मेरी प्रिय पुस्तक- निबंध

मेरी प्रिय पुस्तक- निबंध: उत्तम पुस्तकें अच्छे मित्र, गुरु और मार्गदर्शक का काम करती है। उनके अध्ययन से हमारा ज्ञानकोश बढ़ता है, जीवनदृष्टि विशाल बनती है और अपने व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता मिलती है। मैंने अब तक कई उत्तम पुस्तकें पढ़ी हैं। उन सबमें गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग‘ ने मुझे सबसे अहिक प्रभावित किया है।

‘सत्य के प्रयोग’ के एक-एक प्रकरण में सत्य का उदाहरण हुआ है। गांधीजी ने अपनी दुर्बलताओं का स्पष्ट चित्रण करते हुए ऐसे प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किए हैं जिनसे पाठक उत्तम शिक्षा प्राप्त कर सकता है। मांसाहार, धुम्रपान, चोरी, पत्नी के प्रति कठोर व्यवहार आदि प्रसंगों में गांधीजी ने अपनी कमजोरियों की खुलकर चर्चा की है। दक्षिण अफ्रीका में उनके स्वाभिमानी, स्वावलंबी और सत्याग्रही स्वरुप का अध्ययन करने से मालूम होता है कि उस साधारण दिखाई देने वाले व्यक्ति में कितने असाधारण गुण छिपे हुए थे।

‘सत्य के प्रयोग’ या ‘आत्मकथा’ गांधीजी की जीवनयात्रा का ही दर्शन कराती है। मोहनदास नाम का एक डरपोक, शर्मीला लड़का माता के वचनों से बाँधकर, लंदन में संयम और परिश्रम से वकालत की डिग्री प्राप्त करता है, दक्षिण अफ्रीका में न्याय और मानवता की ज्योति जलाता है और अंत में भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के विजयी सेनापति के रूप में विश्ववंदय बन जाता है। एक सामान्य व्यक्ति के असामान्य बनने की यह यात्रा जितनी प्रेरक है, उतनी ही रोचक भी है।

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इस पुस्तक में गांधीजी ने सत्य, अहिंसा, धर्म, भाषा, जाती-पाँति आदि अनेक विषयों पर अपने गंभीर विचार व्यक्त किए हैं। इनसे हमें उस महामानव के चिंतन की झलक मिलती है। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा इतने सहज ढंग से लिखी है कि उस्न्की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। सरल और छोटे-छोटे वाक्यों में उन्होंने भाषा और भाव का सारा वैभव भर दिया है।

इस प्रकार ‘सत्य के प्रयोग’ एक महामानव के जीवन की प्रेरक कथा है। इसमें हमारे देश के इतिहास की भी सुंदर झाँकियाँ हैं। इस पुस्तक को पढ़कर न जाने कितने लोगों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुए हैं। इस पुस्तक के प्रभाव से ही मैं कई बुराईयों से बच गया हूँ और मुझमें सद्गुणों का विकास हुआ है। जिस प्रकार गांधीजी मेरे प्रिय नेता हैं, उसी प्रकार उनकी आत्मकथा मेरी प्रिय पुस्तक है।

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