उल्टे पाँव – अकबर बीरबल की कहानी

बादशाह अकबर अक्सर भेष बदलकर अपने राज्य में घूमा करते थे। वह जानना चाहते थे कि उनके शासन में प्रजा सुखी है या नहीं। एक दिन वह भेष बदले नगर में घूम रहे थे। जब वह बीरबल के घर के सामने पहुचे तो अचानक उनके मन में आया कि बीरबल तो फारस के बादशाह के बुलावे पर गए हैं, क्यों न उनके लोगों की परीक्षा ले ली जाए।

बीरबल के घर में उसकी पत्नी, एक पुत्री और एक पुत्र था। बादशाह बीरबल के घर पहुंचे। वे कुछ कह-सुनकर अपना रंग जमाना ही चाहते थे कि बीरबल का लड़का बोला – वे आए।

यह सुनकर लड़की ने कहा – वह तो नहीं हैं।

पत्नी मकान के भीतर से दोनों बच्चों की बात सुन रही थी, वहीं से बोली –  वह होते और नहीं भी होते।

बादशाह उनके मुख से निकले सांकेतिक वार्तालाप को नहीं समझ सके।

वे तो बीरबल के घर के लोगो की परीक्षा लेने आए थे, मगर ये दूसरा ही प्रश्न उनके सामने उपस्थित हो गया। वे उल्टे पाँव लौट गए।

अगले दिन दरबार में उन्होंने दरबारियों के सामने इन तीनों बातों को रखा और इसका मतलब पूछा, किन्तु लाख प्रयत्नों के बाद भी कोई इन तीनों बातों का मतलब नहीं बता सका।

दो दिन बाद बीरबल लौटे। बादशाह ने वही तीनों बातें उनसे पूछी।

बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया, यदि जहाँ, यह बात उस समय जान पड़ती है, जब किसी कुलीन के घर में कोई परिचित व्यक्ति यह जानते हुए भी चला जाए कि घर में ग्र्हस्वामी नहीं है। तभी घर वाले ऐसी बात करते हैं। यानि पहली बात वे आए का मतलब है कि बैल आए। दूसरी बात वह तो नहीं हैं का मतलब यह है कि उसके सिंघ नहीं हैं और तीसरी बात वह होते और नहीं वही होते का अर्थ है कि किसी बैल के सिंघ होते हैं और किसी के नहीं भी होते। बीरबल ने आगे कहा, इन तीनों बातों से यह शिक्षा मिलती है कि बिना ग्र्हस्वामी के घर में रहे उसके घर में कदापि न जाया जाए। यह तो हुई अपरिचित की बात, किन्तु यदि परिचित भी हठधर्मी से ऐसा करे तो उपस्थित घर वालों द्वारा ऐसी बातें कहकर उसे इशारे से आगाह कर देना चाहिए।

यह सुनकर बादशाह चुप हो गए।

उन्होंने अपनी मानसिक लज्जा को प्रकट नहीं होने दिया, पर मन ही मन बीरबल तथा उसके परिवार के लोगों की बुद्धि की प्रशंसा की।

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