“मौन”- मन को शांत करने का एक उपाय

हम सदा सुनते आए है कि मन बड़ा चंचल होता है, कभी स्थिर नहीं रहता। कभी सात समुद्र पार चला जाता है तो कभी घर के कोने में दुबका रहता है। वही मन कभी अतीत में डूब जाता है तो कभी वर्तमान में उलझने लगता है। वर्तमान की उलझनों में उलझ कर कभी तो इस कदर परेशान हो जाता है कि छुटकारे की नौबत ही नहीं आती और अगर छुटकारा मिलता है तो वह जाकर खो जाता है भविष्य के माया जाल में।

मौन – मन को शांत करने का एक उपाय

कहते का मतलब यही है कि मन को कभी चैन नहीं, वह हमेशा भटकता रहता है। मनुष्य के मन की बैचेनी ही मनुष्य को सदा बेचैन रखती है। मनुष्य का मन स्थिर नहीं रहता तो उसका दिमाग भी शांत नहीं रहता और दिमाग शांत नहीं रहता तो न वह ढंग से कुछ सोच सकता है और न कर सकता है।

जीवन में सही ढंग से कुछ करने के लिए, सही सोच बहुत ज़रुरी है। सही सोच या सही फैसला, सही दिमाग ही दे सकता है। सही दिमाग मतलब ठंडा दिमाग। दिमाग या मस्तिष्क तभी ठंडा रहता है जब मन स्थिर हो, शांत हो। जल्दी में किया गया काम ठीक से नहीं होता और न जल्दी में लिया गया निर्णय ही ठीक है। इसलिए कोई भी important काम करने या decision लेने के पहले हमें अपने मन को stable कर लेना चाहिए यानि उसे शांत करना चाहिए।

मन को शान्त कैसे करे?

अड़ियल घोड़े की तरह मन को काबू में करने के लिए मनुष्य को खुद ही उसके साथ जूझना पड़ेगा। दूसरों की कोशिश से कोई लाभ होने वाला नहीं, मन और भी बिदकेगा। उसे काबू में करने के लिए, उसे शांत और स्थिर करने के लिए खुद अपना जोर लगाना होगा।

जितना हो सकते अपने बल का प्रयोग करना होगा। और करते ही जाना होगा। लगातार कोशिश से धीरे-धीरे मन पर अपना control होता जायेगा, वह धीरे-धीरे शांत होने लगेगा और शांत होते-होते एकदम शांत हो जायेगा, एकदम स्थिर।

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किसी बरतन में रखा पानी अगर एकदम साफ और स्थिर हो तो बरतन का तल पर पड़ा पदार्थ साफ-साफ नजर आयेगा। पदार्थ कुछ भी हो सकता है मोती-माड़ीक जैसे बहुमूल्य पदार्थ या घोंघे, सितुहे जैसे अपदार्थ।

हमें अगर उनमें से अपने लिए चुनने का अवसर मिले तो हम अवश्य ही मोती-माड़ीक ही चुनना चाहेंगे, और यदि चाहिए भी।

मन की ठीक यही situation होती है जब वह शांत होता है। मन के तल पर अनेक विचार बिखरे पड़े होते है कुछ हीरे-मोती जैसे बहुमूल्य और कुछ घोंघे, सितुहे जैसे मूल्यहीन। दोनों तरह के विचारों से हमारा साक्षात्कार होता है। अच्छे विचार मन को आलोकित, आह्लादित कर इतना सुकून देते है कि फिर मनुष्य के लिए निर्णय करना मुश्किल नहीं होता कि अपने लिए किन विचारों को अपनाना है। स्थिर मन में बड़े अच्छे-अच्छे विचार आते है और विकसित होते है।

कहने का मतलब यह है कि जब-जब मन को चोट लगे, तर्क-वितर्क से आघात पहुंचे या किसी प्रकार की चिन्ता से disturb या angry होकर वह अशांत हो उठे हम उसे शांत करने का प्रयास करें। चुप रहें, बिलकुल न बोले क्योंकि बोली की कड़वाहट से क्रोध भड़कता है, अशांत मन और अशांत होता है।

चुप मौन रहना ही क्रोध को शांत करने का सबसे कारगर तरीका है। धीरे-धीरे क्रोध की आग शांत होगी, मन शांत होगा और मन के शांत होते ही मनुष्य अपनी सहज अवस्था में आ जायेगा और तब उसके ही हृदय की, अन्तर्मन की अच्छाइयाँ यानि सदभाव, सद्विचार आदि प्रतिबिमिबत हो उठेगी मन की पारदर्शी सतह पर।

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जल्दी में किया गया कोई काम या लिया गया कोई decision हमेशा ठीक नहीं होता। इस बात का अहसास अक्सर लोगों को होता है। मन पर जब भी चोट लगती है, वह अस्थिर हो उठता है, करण कुछ भी हो सकता है – किसी का दुर्व्यवहार या अचानक किसी problem का आना या problems में उलझ जाना।

इस situation से निपटने के लिए झट से कोई decision ले लेना बुद्धिमानी नहीं बल्कि बेवकूफी होता है। क्योंकि जल्दबाजी में लिए गये decision हमेशा फ़ालतू और बेअसर होते है, कभी-कभी इतने अनुचित भी होते है कि उनका उल्टा असर होता है।

इसलिए जब हमारे जीवन में ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियां आए और हमें अस्थिर और अशांत करे, हम पहले तो स्थिर और शांत होने की कोशिश करें, चुप रहें, मौन धारण कर चुप बैठे या लेट जाएँ।

धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे मन शांत होने लगता है। घंटो बाद, कभी-कभी एक-दो दिन के कोशिश के बाद मन की घबराहट धीरे-धीरे दूर हो जाती है और मन बहुत दूर तक चिंता-मुक्त होकर सामान्य स्थिति में पहुँच कर सही-सही कुछ decision लेने की situation में पहुँच जाता है।

सहज सामान्य स्थिति में लिया गया decision ही सही होता है

इसलिए हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी decision या निश्चय अपने लिए कर रहे है या दूसरों के लिए कर रहे है तो जल्दबाजी में न करे। हड़बड़ी से ही गड़बड़ी होती है कोई भी decision लेने या किसी को देने से पहले यह सोचना ज़रुरी होना चाहिए कि हमने ऐसा decision सोच-समझ के तो लिया है ना? गुस्से में, जल्दबाजी में या प्रतिक्रिया स्वरूप तो decision नहीं लिया?

खुद से इन questions का जवाब माँगे। हमारे अन्तर्मन ही इन questions का ठीक-ठीक जवाब देगा। और अन्तर्मन के जरिये दिया गया जवाब सही होता है। इसलिए उसी के अनुसार decision लेना सही और आसान होता है।

हमारे life में न जाने ऐसे अवसर आते है जब हम अपना धैर्य खो देते है, विचलित होकर बेहद अशांत हो उठते है। मन तो अशांत रहता है, शरीर भी अस्थिर हो उठता है। बेचैन से हम कभी इधर जाते है, कभी उधर, कभी बैठते है तो कभी लेट जाते है – किसी करवट चैन नहीं मिलता।

ऐसी चंचल मन स्थिति से निजात पाने के लिए मौन-धारण तो जरूरी है ही, मन को concentrate करने के लिए कहीं अपना ध्यान टिकाना भी जरूरी होता है। आँखें बंद करें या तो भगवान का ध्यान करें या मन ही मन कोई जाप करें।

ध्यान करने की कई विधियाँ है और ध्यान की गहराई में उतरने की भी कई-कई तरीके है जिनका practice कर मनुष्य spiritual एवं आध्यात्मिक उन्नति करता है। लेकिन यहाँ हम जन-साधारण की बातें कर रहे है।

सामान्य लोगों के जीवन में साधारण जो situation अक्सर आकर लोगों को disturb, चंचल, व्यग्र, बेचैन और व्याकुल कर देती है उन्ही के लिए सलाह है कि मौन धारण कर चुप्पी साध लें और मन को कहीं ओर उलझाने की चेष्टा करें – इस प्रयास को continuous करते रहने से मन शांत होगा और फिर हम सहज सामान्य स्थिति में होंगे। आज़माया हुआ ये प्रयोग आज़माकर देखें।

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