गुलाम वंश का इतिहास

History of Gulam Dynesty, Gulam dynesty ka itihas kya hai: भारतीय इतिहास की चर्चा दुनिया के अन्य देशों मे हमेशा बनी रही है, और लोगो का इसके प्रति आकर्षित होना जायज़ भी है। प्राचीन परम्परायें तथा रीति-रिवाजों से सुसज्जित इस इतिहास में बड़े बड़े साम्राज्यों, वंशो तथा विशाल विरासतों का वर्णन मिलता है।

बुद्धिमान राजाओं से लेकर शूरवीर योद्धा इस इतिहास की गरिमा मे चार चांद लगाते है। संघर्ष, ज़िद, मेहनत तथा देशभक्ति की भावनाओ से भरा यह इतिहास देश के लोगो के लिए प्रेरणा का Source है।

इन्ही अतीत के पन्नो मे ” गुलाम वंश ” की चर्चा हमेशा उभर के सामने आती है, जो बेहद रोचक वंश हुआ है। लोगों की बीच इस विषय की जानकारी कम है, इसलिए इस article मे हम गुलाम वंश के बारे में चर्चा करेंगे, एवं उससे जुड़े कुछ मुख्य विवरणों की जानेंगे।

गुलाम वंश का नामकरण

भारत के अनेकों वंशो मे से एक गुलाम वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। जिसने 1206 से 1290 के मध्य दिल्ली पर अपना शासन किया। 84 वर्ष के अपने शासन में इस वंश में कई सारे शासक हुये ,जिनमे से कुछ ने दीर्घ काल तक राज्य किया तो कोई शासक कुछ महीनों तक इस गद्दी पर विराजमान रह सका।

इस वंश के नाम को लेकर भी कई सारी बाते होते है, कि आखिर इसका नाम “गुलाम वंश” ही क्यों रखा गया। इतिहास को खखोलने से जानकारी मिलती है कि इस वंश के ज्यादातर शासक “गुलाम” अर्थात “दास” हुआ करते थे, जो किसी राजा के यहाँ अपनी सेवा देते थे। इसी के कारण इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।

इसे भी पढ़े : मानव इतिहास के 10 सबसे क्रूर राजा ?

गुलाम वंश की शुरुआत

गुलाम वंश की शुरुआत 1206 में हुई थी। इस वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक थे। जिनको गुलाम वंश के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है।

गुलाम वंश का इतिहास

ऐबक एक तुर्क शासक था। इसके माता पिता तुर्किस्तान के रहवासी थे। उस समय कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का पहला मुसलमान शासक था, जिसने दिल्ली की सल्तनत पर राज्य किया।

ऐबक पहले मोहम्मद गौरी के राज्य में उनकी सेना के प्रधान सेनापति हुआ करते थे। उसी दौरान मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुये युद्ध मे जब गौरी विजयी हुये तब उन्होंने ऐबक को अपने राज्य का एक मुख्य व्यक्ति नियुक्त कर दिया।

बात 1206 की थी जब मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई। इनके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने शासन संभाला एवं इसी समय गुलाम वंश की स्थापना की। इसके बाद वह दिल्ली सल्तनत पर पहले मुस्लिम शासक के रूप में आसीन हुये।

ऐबक मे एक महान शासक के सभी गुण थे। उदारता का गुण इसके व्यवहार में सबसे ज्यादा देखा गया। जिसके कारण उसको “लाख बक्स” की उपाधि दी गई थी। लाख बक्स का अर्थ “लाखों का दान करने वाला ” होता है। जो ऐबक के व्यवहार पर पूर्ण रूप से लागू होता था।

अपने शासन के दौरान उन्होंने कई कार्य किये जिनमे उनके द्वारा बनवाने गये 2 मस्जिद अतीत से लेकर वर्तमान में भी प्रसिद्ध है।

दिल्ली का मस्जिद अर्थात कुव्वत- उल- इस्लाम एवं अजमेर मे ढाई दिन का झोपड़ा वह मस्ज़िद है। ऐबक ने 4 साल तक गुलाम वंश के शासक के तौर पर राज्य किया।

1210 मे एक शाम चौगान( Polo) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण उनकी मौत हो गई। अपनी मृत्यु से पहले वह गुलाम वंश को स्थापित कर उसकी नींव मजबूत कर गए थे।

कुतुबुद्दीन ऐबक के उपरांत

गुलाम वंश के संस्थापक ऐबक की मौत के बाद आरामशाह ने इस राजवंश की बागडोर संभाली। परंतु वह मात्र 8 महीने तक इस वंश पर राज्य कर पाये। ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने आरामशाह की हत्या करवाकर 1211 में इस राजसी सल्तनत की गद्दी हासिल की एवं अपना शासन प्रारंभ कर दिया।

इल्तुतमिश इल्लाबरी जाति का तुर्क था। इस शासक ने दिल्ली सल्तनत में “इक्ता प्रणाली” प्रारंभ की। इस प्रणाली के अंतर्गत खेती पर कर लगाये जाने की प्रथा की शुरुआत हुई। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम काम किया।

जिनमे हौज़-ए- सुल्तानी तथा कुतुब मीनार जैसी गगनचुंबी इमारत का निर्माण शामिल था। इल्तुतमिश ही वह पहला राजा था जिसने 1229 में बगदाद के खलीफा से ” सुल्तान ” की वैधानिक स्वीकृति हासिल की।

अपने राज्य में शुद्ध अरबी सिक्के जारी करने का पहली बार काम भी उन्होंने ही किया। 25 साल तक के लंबे शासन के बाद 1236 में इल्तुतमिश की मौत हुई। उसके बाद उनके बेटे रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को गुलाम वंश का अगला राजा बनाया गया।

अपने पिता के तरह फ़िरोज़ राजपाट संभालने में असफल रहे। ना तो उनके पास राजा वाली सोच थी और न ही वह लोग जो उनको सही सलाह दे सके। इसलिये वह कोई ऐसा कार्य नही कर पाये जिसको लंबे समय तक याद रखा जा सके।

अपने बेटे को राजभार मे विफल देख फ़िरोज़ की माता शाह तुर्कान ने उनकी राजभर संभालने मे मदद की। धीरे धीरे शाह तुर्कान का राजसी कामकाजो मे वर्चस्व तथा प्रभुत्व नज़र आना लगा। उनके इस प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को शासन से अलग कर रजिया बेगम को नया शासक बनाया।

रजिया सुल्तान

बात अगर गुलाम राजवंश की हो और उसमें रजिया बेगम का नाम ना आये तो बाते कुछ अधूरी लगती है। रजिया बेगम वह पहली मुस्लिम महिला थी जिन्होंने दिल्ली साम्राज्य पर शासन किया। अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध रजिया बेगम को “रजिया सुल्तान” के नाम से इतिहास में याद रखा जाता है।

महिला होने के बाद भी सुल्तानों के जैसा उनका नज़रिया उनको बाकी सब से अलग बनाता था। रजिया बेगम ने 1236 से 1240 तक इस राज्य पर शासन किया। उन्होंने पर्दा प्रथा के त्याग करके पुरुषों की तरह काबा तथा टोपी पहनने का रिवाज शुरू किया।

13 अक्टूबर 1240 में कैथल के पास एक डाकुओं के समूह ने मिलकर रजिया सुल्तान की हत्या कर दी थी। जिसके कारण मात्र 40 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई थी रजिया सुल्तान की मौत के बाद गुलाम वंश के अगले शासक गयासुद्दीन बलबन हुये।

यह राजा बनने से पहले इल्तुतमिश के गुलाम थे। बलबन का वास्तविक ( Original ) नाम बहाउद्दीन था। युद्धकला मे माहिर बलबन अपनी शूरवीरता के कारण इतिहास मे हमेशा ही सुर्खियों में रहा। 1266 मे मुगलों के शक्तिशाली आक्रमण से इसने दिल्ली की रक्षा की थी। अपने शासनकाल के दौरान बलबल ने अपने राजदरबार में सिजदा तथा पैबोस प्रथा की शुरूआत करवाई।

बलबन को ” उलूंग खान” की उपाधि से भी जाना जाता था। बलबन ही गुलाम वंश के वे अंतिम शासक थे जिनके बारे में इतिहास में संक्षिप्त जानकारी मिलती है। जबकि इस राजवंश के अंतिम शासक शमसुद्दीन क्यूमर्श के बारे में ज्यादा विवरण इतिहास में नही मिलता। 1290 तक चले इस राजवंश का इतिहास इन्ही सब कारणों के चलते अतीत से लेकर वर्तमान तक याद रखा जाता है।

लेखक : निलेश पटेल

Scroll to Top