ईर्ष्या एक आग है जो दूसरों को जलाने के लिए तैयार की जाती है। परन्तु यह ईर्ष्या करने वाले को ही जलाती है। चिन्ता इतनी बुरी नहीं जितनी ईर्ष्या है। चिन्ता से मनुष्य का अन्दर से अवश्य जलाता है परन्तु ईर्ष्यालु तो एक अग्नि पैदा कर लेता है जो सभी को जलाने लगती है।
अपनी चिन्ता में लगा मनुष्य दूसरों की बुराई नहीं करेगा, परन्तु ईर्ष्यालु निन्दक हो जाता है। वह दूसरों की बुराई इसलिए कहता है कि मैं आगे बढ़ जाऊं, लोग उसके सामने मेरी प्रतिष्ठा अधिक करें यह होता नहीं, वह और भी निचे गिर जाता है।
समझदार मनुष्य दूसरों की बुराई सुनना नहीं चाहता। तुम एक विचित्र बात भी देखोगे कि जिन लोगों के साथ तुम भलाई कर चुके हो, उनमें कोई ऐसा निकल जाएगा जो आपकी ही बुराई करेगा।
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देखने में आया है कि बहुत से डाकू और लुटेरे लोग किसी का सब धन ले लेते हैं, वह सब कुछ देकर चुपचाप जाना चाहते हैं, परन्तु वह उसे इसलिए मर देते हैं कि इसे देखकर सबकी आँखें नीची होंगी। आदमी दूसरे से भलाई चाहता है परन्तु भलाई करने वाले को नहीं चाहता। ऐसे लोग जीवन में शांति कभी नहीं पा सकते।
एक आदमी ने पूछा कि बुरे आदमी की पहचान क्या है? दूसरे ने बताया कि यदि वह दूसरों की बुराई करने लगे तो समझो यह जरुर बुरा है। जिनके हृदय में ईश्वर प्रेम है, सदभावनाएँ हैं वह अपने शत्रुओं की भी बुराई नहीं करते।
कारण यही है कि जब किसी के पास हिंग है ही नहीं तो गंध कहां से आएगी। ऐसे ही मनुष्य ईश्वर व्रत्ति के मनुष्य हैं। इन्ही को संत कहते हैं। सज्जन पुरुष तो इन्हें देखकर प्रसन्न होते हैं, परन्तु दुष्ट मनुष्य इन्हें देखकर ईर्ष्या करने लगते हैं। अत: व्यक्ति को चाहिए कि ईर्ष्यालु व्यक्ति से बचे और साथ ही ईर्ष्या को भी देखते रहें कि यह कहीं हमारे अंदर में न चली जाय।
Key Of Success सबसे पहले मजबूत बने?
Key Of Success सबसे पहले मजबूत बने? हमारी लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति उस समय कम हो जाती है, जब हम यह सोचते है कि हमारी शक्तियां सीमित है। जिनके मन में ये सोच घर कर गया कि हम अपनी स्तिथि से घिरे हुए है, उनसे बाहर नहीं निकल सकते, वे व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है।
इन सोच ने उनकी लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति नष्ट नहीं की, तो कम अवश्य ही की है, इसलिए अपनी सोच को काम का रूप देने की उनकी योग्यता भी नष्ट हो जाती है। उन्हे अपने जीवन में असफलताओ का सामना करना पड़ता है और निर्धानता में जीवन बिताना पड़ता है। जो व्यक्ति महान कार्य करते है, उनकी संकल्प शक्ति रचनात्मक होती है।
उन्हे अपनी आस्था और काबिलियत पे इतना भरोसा होता है कि कोई विरोधी बात उनके पास भटकती तक नही। वे जिस काम को भी करने का निश्चय कर देते है, उन्हे पूरा करके ही छोड़ते है। Columbus ने जिस समय नयी दुनिया की खोज का बीड़ा उठाया, वो सारा यूरोप उसे पागल कहता था और उसका मज़ाक उड़ाता था, लेकिन अगर वो अपना विश्वास खो बैठता और अपना काम छोड़ देता, तो उसने जो महान काम किया, वो कौन कर पता?
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Fulton ने भाप से चलने वाले जहाज़ पर कोयला लादकर ले जाने की योजना का परीक्षण कर रहा था। वो कोयले की जितनी मात्रा जहाज़ पर लादना चाहता था, लोगो का कहना था की भाप से चलने वाला जहाज़ इतना कोयला नहीं ले जा सकेगा और बीच समुद्र में डूब जाएगा। उसका मज़ाक उड़ाने के लिए एक किताब तक लिखी गई, लेकिन वो अपने काम से विचलित नहीं हुआ। आख़िर में वो समय आया की भाप से चलने वाले जहाज़ में कोयला लादकर वो किताब भी समुद्र पार जा पहुंची।
अपनी शक्तियों में आस्था से ही मनुष्य उन्नति कर सकता है, क्योंकि आस्था में सकारात्मक उर्जा होती है। यह शक्ति व्यक्ति को निर्माण की ओर प्रेरित करके लक्ष्य में सहायक होती है। जहाँ आस्था और आत्मविश्वास नही, वहां व्यक्ति का काम और उत्साह बेकार हो जाते है।
अगर व्यक्ति संदेह और अनिश्चय के स्थान पर आत्मविश्वास का सहारा ले, तो काम करने की शक्ति कई गुना बढ़ती है, क्योंकि तब मन की एकाग्रता के कारण विरोधी शक्तियां नष्ट हो जाती है। आत्मविश्वास के कारण ही व्यक्ति अधिक दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। उस समय दाएं-बाएं नहीं देखता। इसी कारण उसकी शक्तियां इधर-उधर न बिखर कर एक साथ बनी रहती है।
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