एक बार की बात है एक स्त्री आईने में अपना चेहरा देख रही थी और देखकर उसने आईना फेंक दिया। दूसरा आईना लाई उसमे भी अपना चेहरा देखा और इस आईने को भी फेंक दिया। इस प्रकार दो आईना और तोड़ दिए। दूसरी स्त्री वहां खाड़ी थी वह उससे बोली कि बहन अगर तुम्हारे पास आईना अधिक है तो मुझे दे दो इस प्रकार फेंक क्यों रही हो।
पहली स्त्री बोली कि बहन यह आईना बड़े बुरे हैं। इसमें चेहरा गंदा दिखाई दे रहा है। इसीलिए मैं इनको फेंक रही हूं। दूसरी स्त्री ने कहा देखो बहन ऐसा करो कि साबुन और पानी से अपना चेहरा धो आओ। वह स्त्री समझदार थी, चली गई, चेहरा धो कर आई और फिर जब चेहरा आईना में देखा तो खुश हो गई।
सच पूछिए तो हम सबका व्यवहार ऐसा ही है जैसा पहली स्त्री का था। हम भी संसार में हर इंसान में बुराई देखते है और दुखी रहते है। यह मनुष्य का स्वभाव ही है कि वह अपने में अच्छाई देखता है परन्तु दूसरे के बुराई देखता है।
लेकिन जब वह साधना प्रारम्भ करता है, उसका वृत्तियाँ अंतमुर्खी होने लगती है, मन थोड़ा शांत होने लगता है जब वह अपने अंदर देखता है तो पाता है कि उसके अंदर अनेक बुराइयाँ भरे हुए है और जब वह बुराई देखेगा तो उनको दूर करने की कोशिश भी करेगा। यह संसार तो मानो आईना है जो आपके अंदर है वही दूसरों में दिखाई देता है। इस बात को और समझने के लिए एक प्रसंग और याद आ रहा है।
शाम का समय था एक गांव के किनारे एक बुड्ढा जा रहा था। उसको ठोकर लगी और वह गिर गया। गिरते ही बेहोश हो गया। अंधेरा तो था ही। वहां से थोड़ी देर में झूमता हुआ एक शराबी निकला। वह उसे देखकर बोला कि अरे देखो इसने अधिक पि ली है। इसीलिए बेहोश हो गया। मैं तो अभी होश में हूं। और आगे चला गया।
कुछ और समय निकला, अंधेरा अधिक हुआ तो एक चोर उधर से निकला, वह चोरी करके आ रहा था। वह मन ही मन कहने लगा कि देखो मेरे जैसा ही कोई चोर है परन्तु वह ठोकर खाकर गिर गया अब इसके पीछे पुलिस और आदमी आते होंगे, मैं तो यहाँ से भाग जाऊँ। वो भी आगे चला गया तीसरी बार एक भगवान का भक्त आया उसने उसको देखा तो बोला कि देखो यह भी कोई भक्त होगा क्योंकि सिर के ऊपर उसके हाथ जुड़े हुए है। यह उन्ही के ख्याल में होगा और उसने उस बुड्ढे को उठाया उसकी सेवा की उसको होश में लाया। तो तीनों मनुष्यों ने जो उनके अंदर था वही उसमें देखा।
यही बात है कि जो हमारे अंदर होता है वही हम दूसरों में देखते है। इसलिए अध्यात्म में तभी समझना चाहिए कि हमने कदम रख लिया जब हमको अपने अवगुण दिखाई देने लगें। जब हमें अवगुण दिखाई देने लगेंगे तभी हम उन्हें दूर करने की कोशिश करेंगे और अपना हृदय निर्मल बना सकेंगे।
अध्यात्म की पहली सीढ़ी तौबा है। तौबा उस बात को कहते है कि हम किसी बुरे काम को कर रहे हों, उसके लिये कसम खाने कि अब से यह काम नहीं करेंगे। हमें दूसरों में बुराइयाँ नहीं देखने चाहिए। हमें भी अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ने के लिए अपने अवगुणों को देखकर उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए।