बड़ो की बात मानो – शिक्षाप्रद कहानी

Bado ka kehna mano.. Baccho ki kahani.. शिक्षाप्रद कहानी – एक तालाब में तीन मछलियाँ रहती थी। मछलियों के बहुत से बाल-बच्चे भी थे। तीनों मछलियों में एक बहुत बूढ़ी थी। बूढ़ी मछली का कहना सब मछलियाँ बड़े प्रेम से मानती थी। मछलियों की जिंदगी बड़े सुख से बीत रही थी। उनमें आपस में बड़ी एकता थी।

एक दिन तालाब पर एक मछेरा आया। उसने मछली फँसाने वाली कंटिया में आटे की गोली लगाकर उसे पानी में डाल दिया।

तीनों मछलियाँ सैर के लिए निकली। कंटिया पर उनकी नजर पड़ी। कंटिया देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह पहला मौका था जब उन्होंने कंटिया देखी थी।

एक मछली ने कंटिया को जादू की छड़ी समझा। उसने कहा- जरा रूको तो, देखो पानी में जादू कि छड़ी झूल रही है।

दूसरी मछली की नजर में कंटिया एक अनोखी जंजीर कि तरह लगी। उसने कहा- हाँ, हाँ, ये तो बड़ी अनोखी जंजीर है, जरा रूककर देख तो लें।

बूढ़ी मछली कंटिया देख कर कांप उठी। उसने कहा – चली-चलो, क्या देखोगी इसे, इसे न देखना ही अच्छा है।

तीनों मछलियाँ जब लौटकर घर पहुंची तब दोनों मछलियों ने अपने-अपने बाल-बच्चों को कंटिया के बारे में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया।

पर बूढ़ी मछली ने अपने बाल-बच्चों को सचेत करते हुए कहा – ख़बरदार, अगर घूमने के लिए निकालो, तो पानी में पड़ी हुई कंटिया के पास कभी न जाना।

सारे तालाब में कंटिया को लेकर एक तमाशा सा खड़ा हो गया। छोटे, बड़े सभी कंटिया को देखने के लिए ललक उठे।

दूसरे दिन कंटिया को देखने के लिए मछलियों कि भीड़ उमड़ पड़ी। सभी मछलियाँ, कंटिया से कुछ दूर कड़ी होकर बड़े गौर-से उसे देखने लगी।

बूढ़ी मछली ने सबको समझाया – इस तरह कंटिया को देखने का सौक बहुत बुरा साबित होगा।

अब तो कंटिया के चारों ओर रोज मछलियों का मेला लगने लगा। मछलियों के बाल-बच्चे रोज सज-धजकर कंटिया के पास पहुँचते और उसे बड़े ध्यान से देखा करते।

पर फिर भी कोई कंटिया के पास न जाता था।

कई दिन बीत गए, एक भी मछली कंटिया में न फंसी।

मछेरे ने सोचा – मछलियाँ चालक है, इसलिए अब उसे भी चालाकी से ही काम लेना चाहिए।

उसने एक ओर तरकीब निकाली। उसने कंटिया बाहर निकल ली। अब वह कंटिया कि जगह आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर तालाब में फेंकने लगा।

एक मछली ने आटे की गोली खाई। आटे की गोली उन्हें बड़ी अच्छी लगी। फिर क्या था? फिर तो सारे तालाब में बात फैल गई। सभी मछलियाँ आटे की गोलियां खाने को ललक उठीं।

मछली फंसानेवाला जब आटे की गोलियां बनाकर तालाब में फेंकता, तब खाने के लिए झुंड की झुंड मछलियाँ दौड़ पड़ती। आटे की गोलियां खाने के लिए कभी-कभी मछलियों में आपस में मार-पिट भी हो जाती थी।

बूढ़ी मछली सब कुछ देखती पर कुछ न बोलती। उसकी बात अब कोई मानता ही न था।

आखिर एक दिन बूढ़ी मछली से रहा न गया। अब मछलियाँ आटे की गोलियों के लिए आपस में लड़ रही थी, तब बूढ़ी मछली सबको पुकारकर बोल उठी – बेवकूफों, क्यों इस इस गोलियों के लिए जान दे रहे हो? मेरी बात मानो, इन गोलियों को खाने का शौक छोड़ दो।

बूढ़ी मछली की बात मानने को कौन कहे, सब मछलियाँ उस पर क्रोधित हो उठी। सबने उस पर हमला कर दिया।

बूढ़ी मछली ने मरते-मरते कहा – मुझे मरने का दुख नहीं। मुझे दुख तो ये है कि तुम सब जिस चीज को अच्छी समझ रहे हो। वही चीज एक दिन तुम्हें मार डालेगी।

बूढ़ी मछली की बात पर सभी मछलियाँ हंस पड़ी।

उधर मछली फसानेवाले ने फिर ने नई चाल चली।

उसने आटे की गोलियां फेंकना बंद करके तालाब में फिर कंटिया डाल दी।

मछलियों को आटे की गोलियां खाने का शौक पैदा हो ही गया था। वे कंटिया में बंधी हुई आटे की गोलियां खाने के लिए कंटिया के पास जा पहुंची और कंटिया में फंस गई।

मछली फसनेवाले अपनी सफलता पर फूल उठा। कुछ दिन बाद तालाब में एक ही जगह पचासों कंटिया डालने लगा।

फिर क्या था। फिर तो रोज ढेर कि ढेर मछलियाँ फंसने लगी। तीन-चार दिन में ही सारी मछलियाँ फंस गई।

पर दो मछलियाँ अब भी थी, जो बूढ़ी मछली की साथिने थी।

दोनों मछलियाँ तालाब को सुना देखकर सिर पीटकर रो उठी। कहने लगी कि अगर उन्होंने बूढ़ी मछली की बात मानकर आटे की गोलियां खाने का शौक न पैदा किया होता तो आज उनके बाल-बच्चे इस तरह मौत के मुख में न जाते।

पर अब क्या हो सकता था? दोनों मछलियाँ उस तालाब को छोड़कर दूसरे तालाब में चली गई।

जब तक दोनों जीती रही, बराबर इस बात को फैलाती रही – बूढ़े लोगों का कहना मानो। बिना समझे-बुझे किसी चीज का शौक मत डालो। बड़े लोगों की बात न मानने से हानि उठानी पड़ती है।

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