दर्पण झूठ न बोले – अकबर बीरबल की कहानी

बादशाह अकबर के राज्य में एक धूर्त महाजन किसी न किसी को प्राय गुप्त रूप से परेशान करता रहता था। लेकिन देखने में वह काफी भला लगता था। उसमें एक बड़ा ही विलक्षण गुण था, वह अपना बड़ी होशियारी से बदला लेता था। इस कारण उसके परिचित लोग भी दंग रह जाते थे।

एक बार उस महाजन ने किसी चित्रकार को अपना चित्र बनाने का हुक्म दिया। कुछ दिन बाद चित्रकार महाजन का बढ़िया सा चित्र बनाकर ले आया। चित्र देखकर उसने अपनी भावमुद्राएं तुरंत बदल ली।

चित्रकार ने उसके चेहरे से अपने चित्र का मिलान किये तो उसमें बहुत अंतर पाया। लाचार हो वह चित्र लेकर घर लौट आया। फिर जिस रूप में महाजन को देखा था, वैसा ही चित्र बनाने लगा। दो-तीन दिन बाद उसके नए रूप का चित्र तैयार हो गया।

वह उसे लेकर महाजन के घर पहुंचा। महाजन अपनी पूर्व प्रवृति के अनुसार फिर अपने चेहरे में परिवर्तन लाकर चित्रकार के सामने उपस्थित हुआ और चित्र में खामियां निकालने लगा। इस बार भी चित्रकार की समझ में उसकी चालाकी नहीं आई।

इस तरह कठोर परिश्रम से चित्रकार ने उसकी आक्रति के अनुसार एक और चित्र तैयार किया और फिर महाजन के पास गया। लेकिन उस धूर्त महाजन ने चित्र में कई खामियां बताई, जो कि वास्तव में गलत था।

अब चित्रकार की समझ में उसकी जालसाजी आ गई। चित्रकार ने अब अपना पारिश्रमिक माँगा तो महाजन ने चित्रकार को खरी-खोटी सुनते हुए कहा – जब तक तुम मेरी असली सूरत का चित्र बनाकर नहीं लाओगे, में एक पाई भी नहीं दूंगा।

चित्रकार ने सभी चित्र बड़े परिश्रम से बनाए थे। वह दुखी होकर घर वापस आया और सारा हाल अपने मित्रों से कह सुनाया। मित्रों ने उसे बादशाह अकबर के यहाँ फरियाद करने की सलाह दी। वह अपनी फरियाद लेकर बादशाह के दरबार में पहुंचा।

बादशाह अकबर ने चित्रकार से सारे चित्र मंगवाए और फिर महाजन को बुलवाया। महाजन आया तो बादशाह ने उसे सच-सच बोलने का आदेश दिया।

यह सुनकर महाजन बोला – सरकार, मैंने चित्रकार को अपने रूप में मुताबिक ही चित्र बनाने को कहा था, लेकिन इसने जितने चित्र बनाए हैं, वे सब मेरे चेहरे से मेल नहीं खाते हैं।

बादशाह की समझ में कुछ भी नहीं आया। जब उन्होंने अपने आपको न्याय करने में असमर्थ पाया तो उन्होंने यह मामला बीरबल को सौंप दिया।

बीरबल समझ गए कि इस महाजन को शक्ल बदलने की कला आती है, जिससे यह चित्रकार को तंग कर रहा है। इसकी और कई जालसाजियों की खबर भी उनको पहले से थी, इसलिए उन्होंने चित्रकार से कहा – देखो, महाजन की शक्ल जैसी हम देख रहे हैं, ठीक ऐसी ही शक्ल का चित्र जब तुम बनाकर हमारे पास लाओगे तो तुमको उसका पुरस्कार दिया जाएगा।

यह कहकर उन्होंने दोनों को जाने की आज्ञा दे दी। फिर बादशाह को सारा हाल सुना दिया। बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ।

अभी चित्रकार कुछ ही दूर गया होगा कि बीरबल ने अपना निजी सेवक भेजकर बुलवा लिया।

जब चित्रकार आया तो बीरबल ने उससे कहा – दो-तीन दिन ठहरकर तुम बाजार से एक बड़ा शीशा खरीद लाना, जिसमें वह महाजन अपनी शक्ल अच्छी तरह से देख सके। उस दर्पण को लेकर तुम उसके मकान पर जाना। उससे कहना-आपका असली रूप इस चित्र में प्रकट होता है। वह दर्पण में अपनी शक्ल देखेगा तो जैसा शक्ल होगी, वैसा ही रूप उसे दिखाई देगा। इस तरह वह परास्त हो जाएगा। अगर इतना होने पर भी वह बधाई और रूपए न दे तो हमारे पास आना। हम तुम्हें तुम्हारा पारिश्रमिक दिलवा देंगे।

यह सुनकर चित्रकार मन ही मन प्रसन्न होकर बीरबल की युक्ति की सराहना करता हुआ घर लौट गया। कुछ दिन बीत जाने के बाद चित्रकार एक बड़ा-सा शीशा बाजार से खरीदकर महाजन के पास आया और बोला – लीजिए आपका सर्वोत्तम चित्र तैयार है।

महाजन ने शीशा देखकर कहा – यह तो शीशा है। मुझे मूर्ख समझते हो? चित्र दिखाओ, वह कहाँ है?

यही तो आपके रूप का असली चित्र है। चित्रकार ने मुस्कुराते हुए कहा।

महाजन समझ गया कि बीरबल ने चित्रकार को ऐसी युक्ति बताई होगी। उसने सोचा, अगर में स्वीकार नहीं करूँगा तो मेरी खैर नहीं है। फिर भयभीत होकर उसने एक हजार रूपए उस चित्रकार को दे दिए।

रूपए लेकर वह चित्रकार बादशाह के दरबार में पहुंचा। बीरबल भी उस समय दरबार में उपस्थित थे। चित्रकार ने महाजन द्वारा चित्र स्वीकार करने और पारिश्रमिक प्राप्त हो जाने का सारा हाल कह सुनाया। बादशाह को बीरबल की युक्ति बहुत पसंद आई।

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