निश्चय समझो, अगर तुम मांगोगे नहीं तो मिलेगा भी नहीं, चाहोगे नहीं तो दिया भी नहीं जायेगा और तलाश नहीं करोगे तो पता भी न पाओगे। ऐसा कौन है जो पिता से नहीं मांगता, कौन ऐसा है जो माता से नहीं चाहता, और ऐसा भी कौन है जो गुरु से याचना नहीं करता। वेदों को देखो – वह संपूर्ण प्रार्थनाओं से ही तो भरे हैं। अथर्वेद के द्वितीय काण्ड में साधक प्रार्थना करता है कि – ‘ हे प्रभु, हम ब्रह्मचारी रहें। आयु, बल और दृढ़ता की शक्ति हमें दीजिए, पापों से मुक्त कीजिए। ‘ ऐसी ही प्रार्थना चारों वेदों में की गई है।
जो मांगोगे, वही तो मिलेगा
यह संसार वास्तव में ईश्वर और जीव की लीला-भूमि है। वही पिता-पुत्र है, वही गुरु-शिष्य है। इनमें एक पूर्ण है, दूसरा अपूर्ण। अपूर्ण पूर्ण से मांगे, पूर्ण अपूर्ण को दे, तभी तो आनंद है। यह ठीक है कि पुत्र पिता से न मांगे तब भी देगा, परन्तु जो आनंद अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने को बड़ों से माँगने और उनके देने में होता है, वह न माँगने पर नहीं होता क्योंकि जीव मात्र के इच्छा पैदा होती है, और तभी वह मांगता भी है। उस इच्छा की पूर्ति से जीव से जीव प्रसन्न होता है।
बच्चा थोड़ा स्वयं उठने की क्रिया करता है तो माँ उसे तुरंत सहारा देती है, वह खड़ा होने लगता है। प्रथम बच्चे को कुछ इच्छा करनी होगी तब माँ उसकी पूर्ति करेगी। इसमें दोनों को आनंद है। इसलिए तुम हृदय से इच्छा करो, अच्छे बनने को कामना करो, सदाचारी रहने को प्रार्थना करो, विद्वान बनने को याचना करो, वह अवश्य देंगे। एक संत ने लिखा है कि मैं जब छोटा था, कुमार अवस्था में था, तो हृदय में कहता था कि प्रभु मुझे एक महात्मा बना दो, मुझे वह ज्ञान दो कि – ‘ मैं आपको जानू ‘। यह सब जानकर संसार को भी इस ज्ञान को दूँ, जिससे सबका दुख दूर हो फिर साथ ही संसार की भी प्रार्थना करता था कि ऐसा मिले वह मेरी सब प्रार्थनाएं सुनी गई और ऐसा तरकीब से पूरी हुई कि मैं ही आश्चर्य में आ गया कि यह सब कैसे हो गया ?
तुम्हारी सब प्रार्थनाएं सफल होंगे, यदि हृदय से करोगे, प्रभु से करोगे। जब तक कोई प्रार्थना केवल मुख से होता है और हृदय उसमें सम्मिलित नहीं होता, तो वह अधूरी रहती है। दूसरी वह अंधी प्रार्थना भी है, कि हम कह रहे हैं, परन्तु वहां कोई सुनने वाला ही नहीं। जब तुम हृदय से प्रार्थना करोगे और अपने गुरु या ईश्वर के सामने करोगे, वह सोचकर करोगे कि वह सुन रहे हैं, तो अवश्य पूरी होगी। फिर भी कमी रहे, तो एक दिन रोकर प्रार्थना करो। तुम्हारे रुदन को गुरु या ईश्वर सह नहीं सकेंगे, अवश्य सुनेगे और कृपा करेंगे।
तुम देखो – जितने ये महापुरुष हुए है, सब प्रभु से प्रार्थना ही करते थे। हमने पहले सोचा था कि महात्मा संभवतः वही है, जो गृहस्थी त्याग के, जंगल में रहते हैं परन्तु जब कुछ समझ में आया तो बड़े-बड़े राजाओं को महात्मा पाया, बड़े से बड़े अधिकारियों को साधू पाया, जिनके घर में अनंत संपत्ति थी कई पत्नियाँ थी, बहुत सी संतानें थी, दास-दासियाँ थी। पर वह कैसे थे, यह उनको समीपता से देखा, वह थोड़ा एकान्त लेते थे, रात्रि में अकेले बैठकर ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि ‘ है प्रभु मुझे शरण दीजिए, शक्ति दीजिए, ज्ञान दीजिए कि मैं इन सब में आपको भूल न जाऊं, अपने कर्तव्य को पूरा करता रहूँ। ‘ बस वह कार्य को भी बड़ी सुगमता से और हँसते-हँसते कर जाते थे। महाराज हरिश्चन्द्र, राजा शिव, भगवान राम यह सब यही तो करते थे।
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