दया का फल – पंचतंत्र की कहानी

पंचतंत्र की कहानी
नीलकंठ नाम का एक लकड़हारा था। वह बड़ी मेहनत से लड़कियां काटकर लाता। उन्हें बेचकर अपना और अपनी पत्नी का पेट पालता था।

एक दिन वह लड़कियां काटकर घर लौटने वाला था, तभी उसकी नजर रंग-बिरंगी मैना चिड़िया पर पड़ी। नीलकंठ ने देखा मैना के शरीर पर कई छोटे-छोटे घाव थे। वह घायल पड़ी थी। शायद किसी बड़े पक्षी ने उसे मारने की कोशिश की थी।

नीलकंठ को मैना की हालत पर तरस आ गया। उसने पत्तों का दोना बनाकर झरने से मैना को पानी पिलाया। मैना को होश आ गया, वह उसके घावों को साफ करने लगा। मैना शांत थी, तभी बादल घिर आए।

नीलकंठ सिर पर लड़कियों का गट्ठर रखकर घर लौटने लगा। घायल मैना को उसने कंधे पर बैठा लिया।

घर पर नीलकंठ की पत्नी ने मैना की खूब सेवा की। जब वह उड़ने लायक हो गई। नीलकंठ उसे जंगल में छोड़ आया, लेकिन मैना फिर नीलकंठ के घर लौट आई। नीलकंठ ने कुत्ते-बिल्लियों से उसकी रक्षा के लिए लकड़ी का एक पिंजड़ा बना दिया। अब मैना वहीं आराम से रहने लगी।

दिन में वह घूमती, रात को अपने पिंजड़े में आराम करती।

एक दिन शाम को जब मैना लौटी, तो उसकी चोंच में एक मोती दबा था। उसने वह मोती लाकर नीलकंठ के हाथों में रख दिया।

नीलकंठ मोती के बारे में कुछ नहीं जानता था। उसने अपने दोस्त गंगुआ को मोती दिखाया, तो वह चौक पड़ा। गंगुआ बड़ा मक्कार आदमी था। उसने बड़े सस्ते में वह मोती नीलकंठ से खरीद लिया।

नीलकंठ ने मोती की बिक्री से प्राप्त धन में मैना के लिए अच्छे किस्म के चावल खरीदे।

दिन गुजरते रहे। मैना तीन-चार दिन में एक बार मोती जरूर ले आती।

गंगुआ वह मोती बड़े सस्ते में खरीद लेता। नीलकंठ ने मैना द्वारा मोती लाने की बात गंगुआ से अब तक गुप्त रखी थी।

उसने गंगुआ से कहा तह – मैं ये मोती समुद्र में से लाता हूं।

एक दिन नीलकंठ की पत्नी ने गंगुआ की पत्नी से मैना द्वारा मोती लाने की बात कह दी।

सुनकर गंगुआ की नींद हराम हो गई।

गंगुआ सुबह ही सुबह नीलकंठ के पास गया और बोला – नीलकंठ तुम मैना को बेचोगे?

नहीं मित्र, मैं ऐसा नहीं करुंगा।

देख लो, मैं मैना को एक हजार रूपए में खरीद सकता हूं।

मगर मैं तो किसी भी कीमत पर मैना को बेच ही नहीं सकता, मैना मुझे अब तो औलाद के समान प्रिय है।

देख लो, एक हजार रूपए कम नहीं है नीलकंठ।

नीलकंठ ने कहा – मित्र, मैं मैना को नहीं बेच सकता।

गंगुआ अपना सा मुंह लेकर लौट गया, किन्तु वह शांत बैठने वाला नहीं था।

उसी रात उसने मैना को चोरी करने का निश्चय किया। इसी इरादे से वह नीलकंठ के घर में घुसा। नीलकंठ की नींद खुल गई। वह पिंजरा लेकर भागते हुए गंगुआ के पीछे दौड़ा और उसकी टांग पकड़कर गिरा दिया।

इसी आपा-धापी में मैना का पिंजरा खुल गया। उसने अपनी चोंच के प्रहार से गंगुआ का चेहरा लहूलुहान कर दिया। गंगुआ जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर भागा।

अगली सुबह जब नीलकंठ जंगल में जाने की तैयारी कर रहा था, तभी राज्य के राज्यपाल तोमर के नौकर उसके घर आ धमके।

वे उसे गंगुआ की हत्या के प्रयास के आरोप में पकड़ने आए थे।

नीलकंठ को गंगुआ पर बड़ा क्रोध आया। वह मैना की चोरी सफल न होने पर हत्या जैसा बड़ा इल्जाम उस पर लगा बैठा था।

नीलकंठ ने राज्यपाल के सामने अपनी लाख सफाई दी, लेकिन वह न माना, उसने नीलकंठ को फांसी की सजा सुना दी।

अगले दिन नीलकंठ को फांसी पर चढ़ाया जाने वाला था। वह रात के समय काल कोठरी में बैठा अपने भाग्य को रो रहा था।

तभी पंखों की फड़फड़ाहट से उसका ध्यान टूटा, उसने देखा वह मैना थी।

नीलकंठ मैना को देखते ही अपना दुख भूल गया। मैना नीलकंठ के पास आई। उसके हाथ पर तीन-चार मोती रख दिये। तभी कारागार का चौकीदार वहां आया, जब उसने नीलकंठ के पास मोती देखा, तो उसे लालच आ गया।

उसने नीलकंठ से मोती मांगे, परन्तु नीलकंठ ने साफ इंकार कर दिया। चौकीदार ने उसके मोती छिनने के लिए कोठरी का ताला खोला और अन्दर घुस आया।

नीलकंठ यही चाहता था, उसने चौकीदार को नीचे पटक दिया। उसका मुंह बंद कर हाथ-पैर बांध दिये, फिर कोठरी से भाग गया।

अंधेरे में वह अपने घर की ओर भागता जा रहा था। मैना बोल-बोलकर रास्ता बताती, उसके साथ उड़ रही थी। घर पर नीलकंठ की पत्नी रो रही थी।

नीलकंठ को वापस आया देख वह खुश हो गयी। नीलकंठ ने जल्दी-जल्दी जरूरी सामान एक पोटली में बांधा और शहर छोड़कर भाग चला।

मैना अब भी रास्ता बताती चल रही थी। दिन उगने से पहले वह शहर की सीमा से बाहर निकल आए थे।

भूख-प्यास के मारे पति-पत्नी का बुरा हाल था। मैना उनकी परेशानी समझ गयी थी। वह उन्हें एक नदी के किनारे ले गयी। पानी पिने के बाद नीलकंठ ने नदी पर गौर किया तो वह चकित रह गया।

रेत चमकीली थी। उसमें छोटे-छोटे स्वर्ण कण मिले हुए थे।

नीलकंठ ने एक कपड़ा बिछाकर मैना को कुछ इशारा किया। मैना समझ गई। वह अपनी चोंच से रेत से सोने के कण निकालकर कपड़े पर रखने लगी। जब ढेर सारे स्वर्ण कण एकत्र हो गये, तो तीनों आगे बढ़ चले।

आगे एक शहर था। वहां नीलकंठ ने स्वर्ण कण बेच दिये। उनसे काफी धन मिला। इसी धन से नीलकंठ ने अपना व्यापार शुरू किया। अब वह अपनी पत्नी तथा प्यारी चिड़िया ‘ मैना ‘ के साथ बहुत सुख से रहने लगा। और एक दिन नीलकंठ की पत्नी ने कहा – स्वामी, उस दिन अगर आप मैना पर दया न करते, तो हमें कभी यह दिन देखने को नसीब न होता।

हाँ, तुम सच कहती हो। दया का फल किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है

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