एक बेटी की दास्ता – Kahani

एक बेटी की दास्ता: बहन,बेटी जब शादी के मंडप से, ससुराल जाती है तब पराई नहीं लगती। मगर जब वह मायके आकर हाथ मुंह धोने के बाद सामने टांगें टॉवल के बजाय अपने बैग से छोटे से रुमाल से मुंह पौंछती है, तब वह पराई लगती है!

  • जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी खड़ी हो जाती है, तब वह पराई लगती है!
  • जब वह पानी के गिलास के लिए इधर उधर आँखें घुमाती है, तब वह पराई लगती है!
  • जब वह पूछती है वाशिंग मशीन चलाऊँ क्या, तब वह पराई लगती है!
  • जब टेबल पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती, तब वह पराई लगती है!
  • जब पैसे गिनते समय अपनी नजरें चुराती है, तब वह पराई लगती है!
  • जब बात बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है, तब वह पराई लगती है!
  • और लौटते समय ‘अब कब आएगी’ के जवाब में ‘देखो कब आना होता है’ यह जवाब देती है, तब हमेशा के लिए पराई हो गई ऐसे लगती है!

लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद जब वह चुपके से अपनी आखें छुपा के सुखाने की कोशिश करती, तो वह परायापन एक झटके में बह जाता है, तब वो पराई सी लगती है!

एक बेटी की दास्ता

Dedicate to all Sisters.

नहीं चाहिए हिस्सा भइया
मेरा मायका सजाए रखना
कुछ ना देना मुझको
बस प्यार बनाए रखना
पापा के इस घर में
मेरी याद बसाए रखना
बच्चों के मन में मेरा
मान बनाए रखना
बेटी हूँ सदा इस घर की
ये सम्मान सजाये रखना।

Dedicated to all married girls.

बेटी से माँ का सफ़र :–

(बहुत खूबसूरत पंक्तिया, सभी महिलाओ को समर्पित)

बेटी से माँ का सफ़र
बेफिक्री से फ़िक्र का सफ़र
रोने से चुप कराने का सफ़र
उत्सुकता से संयम का सफ़र
पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी।
आज किसी को आँचल में छिपा लेती हैं।
पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को सर पे उठाया करती थी।
आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं।
पहले जो छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती थी
आज वो बड़ी बड़ी बातों को मन में छुपाया करती हैं
पहले भाई,,दोस्तों से लड़ लिया करती थी।
आज उनसे बात करने को भी तरस जाती हैं।
माँ, माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी।
आज माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं।
10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था।
आज 7 बजे उठने पर भी लेट हो जाया करती हैं।
खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था।
आज खुद के लिए एक कपडा लेने को तरस जाया करती है।
पूरे दिन फ्री होकर भी बिजी बताया करती थी।
अब पूरे दिन काम करके भी काम चोर कहलाया करती हैं।
एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करती थी।
अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करती हैं।
ना जाने कब किसी की बेटी
किसी की माँ बन गई।
कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई।

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2 thoughts on “एक बेटी की दास्ता – Kahani”

  1. अनिता राठिया

    बहुत अच्छा बातें लिखी हैं, बहुत अच्छा लगा ,मैं भी अपनी माँ से बहुत प्यार करती हूं.

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