दुनिया में मेहमान बनकर रहो – भवसागर पर करने की कला

भवसागर पर करने की कला.. दुनिया एक मुसाफिर खाना है। यहाँ जो आता है कुछ समय ही के लिए आता है। न तो वह अपने साथ कुछ लाता है और न ले जाता है परन्तु भोग की जो वस्तुयें उसे यहाँ मिलती हैं उन्हें वह अपनी समझने लगता है। यही बंधन का कारण बन जाता है जैसे सागर में कूदने से पहले तैरने की कला आनी चाहिए। वैसे ही इस भवसागर में आकर पार होने की काला भी मालूम होनी चाहिए। यह कला है – संसार में मेहमान बनकर रहना

दुनिया में मेहमान बनकर रहो – Be a guest in this world in Hindi

अगर आपके यहाँ कोई मेहमान आता है आप उसे अच्छी जगह ठहराते हैं और अच्छा भोजन खिलाते हैं जिससे कि उसे कोई तकलीफ न हो। वह मेहमान यह समझता है कि यहाँ मेरा कुछ नहीं है। समस्त भोगों का उपभोग करते हुए भी अपना महत्व नहीं रखता।

उनका कहना था कि अपने ही घर में रहो लेकिन मेहमान बन के रहो परन्तु आजकल तो लोग मालिक बनकर रहते हैं और सब कुछ अपना समझ लेते हैं। जो आया है वह जायेगा ही और जो चीजें उसे मिली है वे भी छूटने के वक़्त दुख भी होगा। इसलिए दुनिया का सारे कामों को करो पर यह न समझो कि यह मेरा है।

हम लोगों को सारे काम करने चाहिए लेकिन अपना समझ कर नहीं ईश्वर का समझ कर ऐसा करने से मैं और मेरे का भाव दूर कर के मेहमान बनकर रहना आ जायेगा।

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