ईश्वर एक नाम अनेक – सबका मालिक एक

संसार में जितने झगड़े हैं वे ईश्वर और धर्म के नाम पर ही अधिक होते देखे जाते हैं। हर धर्मावलम्बी अपने को ही सर्वश्रेष्ठ समझता है और दूसरों को हेय दृष्टि से देखते है। ये सब ईश्वर को न जानने के कारण है। प्रथम तो उसके नाम पर ही सब एकमत नहीं हैं दूसरे रूप को भी अपनी-अपनी दृष्टि से अलग-अलग देखते हैं।

संसार में अनेक धर्म हैं, सभी अपनी ही बात कहते हैं। भारत में भी देखा जाए तो कोई साकार को मानता है तो कोई निराकार को, कोई शंकर को मानता है तो कोई विष्णु को, कोई दुर्गा की उपासना करता है तो कोई काली की इत्यादि। इस प्रकार अनेक संप्रदाय अनेक रूपों को ईश्वर को मानते हैं।

ईश्वर को कोई किसी रूप में माने, किसी नाम से पुकारे इसमें कोई हर्ज नहीं परन्तु उसके नाम पर एक दूसरे से राग-द्वेष पैदा कर लेना इस बात का सूचक है कि उन्होंने ईश्वर को देखा ही नहीं, उसे जाना ही नहीं, यदि उसे जान लेते तो यह दृष्टि समाप्त हो जाती।

घर में एक ही मनुष्य को कोई पिता कहता है, कोई भाई कहता है, कोई चाचा कहता है, कोई पुत्र कहता है। व्यक्ति एक ही है अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है परन्तु इस बात को घर के सभी लोग जानते है इस वास्ते कोई झगड़ा नहीं, कोई भेदभाव नहीं।

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ईश्वर को न जानने के कारण सारे भेदभाव, राग-द्वेष फैल रहे हैं यदि परिवार में, समाज में, संसार में शांति से रहना है और रहने देना है तो मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है कि वह ईश्वर को जाने। जब वह जान लेगा तो यह दिखेगा कि ईश्वर एक शक्ति है सब में वही है हम जो चाहें उसका नाम रख लें, जो रूप मान लें।

जो ईश्वर को जान जाता है वह मुसलमान होकर भी मन्दिर में बजने वाले शंख की आवाज को सुनकर नाचने लगता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस गलियों में घुमने वाली भिखारिनों के चरणों पर सिर रख देते थे और कह उठते थे कि माँ तूने कैसा रूप बनाया है कहीं मन्दिर में प्रतिष्ठा होती है और कहीं गलियों में भिखारिन बनी घूमती है। वे जानते थे मन्दिर में बैठी माँ और गलियों में घुमती माँ एक ही है।

एक विद्यार्थी ने एक महात्मा से पूछा कि आप हमें यह बतला दीजिए कि ईश्वर है क्या ? दूसरे यह की हम ईश्वर को न माने तो क्या हानी होगी ?

महात्मा ने कहा – ईश्वर तो एक शक्ति है जो न दिखाई देती है, न समझ में आ सकती है। वह तो एक current के समान है जो सब में व्यापक होकर अनंत प्रकार से भास रही है और अनेक कार्य कर रही है। अनेक प्रकार के यंत्र, पंखे, बल्ब, आदि सब उसी से जगमगाते और चल रहे हैं। हम उसका नाम चाहे जो रख लें परन्तु यह तो मानना पड़ेगा कि वह एक शक्ति विशेष है जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को नियंत्रण में रख रही है।

तुम उसे मानो तो उसका कोई लाभ नहीं और यदि तुम उसे न मानो तो उस ईश्वर की हानी नहीं, हाँ तुम्हारी लाभ-हानी अवश्य है। वह यह है कि यदि तुम उस शक्ति में मिलोगे तो महान शक्तिवान हो जाओगे, विश्व में महान कहलाओगे, अनंत आनंद और ज्ञान पाओगे और यदि उसे नहीं मिलोगे तो जैसे हो वैसे ही रहोगे।

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