वैसे तो कही भी जाओ तो किसी के साथ जाओ। ये बात हमारे बुजुर्गों ने कही है। कहीं आपको दूर जाना है तो अपने साथ अपने किसी साथी को ले जाना उचित मान गया है, क्योंकि सफर में कोई परेशानी आए तो आपका साथी आपकी मदद कर सके। इसी बात को सही ढंग से समझाने के लिए मैं आज आपको एक पंचतंत्र की कहानी बताऊंगा। आइए सुनते हैं।
विजयनगर में ब्रह्मदत्त नाम का एक युवक रहता था। एक बार उसे किसी काम से सूर्यनगर जाना था।
उसकी माँ ने कहा – बेटे परदेश जा रहे हो। अकेले जाना ठीक नहीं, कोई न कोई साथी जरुर होना चाहिए। रास्ते में जंगल है, कई तरह के खूंखार जानवरों का डर रहता है। साथ में ले जाने के लिए कोई साथी ढूंढ लो।
ब्रह्मदत्त बोला – डरने की कोई बात नहीं माँ। मैं कोई बच्चा थोड़े ही हूँ, जो डरकर रुक जाऊं और फिर विजयनगर जाने वाला कोई यात्री भी नहीं है, मैं अकेला ही चला जाऊंगा।
ब्रह्मदत्त चलने लगा तो माँ ने उसे रोका और भागकर पास के तालाब से एक केंकड़ा पकड़ लायी। ब्रह्मदत्त की समझ में नही आ रहा था कि माँ आखिर क्या कर रही है।
तभी माँ बोल पड़ी – बेटा, और कोई नहीं है, तो इस केकड़े को ही साथ ले जाओ। बड़ों का कहना है कि सफर में कोई साथी अवश्य होना चाहिए।
केकड़ा मेरे सफर का साथी कैसे हो सकता है? कहते ही ब्रह्मदत्त ठहाका लगाकर हंस पड़ा।
परन्तु जब माँ को उसने नाराज होते देखा तो केकड़े को उठाकर कपूर की एक डिबिया में बंद कर लिया और डिबिया पोटली में डाल ली।
बहुत देर तक जब चलते-चलते ब्रह्मदत्त थक गया तो उसने सोचा कि थोड़ा सा आराम कर लिया जाए। वह रास्ते के किनारे एक पेड़ की छाया में सो गया।
कुछ देर बाद उसी पेड़ के खोखले में से एक सांप निकला। उसे कपूर की गंध आई तो ब्रह्मदत्त की पोटली में घुस गया और कपूर की डिबिया पर मुंह मारने लगा।
थोड़ी देर बाद डिबिया खुल गई। केकड़ा बाहर आ गया और उसने सांप का काम तमाम कर दिया।
जब ब्रह्मदत्त की आँख खुली तो उसने डिबिया के पास ही मरा हुआ सांप देखा। वह समझ गया कि केकड़े ने ही सांप को मार डाला है।
यह देख उसने मन ही मन सोचा – माँ ने सच ही कहा था कि मनुष्य को अकेले कभी परदेश नहीं जाना चाहिए। सफर का कोई न कोई साथी तो होना ही चाहिए।
यात्री का साथी चाहे निर्बल, डरपोक या बेकार ही क्यों न हो, फिर भी काम आता है।
तो दोस्तों कैसे लगी ये कहानी , हमे comment के माध्यम से जरुर बताएं।
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