अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान कैसे बनाए?

हर माता-पिता के लिए बच्चे उनकी अमूल्य संपदा होती है। अपनी इस संपदा की रक्षा करना, उन्हें सुरक्षित भविष्य देना, जिम्मेदार व्यक्ति बनाना, संस्कारी, शिष्ट व व्यवहार-कुशल व्यक्ति बनाना हरेक माता-पिता की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होने के साथ-साथ मौलिक उत्तरदायित्व भी है।

लेकिन कई बार अपने बच्चों को सफल नागरिक बनने की चेष्टा में हम उन्हें संस्कारी बनाना, व्यवहार-कुशलता व शिष्टता का ज्ञान देना भूल जाते है।

ऐसी स्तिथि में बच्चे अपनी व्यक्तिगत जीवन में तो सफलता हासिल कर लेते है, लेकिन पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन के पहलुओं पर असफल साबित होते जाते है।

क्योंकि, एक सफल व्यक्ति बनना आसान है पर एक अच्छा इंसान बनना बहुत मुश्किल है।

बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक चोर चोरी करते पकड़ा गया राजा ने उसे फाँसी की सजा सुनाई। फाँसी से पहले उससे पूछा गया कि क्या वह किसी से मिलना चाहता है?

चोर ने आख़िरी समय में अपनी माँ से मिलने की इच्छा जाहिर की।

अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान कैसे बनाए?

अपने बच्चे को एक अच्छा इंसान कैसे बनाए?

माँ को बुलाया गया। चोर ने उससे कहा – ‘माँ, इन आख़िरी समय में मैं तुम्हें एक रहस्य बात बताना चाहता हूं, माँ उसके सामने आ गई।

और तब लोग यह देखकर हैरान रह गये कि चोर ने माँ के कान में कुछ कहते-कहते उसका पूरा कान अपने दाँतों से काट लिया। माँ रोई-चिल्लाई। चोर से पूछा गया कि उसने ऐसा क्यों किया?

चोर ने उत्तर दिया – ‘हुजुर, ये औरत मेरी माँ नहीं बल्कि मेरी दुश्मन है। मैं चोर नहीं था लेकिन इसने मुझे चोरी सिखाई। मैं अच्छा इंसान बनना चाहता था। लेकिन मुझे अपराधी बनाया। अगर मेरा वश चलता तो मैं इसका खून कर डालता।’

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लोग यह सुनकर चौक गए। बात चौंकाने वाली थी और अविश्वसनीय भी। इस दुनिया में ऐसी कौन माँ होगी जो अपने बच्चे को चोर और बदमाश बनायेगी? चोर ने शुरू से बताते हुए कहा कि जब वह छोटा था तो अक्सर अपनी माँ को चोरियां करते देखता था।

माँ किसी के बर्तन चुरा लाती, किसी के कपड़े और किसी का अनाज ले आती। माँ को देखते-देखते एक दिन खुद उसके मन में भी चोरी करने का ख्याल आया और वह एक पड़ोसी की मुर्गी चुरा लाया।

माँ बहुत खुश हुई और इस तरह छोटी-छोटी चोरियां करते हुए वह बड़ा चोर बन गया।

मैं नहीं जनता कि इस कहानी में कितनी सच्चाई है। लेकिन यह पूरी तरह सच है कि हमारे बच्चे वही बनते है जो हम उन्हें बनाते है और वही करते है जो हम करते है।

घर बच्चे की प्राथमिक विद्यालय है और माता-पिता उसके पहले अध्यापक है। बच्चा हर काम में अपने माता-पिता की नक़ल करता है और वही सीखता है जो उसे सिखाया जाता है।

अपने बच्चे को कामयाब, व्यवहार-कुशल एवं शिष्ट बनाने के लिए ये जरूरी है कि आप उसे अच्छे संस्कार दें, अच्छी शिक्षा दें।

अपने बच्चे को शिष्ट एवं सभ्य बनाने के लिए जो शिक्षा उसे आप दे सकते है, वह शिक्षा उसे घर से बाहर नहीं मिल सकती।

लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि आपके अंदर भी वे संस्कार मौजूद हो जो आप अपने बच्चों को देना चाहते है।

इसके लिए आपका उच्च शिक्षा प्राप्त होना जरूरी नहीं। अनपढ़ माता-पिता की संतानें भी व्यवहार कुशल एवं योग्य होती है।

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आप क्या है?

अपने व्यापार में बहुत से लोगों से मिलने का मौका मुझे मिलता है। मैंने देखा है – बहुत से व्यक्ति successful businessman है, योग्य शिक्षक है अथवा योग्य चिकित्सक है। लेकिन उनमें शायद ही कुछ ऐसे व्यक्ति है जो अपने आपको योग्य पिता कह सकते है।

  • क्या आपने कभी आत्म-विश्लेषण किया है?
  • क्या आपने कभी अपने संस्कारों की ओर ध्यान दिया है?
  • क्या आपके अंदर वे सभी हुनर मौजूद है जिन्हें आप अपने बच्चों में देखना चाहते है?
  • क्या आप खुद भी व्यवहार-कुशल है और लोगों से मिलते समय शिष्टाचार के नियमों का पालन करते है?

अगर नहीं, तो फिर आपको अपने बच्चे से निराशा ही मिलेगी। लेकिन इसके लिए भी आप अपने बच्चे को ही दोषी ठहरायेंगे।

क्योंकि अहंकार वश और यह सोचकर कि आप बड़े है आप न तो अपनी बुराइयों की ओर ध्यान देंगे न ही अपने आपको सुधारने का प्रयास करेंगे।

अभी पिछले दिनों एक बच्चे से मुलाकात हुई जो 6 वर्ष की उम्र में ही smoking कर रहा था। मैंने उससे सवाल किया – “आप सिगरेट क्यों पीते हो? पापा भी पीते हैं? यह धुआँ आपको अच्छा लगता है?”

बच्चे का उत्तर था – नहीं लेकिन पापा को अच्छा लगता है इसलिए हमें भी अच्छा लगता है।

हालांकि smoking का बच्चे की व्यवहार कुशलता एवं शिष्टता से कोई संबंध नहीं। लेकिन ये तो आपको मानना ही पड़ेगा कि smoking एक बुरी आदत है और ये आदत उसे अपने पिता से मिला है।

वैसे भी एक सर्वेक्षण के अनुसार बहुत कम पिता ऐसे होते है जो खुद तो smoking करते है लेकिन उनके बच्चे smoking नहीं करते।

ऐसे ही एक दिन Peter V.K से मिलने का अवसर मिला। शाम का समय था। साहब कुछ देर पहले ही ऑफ़िस से लौटे थे और अपने बेटे को पिट रहे थे। पता चला साहब को पिने की आदत थी।

सुबह और शाम जब भी मन करता बच्चों के सामने ही बोतल खोलकर बैठ जाते।

उन्होंने सुबह भी पि और बोतल में कुछ शराब छोड़कर वे अपने ऑफ़िस चले गए। बच्चे को अवसर मिला और वह बोतल में बची शराब को पि गया।

हमारे विचार में इसमें बच्चे का कोई दोष न था। वह केवल अपने पिता के पद चिन्हों पर चला था और उसने वही किया था जो उसके पिता करते आए थे।

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यहाँ हमारा उद्देश्य शराब की बुराइयों पर प्रकाश डालना नहीं है। हम यह भी नहीं कहते कि मदिरापान विष पिने के समान है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

आप शराब पीयें लेकिन इस बुराई को अपने बच्चों से छिपाकर रखें। नहीं तो बच्चे आपका नक़ल करेंगे और फिर वही होगा।

ध्यान रखें अपने बच्चे को आप झुठला नहीं सकते। उसके पास नयी आँख है। उसके पर्दे पर जो चित्र आयेगा वही उसके दिमाग पर अंकित होगा।

आपका बच्चा हर बुराई से दूर रहे इसलिए जरूरी होगा कि आप भी उस बुराई से दूर रहें।

  • खुद को सुधारें।
  • अपनी बुराइयों को देखें और उन्हें दूर करने की कोशिश करें।
  • बच्चों को सुधारने के लिए आपका खुद सुधरना जरूरी है। ध्यान रखें, जैसे बिज होता है पौधा उसके अनुसार ही बनता है और वैसे ही फूल उस पर खिलते है।

इतिहास साक्षी है कि इस दुनिया में जितने भी महान व्यक्ति हुए है उनकी महानता के पीछे मौलिक भूमिका उनके माता-पिता की ही रही है।

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क्या आप व्यवहार कुशल है?

आप कितने व्यवहार कुशल है – इसका measurement यह है कि आपसे अपने दोस्तों से, सहकर्मियों से, रिश्तेदारों से एवं पड़ोसियों से किस प्रकार के संबंध है।

सच तो यह है कि व्यवहार-कुशलता ही संबंधों की आधार शिला है। और यह भी सच है कि आपके बच्चे भी उतने ही व्यवहार-कुशल होंगे जितने आप है।

ऐसे कई बच्चों को मैं जनता हूं जिनके दोस्तों की संख्या न के बराबर है और जो अपने दोस्तों से हमेशा लड़ते-झगड़ते रहते है। कोई उनसे मिलना और बातें करना पसंद नहीं करता।

छानबीन करने पर पता चला कि उनके माता-पिता का चरित्र भी ठीक वैसा ही है। ‘शर्मा जी’ का अपने पड़ोसियों से हमेशा झगड़ा रहता है।

बातें आम होती है, खत्म की जा सकती है, लेकिन ‘शर्मा जी’ का चरित्र कुछ ऐसा ही है कि वे बातों को बढ़ाते रहते है।

लेकिन ऐसा करते समय वे भूल जाते है कि उनके बच्चे भी उनका नक़ल कर रहे है। उनके बच्चों का भी आए दिन पड़ोसी बच्चों के साथ झगड़ा रहता है। ‘शर्मा जी’ इसे बुरा नहीं समझते, और हर बात में अपने बच्चों का ही पक्ष लेते है।

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एक दिन उनके बच्चे ने पड़ोसी की खिड़की का शीशा तोड़ दिया। ‘शर्मा जी’ ने इस पर बच्चे का ही पक्ष लिया और गर्व से कहा – “बच्चा खेल रहा था, खेलते समय ball खिड़की से लग गयी इसमें बच्चे का क्या दोष।”

बच्चा यह सुनकर मुस्कुरा दिया और जानते है अगले दिन ही क्या हुआ? बच्चे ने bat मारकर पड़ोसी के बच्चे का सिर फोड़ दिया। कितना ही अच्छा होता यदि ‘शर्मा जी’ अपने बच्चे का पक्ष न लेते।

अपने आस-पास इस तरह के अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे। हमारा इरादा ये नहीं कि गलती करने पर आप अपने बच्चे को धमकायें और उसे सजा दें।

इसके लिए तो उसे प्यार-दुलार से समझाना ही काफी होगा। लेकिन आपको याद है न, उससे पहले आपको अपने-आपको सुधारना होगा।

हमें पूरा विश्वास है कि अगर आपके अपने पड़ोसी से स्नेहपूर्ण संबंध है तो इसका सीधा असर आपके बच्चे पर पड़ेगा और वह भी पड़ोस के बच्चों से अच्छे संबंध बनाने का कोशिश करेगा।

  • अपना व्यवहार बदले।
  • पड़ोसियों को दोस्त समझें।
  • मित्रता के नियम का पालन करें।
  • सहकर्मियों के साथ अच्छा व्यवहार करें।
  • आपका बच्चा निश्चय ही व्यवहार-कुशल होगा। सर्वत्र उसकी प्रशंसा होगी।

आप खुद ही अपने शत्रु एवं मित्र है

अनेक महापुरुष का कथन है कि मनुष्य खुद ही अपना मित्र एवं शत्रु होता है। इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि मनुष्य का व्यवहार ही दूसरों को उसका शत्रु अथवा मित्र बनाता है।

व्यवहार-कुशल व्यक्ति शत्रुओं को भी अपना मित्र बना लेता है। और अगर आपका व्यवहार ठीक नहीं तो दोस्त भी आपके शत्रु बन जाते है।

क्योंकि आपका बच्चा सभी कुछ आपसे सीखता है। इसलिए जितने व्यवहार-कुशल आप है आपका बच्चा भी उतना ही व्यवहार कुशल होगा।

कुछ दोस्त आपके घर आते है। उस समय अपने मित्रों से जो बातें करते हो बच्चा उन्हें ध्यान से सुनता है। आपका अपने दोस्तों के प्रति किस प्रकार का व्यवहार है बच्चा यह भी समझता है।

आपने ये ध्यान दिया होगा कि जिन व्यक्तियों को आप पसंद नहीं करते आपका बच्चा भी उन व्यक्तियों को पसंद नहीं करता। जिन व्यक्तियों को आप अपना शत्रु समझते है आपका बच्चा भी उन्हें अपना शत्रु समझता है। मतलब बच्चा वही करता है जो उसके माता-पिता करते है।

और आपका व्यवहार ही किसी को आपका शत्रु अथवा मित्र बनाता है। इस बात को हम फिर दोहरा रहे है।

इस कथन की सत्यता की लिए विरोधी से मित्रता पूर्ण व्यवहार करके देखिए। आप देखेंगे कि विरोधी भी शत्रुता भूलकर आपका दोस्त बन जायेगा।

दोस्तों के साथ शुष्क एवं नीरसता पूर्ण व्यवहार करके देखिए, वे भी आपके शत्रु बन जायेंगे।

  • याद रखिये, बच्चे हमेशा अपने माता-पिता की गतिविधियों पर नजर रखते है और उनके व्यवहार की नक़ल करते है।
  • इसलिए बच्चे को सुधारने के लिए अपने व्यवहार को सुधारें।
  • बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के लिए, सफलताओं के लिए उसका व्यवहार कुशल होना जरूरी है।
  • ध्यान रखें, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कामयाब होने के लिए आपका व्यवहार कुशल होना जरूरी है।

मित्रों के प्रति आपका व्यवहार

कहते है अच्छे मित्रों का मिलना सौभाग्य की बात होती है। ये भी कह जाता है कि मित्रता का महल बनता तो देर से है, किंतु उसके गिरने में देर नहीं लगती। इसलिए हमारा व्यवहार ऐसा हो कि जो भी व्यक्ति हमारे जीवन में आए, वह हमारे व्यवहार से प्रभावित होकर सारी जिंदगी हमारा दोस्त बना रहे।

मित्रों के प्रति आपका व्यवहार, स्नेह एवं सहानुभूति पूर्ण होना चाहिए। आपके मन में अपने मित्रों के प्रति त्याग की भावना हो। यह भी ध्यान रखें कि आपके व्यवहार से कभी आपके मित्रों को दुख न हो।

  • सदैव अच्छे मित्रों से मित्रता करें।
  • ध्यान रहे, आपके मित्रों की गतिविधियाँ भी आपके बच्चे से छुपी न रहेंगी। आपके मित्र किस प्रकार के है, बच्चे को ये समझते देर न लगेगी और फिर उसके मित्र भी वैसे ही होंगे।
  • यदि आप चाहते है की आपका बच्चा अच्छे बच्चों के साथ रहे तो इसके लिए ये आवश्यक है कि अपने मित्रों का चुनाव करने में विशेष सावधानी बरतें।