओं के लिए है। कभी-कभी गर्भवती महिला की doctor check-up में पता चलता है कि माँ या बच्चे को खतरा है। इसमें गर्भवती औरत की मौत भी हो सकती है।

ऐसी स्तिथि में डॉक्टर गर्भपात की इजाज़त देता है। कानून के तहत गर्भवती महिला abortion करवा सकती है। इस कानून को ‘डॉक्टरी गर्भपात अधिनियम, 1971′ (Medical Abortion Act 1971) कहते है।

बच्चा गिरना है? बच्चा गिराने से पहले ये जा ले कि क्या है इसके क़ानूनी अधिकार, अगर बच्चा गिराना चाहते हैं तो क़ानूनी मायनों से सही होना चाहिए।

गर्भपात कब जायज माना जाएगा?

  • अगर माँ या गर्भ में भ्रूण की सेहत हो खतरा हो, या दोनों की जान को खतरा हो। शिशु के गंभीर रूप से विकलांग होने के आसार हों।
  • यदि बलात्कार की शिकार नाबालिग लड़की गर्भवती हो जाए।
  • अगर गर्भनिरोधक गोली या उपचार असफल हो जाए। अगर परिवार नियोजन के कारण इसकी जरुरत हो।
  • अगर महिला पागलपन की शिकार हो ।
  • अगर महिला बहुत की कमजोर हो, उसमे खून की कमी हो।

इसके अलावा

  • गर्भ-समापन गर्भवती महिला की मर्ज़ी पर होगा। इसके लिए किसी और व्यक्ति की इजाज़त ज़रुरी नहीं।
  • यह उपचार पंजीकृत अस्पताल और पंजीकृत डॉक्टर के हाथ से करना ही वैध है ।
  • Doctor सलाह के बाद बच्चा गर्भ के पहले 12 सप्ताह में ही गिराया जा सकता है। अगर बढ़ गया हो तो भी 20 सप्ताह से ऊपर गर्भपात खतरनाक हो सकता है।

गर्भपात कानून का दुरूपयोग

महिलाओं के health के लिए बनाए गए कानून का दुरुपयोग गैर-क़ानूनी है।

गर्भपात कानून का दुरुपयोग गैर-क़ानूनी कब माना जाएगा?

  • लापरवाही और नाजायज रिश्तों के कारण गर्भ ठहर जाए और ऐसी हालत में छिपकर गर्भपात करवाया जाए, तो वह गैर-क़ानूनी माना जाएगा।
  • नाजायज गर्भपात करते समय अगर लड़की की मृत्यु हो जाए, या महिला को गर्भपात करवाने से रोका जाए तो यह गैर-क़ानूनी है। यदि वह गर्भपात चाहती है, तो यह उसका अधिकार है।
  • नाजायज गर्भपात करने वाले doctor भी अपराधी है।
  • गर्भपात दाई से करवाने पर जान का खतरा हो सकता है। यह गैर-क़ानूनी भी है।
  • ज़बरदस्ती करवाया गया गर्भपात गैर-क़ानूनी है।

गर्भपात से जुडी एक और दुखद तथा गैर-क़ानूनी (non-legal) तस्वीर

हमारे समाज में बेटी और बेटे में भेद किया जाता है। बेटी के साथ जुड़े दहेज़ के मामले ने इस भेद को और गहरा बना दिया है। बेटे के पैदा होने के इन्तेजार में कई family में बेटियां का तांता लग जाता है।

इस सामाजिक अन्याय से बचने के लिए कई महिलाएं और परिवार भ्रूण जांच करवाते हैं। अगर गर्भ में लड़की होने का पता चला तो गर्भपात करवा लेते हैं। इस तरह गर्भ में ही ‘ बेटी ‘ की हत्या कर दी जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि बेटी को जन्म लेने का भी अधिकार नहीं।

इस तरह प्रसव-पूर्व भ्रूण के लिंग की जांच करवाना और बेटी होने पर भ्रूण का गर्भपात करवाना गैर-क़ानूनी है। इसमें से सारे लोग अपराधी है जिन्होंने गर्भवती महिला को गर्भ जांच करवाने पर मजबूर किया । वे सभी अपराधी हैं जिन्होंने लिंग का पता चलने पर ‘ बेटी ‘ का भ्रूण-अवस्था में गर्भपात करवा दिया।

वह महिला जो गर्भपात करवाती है, वह भी अपराधी है। इस आधुनिक समाज में भी बेटी और बेटे में भेदभाव करना बहुत ही दुखद और कलंक की बात है।

क्या आप जानते हैं कि इस गैर-क़ानूनी भ्रूण-गर्भपात के कारण भारत के कई कस्बों में लड़कियों की तादाद घट रही है? अगर देश के स्तर पर पुरुष और स्त्री के अनुपात को देखें तो आकड़े बताते हैं कि भारत में 1000 पुरुषों पर मात्र 933 स्त्रियां हैं। वजह साफ है। लड़कियों को पैदा ही नहीं होने दिया जाता। गर्भ में ही उनकी हत्या कर दी जाती है या फिर जन्म होते ही उन्हें मार दिया जाता है।

ये सभी व्यवहार गैर-क़ानूनी है। यह एक घोर दंडनीय अपराध है। गैर-क़ानूनी गर्भपात करने और करवाने वालों को सजा और जुर्माना हो सकता है।