एक बार स्वामी विवेकानंद जी एक महात्मा से बातें कर रहे थे। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि ऐसा लगता है कि भारतवर्ष में भक्तों की लहर आ गई। जहाँ भी मैं सत्संगों में जाता हूं बहुत संख्या में लोग आते हैं। वह महात्मा मुस्कुराकर बोले ऐसी बात नहीं है। भक्त तो उनमें से बिरल (rare) ही होता है।
उन्होंने कहा कि सबसे अधिक संख्या आज कल लोगों की होती है जिन्होंने भक्ति एक fashion बना ली है। वह केवल समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए यह दिखाते हैं कि वह भक्त हैं, पूजा-पाठ करते हैं, मन्दिर जाते हैं लेकिन उनके अंदर अब भी उतना ही काला है जितना पहले था।
दिखावा करोगे तो पछताओगे – Don’t Show Off, in Hindi
वह वही करने, न करने के कार्य अब भी करते हैं जैसे पहले करते थे। केवल समाज में दिखने के लिए वह कार्य करते हैं। और उनका न उस सत्संग, न महात्मा से मतलब और न परमात्मा से मतलब। कुछ भक्त ऐसे होते हैं जिनको कबीर साहब ने आर्त भक्त (draft devotee) कहा है जो किसी मुसीबत के कारण किसी महात्मा की शरण में जाते हैं। ऐसे लोग भी उस सत्संग में मुश्किल से ही टिकते हैं। अगर उनकी मुसीबत दूर हो जाएगी तब भी वह सत्संग छोड़ देंगे और नहीं दूर हुई तो छोड़ना ही है।
फिर इसके बाद बंधु भक्तों का नंबर बताया जो किसी इच्छा को लेकर किसी सत्संग में या परमात्मा की साधना में लगते हैं। और इसी के साथ वह भक्त भी होते हैं, जो संसार की इच्छा तो नही करते परन्तु मृत्यु के बाद अच्छे लोक प्राप्त करने की इच्छा करते हैं।
इन दोनों भक्तों को उन्होंने व्यापारी की संज्ञा दी क्योंकि वह भक्ति करने के बदले में इस संसार के सुख चाहते हैं या मृत्यु के बाद अच्छे लोक चाहते हैं। यह तो ऐसा ही है कि एक हाथ दे और उस हाथ ले।
भगवान बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है कि एक बार वह कही सत्संग कर रहे थे। गांव से बहुत लोग सत्संग में आए, तो उनके प्रधान शिष्य ने कहा कि भगवान ऐसा लगता है कि इस गांव में बहुत भक्त हैं तो वह उस समय तो कुछ नहीं बोले।
शाम को जब जब सत्संग का समय आया तो बोले कि ऐसा करो कि सबसे पूछ लो कि अगर इस समय परमात्मा आ जाएँ तो वह क्या मांगेंगे। उन्होंने यही कार्य किया और आकर बतलाया कि भगवान सबने कुछ न कुछ इच्छा व्यक्त की है मेरी लड़की की शादी हो जाए, वह हो जाए, मेरे पास धन आ जाए परन्तु केवल एक मनुष्य था जिसने भगवान का प्रेम माँगा और वह भी गरीब सा दीखता था।
भगवान बुद्ध ने समझाया कि देखो भक्त तो वह एक मनुष्य है जो परमात्मा का प्रेम मांगता है बाकी तो व्यापार करने ही आए हैं।
उन महात्मा ने कहा कि भक्त तो वही होता है जो निष्काम भाव से परमात्मा की साधना करता है, उनसे प्रेम करता है।
हमको अपना उद्देश्य समझ लेना चाहिए कि निष्काम भाव से जब तक भक्ति नहीं होती तब तक परमात्मा नहीं होते। कोई भी विचार हो तो तब तक परमात्मा प्राप्त नहीं होते। विचार रहित अवस्था में आयें तभी परमात्मा मिलता है। यहाँ तक कि परमात्मा प्राप्ति का विचार भी जब तक रहेगा आप परमात्मा से अलग रहेंगे। मैं कह रहा था कि यह आजकल fashion हो गया है कि भक्त दिखाए अपने को और ऐसे लोगों की संख्या हमारे यहाँ भी है।
9583450866