दुश्मन से दोस्ती न करें – पंचतंत्र की कहानी

Dushman se dosti nahi karni chahiye, Panchtantra ki kahani.. प्राचीनकाल की बात है। एक विशाल जंगल में एक कौआ और हिरण रहते थे। दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त थे।

कौआ जिस घने पेड़ पर रहता था, उसी पेड़ के एक कोटर में हिरण ने अपना घर बना रखा था। कभी-कभी हिरण अकेले ही घास आदि चरने बहुत दूर निकाल जाता था। कौआ उसे समझाता कि ज्यादा दूर मत जाया करो, नहीं तो किसी विपत्ति में फंस सकते हो। उस समय तो कौए की बात हिरण मान लेता, लेकिन बाद में सब कुछ भूल जाता।

एक दिन हिरण जंगल के आखिरी छोर पर घास चर रहा था कि पड़ोस के जंगल में रहने वाले एक सियार की नजर उस पर पड़ गई। उसका हृष्ट-पुष्ट शरीर देखकर सियार की नियत खराब हो गई। उसने तुरंत एक योजना बनाई और हिरण के पास पहुंचकर बोला, नमस्कार मित्र, आप कैसे हैं?

हिरण ने सियार की ओर देखकर पूछा, कौन हैं आप? मैं तो आपको जानता नहीं।

सियार मधुर स्वर में बोला, भाई हिरण, इस जंगल में में कई वर्षों के बाद आया हूं। अकेला ही इधर-उधर भटकता रहता हूं। मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूं और आपको पूरा विश्वास दिलाता हूं कि आप पर कोई विपत्ति नहीं आने दूंगा।

हिरण से सोचा क्या बुराई है सियार से दोस्ती करने में। वह बोला, मित्र, मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास है। अगर तुम्हारा कोई मित्र नहीं है तो मुझे अपना मित्र मानो। मैं तुम्हारी मित्रता सहर्ष स्वीकार करता हूं।

शाम होने पर हिरण अपने घर की ओर जाने लगा तो सियार से बोला, भाई, अब तुम भी अपने निवास की ओर प्रस्थान करो। अब हम कल मिलेंगे।

इस पर सियार ढोंग करता हुआ बोला – मित्र हिरण, मेरा तो यहाँ कोई निवास स्थान नहीं है। मैं तुम्हारे साथ ही चलता हूं, वहीं आसपास ही मैं अपना कोई ठिकाना बना लूँगा।

हिरण नरम और रहमदिल था, लेकिन फिर भी उसने आशंका व्यक्त की, मित्र सियार, कहना तो तुम्हारा ठीक है, लेकिन एक अजनबी प्राणी को मेरे पड़ोसी शंकित दृष्टि से देखेंगे। वे तुम पर विश्वास नहीं करेंगे।

भाई हिरण, एक ओर तो तुम मुझे मित्र कहते हो और दूसरी ओर अनजान बता रहे हो। जब हम मित्र हो गए तो फिर शंका की बात कहाँ से निकल आई? आखिर पड़ोसी भी तो मेरे मित्र हुए। वे भले तुम्हारे मित्र को शंकित दृष्टि से क्यों देखेंगे? अपने पड़ोसियों के सामने जब तुम मेरा परिचय अपने मित्र के रूप में दोगे तो शंका की कोई संभावना नहीं रहेगी।

हिरण सियार की बातों में आ गया, बोला – ठीक है भाई, चलो। मैं सबको समझा दूंगा।

शीघ्र ही हिरण और सियार अपने घर पहुंचे। हिरण के साथ सियार को देखकर कौआ पूछ बैठा, मित्र हिरण, यह यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे यहाँ क्यों ले आए?

हिरण सहजतापूर्वक बोला – यह मेरा नया मित्र सियार है। इसके रहने-ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए मैं इसे अपने साथ ले आया हूं। अब यह भी यहीं-कहीं अपना ठिकाना बना लेगा।

कौए ने हिरण को बहुत समझाया कि ऐसा करना ठीक नहीं, लेकिन हिरण नहीं मानी।

कौए को किसी भी तरह सियार पर विश्वास न था और इधर सियार भी सोच रहा था कि अपनी योजना पर अमल कैसे करें। तभी उसके खुराफाती दिमाग में एक विचार आया। उसने जंगल के पास अन्न से हरा-भरा एक खेत देखा था। उसने उसी खेत के बहाने अपनी योजना को अंतिम रूप देने की ठान ली। वह हिरण के पास पहुंचा और बोला – मित्र, आज मैंने अन्न से हरा-भरा एक खेत देखा है।

अन्न? क्या कहा, इस जंगल में अन्न? हिरण आश्चर्यचकित हो गई। वह रुखी-सुखी घास खाते-खाते ऊब गया था। वह बोला, मित्र, तुम मुझे वह खेत दिखा देना, ताकि मैं भी अन्न खा सकूँ।

अच्छा कल तुम मेरे साथ चलना। कहते हुए सियार मन ही मन हर्षित हो रहा था, लेकिन उसे कौए से बचकर अपनी योजना को अंतिम रूप देना था।

सियार अगले दिन हिरण को लेकर उस अन्न के खेत में जा पहुंचा। हिरण अत्यंत प्रसन्न होकर अन्न खाने लगा। उस दिन से वह हर रोज उस खेत में जाता और भरपेट भोजन करके वापस लौट आता। रखवाली के बहाने दिखावे के लिए हिरण के साथ-साथ सियार भी जाता था, मगर उसे अवसर नहीं मिल पा रहा था।

इस प्रकार तीन दिन बीत गए। अगले दिन जब हिरण उस खेत में पहुंचा तो वहां पहले से जाल बिछा हुआ था। रोज की भांति जैसे ही उसने अन्न खाना चाहा, वैसे ही वह जाल में फंस गया। तब हिरण ने अपने मित्र सियार को पुकारा, भाई सियार, किसी भी तरह तुम यह जाल काटकर मुझे बचा लो। मैं तुम्हारा अहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।

सियार बोला, भाई मेरे, मैं हर तरह की सहायता करने के लिए तैयार हूं, लेकिन यह जाल तांत का बना हुआ है। तुम तो जानते हो कि मैं मंगलवार को व्रत रखता हूं। आज मंगलवार है। इसलिए मन चमड़े की कोई वस्तु नहीं छू सकता। मुझे इस समय माफ कर दो भाई। सुबह होने दो, फिर मैं वैसा ही करूँगा, जैसा तुम चाहते हो। यह कहकर सियार वहां से थोड़ी दूर झाड़ी में छिपकर बैठ गया।

सियार सोच रहा था कि सुबह तक तो इस हिरण का काम तमाम हो जाएगा। खेत के मालिक ने जो जाल लगा रखा है, उसमें फंसे प्राणी को देखने वह जरुर आएगा। फिर वह हिरण को मारकर उसकी खाल निकाल लेगा और मांस-हड्डियाँ फेंक देगा। मैं इसका स्वादिष्ट मांस भरपेट खाऊंगा।

उधर जब काफी रात हिरण न लौटा तो उसका मित्र कौआ उसे इधर-उधर खोजने लगा। काफी देर भटकने के बाद वह आखिर अपने मित्र को ढूंढने में सफल हो गया। वह हिरण के पास पहुंचा और बोला – देखा मित्र, मैं कहता था न कि अनजान को मित्र बनाना ठीक नहीं होता। आखिर उस दुष्ट ने तुम्हें यमलोक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तुम्हारा वह सियार मित्र पास की झाड़ी में बैठा उस समय की प्रतीक्षा कर रहा है कि कब इस खेत का मालिक आकर तुम्हें मौत के घाट उतारे और उसे तुम्हारी मांस खाने का अवसर प्राप्त हो।

अब तक भोर हो चुकी थी। तभी खेत का मालिक एक लाठी लिए आता दिखाई दिया। कौआ चिंतित हो उठा कि अपने मित्र को कैसे बचाए। अचानक उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी। वह हिरण से बोला, मित्र, खेत का मालिक आ रहा है, लेकिन तुम घबराओ मत। जैसा मैं कहता हूं, वैसा ही करना, तुम्हारी जान अवश्य बच जाएगी। तुम तत्काल साँस रोककर ऐसा प्रकट करो जैसे मर गए हो। इसके लिए तुम चारों पैर ढीला छोड़ दो और पेट को फूला लो। खेत का मालिक मरा जानकर तुम्हें जाल से मुक्त कर देगा और अपना जाल लेकर चला जाएगा। तभी मैं तुम्हें आवाज दूंगा, तब तुम तेजी से भाग खड़े होना।

यह कहकर कौआ वहां पास के एक पेड़ पर जा बैठा। इधर हिरण ने वैसा ही किया, जैसा कौए ने कहा था। खेत का मालिक जब हिरण के पास पहुंचा तो उसे देख मृत मान लिया। उसने हिरण के बंधन खोल दिए और अपना जाल समेटने लगा। तभी हिरण ने कौए की आवाज सुनी। वह तत्काल वहां से उठकर तेजी के साथ भाग खड़ा हुआ।

हिरण को भागता देख खेत का मालिक आश्चर्य-चकित रह गया। उसने अपनी मुर्खता और हिरण की चालाकी पर क्रोध आ रहा था। खीझ मिटाने के लिए उसने अपनी लाठी फेककर हिरण को मारना चाहा। हिरण तो कुलांचे भरकर भागने के कारण बच गया, लेकिन झाड़ी में छिपा सियार के सर से वह लाठी जा टकराई। सियार का सर फट गया और वहीं लुड़क गया। सियार को उसकी धूर्तता का फल मिल गया। उसने मित्रता के नाम पर जो छल किया था, उसकी उसे सजा मिल गई थी।

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