मुंह जाली बिल्ली – तेनालीराम की कहानी

Billi ka muh jal gaya, tenaliram ki kahani.. एक बार राजा ने सुना कि नगर में चूहे बढ़ गये हैं। उन्होंने चूहों की मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए एक हजार बिल्लियाँ पालने का फैसला किया।

बिल्लियाँ मंगवायी गई और उन्हें नगर के लोगों में बाँट दिया। जिसे बिल्ली दी गयी, उसे साथ में एक गाय भी दी गयी, ताकि उसका दूध पीकर बिल्ली को पाला जा सके।

तेनालीराम भी इस अवसर पर राजा के सामने का खड़ा हुआ। उसे भी एक बिल्ली और गाय दी गयी। उसने पहले दिन बिल्ली के सामने उबलते दूध का कटोरा रख दिया। बिल्ली भूखी थी। बेचारी ने जल्दी से कटोरे में मुंह मारा। उसका मुंह इतनी बुरी तरह से जला कि उसके बाद जब उसके सामने ठंडे दूध भी रखा जाता, तो वहां से भाग खड़ी होती।

तेनालीराम गाय का सारा दूध अपने लिए और अपनी माँ, पत्नी और बच्चों के लिए प्रयोग में लाता।

तीन महीने तक सभी बिल्लियाँ जांच की गयी। गाय का दूध पी-पीकर सभी बिल्लियाँ मोटी-ताजी हो गयी थी, लेकिन तेनालीराम की बिल्ली तो सुखकर काँटा हो चुकी थी और सब बिल्लियों के बीच अलग ही दिखाई दे रही थी। राज ने क्रोध से पूछा – तुमने इसे गाय का दूध नहीं पिलाया?

महाराज, यह तो दूध को छूती भी नहीं। भोलेपन से तेनालीराम ने कहा।

क्या कहते हो? बिल्ली दूध नहीं पीती? तुम समझते हो, मैं तुम्हारी इन झूठी बातों में आ जाऊंगा?

मैं बिलकुल सच कह राह हूँ, महाराज। यह बिल्ली दूध नहीं पीती।

राजा ने कहा – अगर तुम्हारी बात सच निकली तो मैं तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्राएँ दूंगा। लेकिन अगर बिल्ली ने दूध पी लिया, तो तुम्हें कोड़े लगाए जाएंगे। 

दूध का एक बड़ा कटोरा मंगवाया गया। राजा ने बिल्ली को अपने हाथ में लेकर कहा -पियो बिल्ली रानी, दूध पियो।

बिल्ली ने जैसे ही दूध देखा, डर के मारे राजा के हाथ से निकलकर म्याऊ-म्याऊ करती भाग खड़ी हुई।

तेनालीराम बोला – सौ स्वर्ण मुद्राएँ मेरी हुई।

राजा ने कहा – वह तो ठीक है, लेकिन मैं इस बिल्ली को अच्छी तरह देखना चाहता हूँ।

बिल्ली को अच्छी तरह देखने पर राजा ने पाया कि उसकी मुंह पर जले का एक बड़ा निशान है।

राजा ने कहा – दुष्ट कहीं के, जान-बूझकर इस बेचारी को तुमने गरम दूध पिलाया ताकि यह हमेशा के लिए दूध से डर जाए। क्या ऐसा करते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नही आयी?

महाराज, यह देखना राजा का कर्तव्य है कि उसके राज्य में मनुष्य के बच्चों को बिल्लियों से पहले दूध मिलना चाहिये।

राज कृष्णदेव राय अपनी हंसी न रोक सके और उन्होंने उसे एक सौ स्वर्ण मुद्राएँ देते हुए कहा – बात तो तुम्हारी ठीक है, पर शायद आगे से तुम्हें ये सद्बुद्धि आ जाए कि बेचारे मासूम जानवरों के साथ दुष्टता का व्यवहार नहीं करना चाहिए।

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