हीरे की परख – तेनालीराम की कहानी

सर्दियों के दिन थे। सम्राट कृष्णदेव राय के पास उनके किसी पड़ोसी मित्र राज्य का दूत आया। चंदन की एक डिब्बी उन्हें सौपकर एक पत्र दिया। पत्र में लिखा था – चंदन की डिब्बी में रखा हीरा चीन के एक व्यापारी का है। मैं इसे खरीदना चाहता हूं, किन्तु मेरे राज्य में ऐसा कोई जौहर नहीं, जो इसकी जांच करके ठीक-ठीक मूल्य आंक सके। आपके दरबार में हीरों के कई पारखी हैं। कृपया इसको परखकर इसके मूल्य का मूल्यांकन कर दें।

सम्राट कृष्णदेव राय खुद हीरों के शौकीन थे। उन्होंने डिब्बी खोली, तो चौंधिया गये। डिब्बी में अंडे के आकार का बेहद खूबसूरत हीरा जगमगा रहा था। इतना बड़ा हीरा उन्होंने पहली बार देखा था।

सम्राट के दूत को अतिथिशाला में भेजा, राज्य के जौहरियों को बुलाया। हीरा दिखाकर उसका मूल्य पूछा। जौहरी भी उस हीरे को देख हैरान रह गये। देर रात तक जांच करते रहे। फिर बोले – महराज यह हीरा अनमोल है। इसके लिए दस लाख स्वर्ण मुद्राएँ भी कम है।

जौहरियों के उत्तर से कृष्णदेव राय संतुष्ट नहीं हुए। दरबार में आने पर वहां भी इस हीरे की चर्चा की। कई दरबारी ऐसे थे, जो हीरों की परख के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने भी इस हीरे की जांचा-परखा। आपस में देर तक विचार-विमर्श किया। मगर सही मूल्य का अनुमान न लगा सके। बोले – स्वर्ण मुद्राओं में इस आलौकिक हीरे का मूल्य आंकना सचमुच कठिन है।

सम्राट कृष्णदेव राय चिंता में पड़ गए। मित्र राज्य को क्या उत्तर भेजें। हीरे का सही मूल्यांकन हो ही नहीं पा रहा है। तभी तेनालीराम ने हीरे को देखने की इच्छा प्रकट की। मंत्री ने उसे मीठी सी झिड़की देकर कहा – जब हीरों के इतने बड़े पारखी तक इसका मूल्य नहीं आंक पाए, तो तुम क्या करोगे?

तेनालीराम ने शांत स्वर में उत्तर दिया – शायद मैं कुछ बात पाऊ।

कृष्णदेव राय ने मंत्री से हीरा उसे देने को कहा। हीरा तेनालीराम को दे दिया गया। तेनालीराम ने उसे हथेली पर रखकर एक क्षण के लिए देखा। फिर उसने ऊनी लबादे के अन्दर बाई ओर रख लिया।

सम्राट ने पूछा – हीरा लबादे के अंदर क्यों रखा?

दिल से इसका मूल्य पूछ रहा हूं अन्नदाता।  तेनालीराम लबादे के अंदर झांकता हुआ बोला। फिर हीरा निकालकर उसे सम्राट कृष्णदेव राय के सामने रखते हुए बोला – महाराज, मेरा दिल कहता है, यह हीरा एक कौड़ी का भी नहीं है।

दरबार में सन्नाटा छा गया। हीरे को जांच, उसे अनमोल बताने वाले दरबारी बिगड़ खड़े हुआ। बोले – महराज, तेनालीराम ने हमारे ज्ञान और अनुभव को चुनौती दी है। इससे कहा जाए कि या तो यह इस हीरे के बारे में अपने मूल्यांकन को सही साबित करे ये हमसे क्षमा मांगे।

कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा – तुम कैसे कहते हो कि इस हीरे का मूल्य एक कौड़ी भी नहीं? साबित करो या फिर क्षमा मांगो।

तेनालीराम, सम्राट और दरबारियों को ले एक अंधेरे कक्ष में गया। वहां उसने लबादे से निकालकर उस हीरे को मेज पर रख दिया। बोला – कोई बता सकता है, मैंने हीरे को कहाँ रखा है?

सब चुप रहे। किसी को भी मेज पर रखा हीरा दिखाई नहीं दिया।

तेनालीराम ने कहा – हीरा मेज पर रखा है, किन्तु अंधेरे के कारण दिखाई नहीं दे रहा है। क्या यह असली हीरा हो सकता है?

सम्राट सहित सारे दरबारी चकित हो उठे। तेनालीराम फिर बोला – मैंने यह देखने के लिए ही इसे लबादे के अंदर अंधेरे में रखा था कि उजाले में इतना चमकने वाला यह हीरा अंधेरे में कैसा चमकता है। मगर यह लबादे के अंदर जाते ही साधारण पत्थर बन गया। क्या इसी को हीरा कहते हैं।

अब और कुछ कहने-सुनने की आवश्यकता नहीं थी। दरबार में जाकर सम्राट कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की सुझबुझ की प्रशंसा की। मित्र राजा को लिख दिया कि चंदन की डिब्बी में रखा हीरा, हीरा नहीं, कांच का टुकड़ा है। इसे इस चतुराई से तराशा गया है कि आवश्यकता से अधिक प्रकाश परावर्तित कर सके।

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