सुंदर विचारों का दान करना की महा दान है – Donation of good thought is the great donation

जैसे शरीर जल से पवित्र होता है, वैसे ही हमारा-आपका  मन भी प्रभु और ध्यान रूपी जल में स्नान करने से पवित्र होता है। स्नान के बाद लोग कुछ दान भी करते हैं, ऐसे ही ऐसा करने के बाद तुम कुछ दान भी दो। रूपए-पैसा तो बहुत से लोग दान करते हैं, परन्तु तुम सुन्दर विचारों का दान करो।

यह सबसे श्रेष्ठ दान है। संसार को इसी दान की सबसे अधिक आवश्यकता है। संसार आज इसी के बिना अत्यंत दुखी है, अशांत है।

जहाँ जिस देश में सुन्दर विचार अधिक होते हैं, वही देश धनवान और सम्पन्न माना जाता है। जिस देश में सोना-चाँदी, बहुत हो, भोग-विलास की विस्तुएं अधिक हों, परन्तु सुन्दर विचारों की कमी हो, वह देश दुख और अशांति का घर बन जाता है।

सुंदर विचारों का दान करना की महा दान है – Donation of good thought is the great donation

क्या तुम जानते हो कि ऐसा क्यों हो जाता है ? किसी महात्मा ने कहा है – है परमात्मा, अगर तू किसी को वैभव दे, तो कृपा करके सद्बुद्धि भी अवश्य देना, नहीं तो वह बंदर के हाथ की तलवार बन जायेगा। वह दूसरों का हित तो कदाचित ही कर सके, लेकिन अपना अहित अवश्य ही कर लेगा।

तुम जानते हो, सोना-चाँदी या जवाहरात जड़ पदार्थ हैं, जो इनसे दिल लगाता है, उनमें रमता है, उनका संग्रह करता है, उनके जीवन में जड़ता अवश्य आयेगी। जैसे मादक पदार्थों का सेवन आदमी को मदान्ध और पागल बना देता है, वैसे ही धन भी आदमी को पागल बना देता है। कहा भी है कि मादक पदार्थों को तो खाने से आदमी पागल होता है, मगर धन को तो बस केवल देख लेने मात्र से ही पागल हो उठता है।

यह धन या वैभव मन के ऊपर मैलापन लाते हैं। इसलिए मन को निर्मल बनाने के लिए सच्चे ज्ञान की आवश्यकता है। तुम यह भी जानते होंगे कि जब किसी के पास बहुत अधिक धन बढ़ जाता है, तो वह फिर दान की ही सोचता है। वह इसलिए नहीं कि लोगों का लाभ होगा। परन्तु इसलिए कि अब इस इतने धन का होगा ही क्या ? वह धन उसे सुख की नींद सोने नहीं देता, जी भर खाने नहीं देता, उसकी चिंता में दिन-रात घुलता रहता है। सदा भयभीत भी रहता है।

लोग कहते हैं – अरे इसका कुछ सदुपयोग करो। विद्यालय खुलवाओ। लड़के पढ़ेंगे, देश का कल्याण होगा। वह वही करता है। उसका नाम भी होता है, लड़के भी पढ़ते हैं। धर्मशालाएं बनवाता है, कुएँ भी खुदवाता है कि उसका और नाम होगा। वह नाम और नशा के पीछे भागता है। देश का कल्याण तो होता है, मगर मन को पूरी शांति नहीं मिलती।

शांति तो भगवान की ओर देखने में थी, उनका ध्यान करने में थी। पर यह बहुत कठिन है कि आदमी एक क्षण को भी उस भगवान की ओर देख ले, जिन्होंने हमें जीवन दिया है और संसार की सारी संप्रदायें दी हैं। आदमी उसे जान जाए तो बिल्कुल शांत और निर्मल बन जाए।

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