सुभाष चन्द्र बोस के पास एक विद्यार्थी का पत्र

आदरणीय सुभाष चन्द्र बोस जी
मैं एक विद्यार्थी हूँ जो अपनी सोच को आपके सोच को के साथ मिलाने का निरंतर प्रयास कर रहा हूँ और ऐसा करने में मैं काफी हद तक कामयाब भी हुआ हूँ। आप हम हिन्दुस्तानियों के लाखों-कड़ोरों युवानों के प्रेरणा श्रोत हो और उनमें से मैं भी एक युवा हूँ जो आपके पद छाप पर चलने का प्रयास कर रहा हूँ।

मेरा नाम अंकित प्रसाद है, मैं एक विद्यार्थी हूँ पर मुझे विद्यार्थी होने का गर्भ नहीं होता क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि आज विद्या सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने का जरिया बन गई है, आज हर एक विद्यार्थी एक अच्छा विद्यार्थी या फिर एक बुरा विद्यार्थी के नाम से ही संबोधित किया जाता है। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसा क्यूँ है, क्या विद्या लेने की कोशिश में सफल न होने की वजह से हम एक बुरे विद्यार्थी हो जाते है या फिर जिसने हमें ऐसा बनाया है वो बुरा शिक्षक है।

आज हर एक बच्चा स्कूल, कॉलेज में विद्या लेने के लिए जाता है लेकिन वहां भी तो शिक्षा के नाम पे उन्हें प्रतियोगिता की नजरों से देखा जाता है, जिस बच्चे ने अच्छा प्रदर्शन किया वो अच्छा विद्यार्थी।

मैं ये नहीं कहता कि आज जितने भी स्कूल कॉलेज है वो सभी अच्छे नहीं है लेकिन अच्छे स्कूल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए बहुत अच्छी रकम भी अदा करनी पड़ती है। मुझे ये समझ नहीं आता कि अच्छे चीजें हासिल करने के लिए हमें इतने कीमत क्यूँ चुकानी होती है।

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आज हमारे देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके है लेकिन बहुत ही कम लोगो को ये पता होगा कि आज हम जिस आजाद हवा में सांस ले रहे है उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ आप ही हो। और मुझे दुख होता है कि ये सब हमें कभी बताया ही नहीं गया। ये है हमारा आजाद भारत का शिक्षा व्यवस्था।

शिक्षा के नाम पे लूट मची है। किसी को किसी से कुछ मतलब नहीं है बस सभी एक-दूसरे को पीछे छोड़ने में लगे हुए है।

आज अगर आप होते तो आपको पता चलता कि आज भी हम अपने समाज के गुलाम ही हैं, ऐसा समाज जो दूसरों को अपने आड़े आकने का काम करती है। हर समाज अपने आपको उत्कृष्ट करने में लगा हुआ है और ऐसा करने के लिए वो दूसरों को नीचा दिखने के लिए भी नहीं चुकता।

हिन्दी है वतन है हुन्दुस्तान हमारा, हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई हम सब है भाई भाई — ये बातें सिर्फ 15 अगस्त को ही सुनने को मिलती है। पर हकीकत हमारे सोच और सिधान्तों से परे होती है। आजादी के लिए जहाँ आपने सभी को एक जुट करने का काम बड़े ही बखूबी से निभाया वही आजादी के बाद सभी ऐसे अलग हो गए जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो।

पिछले 60 सालों से एक ही परिवार के सदस्यों ने देश को चलाने का ठेका ले लिया है और आगे भी ऐसा ही होगा, उनके पोते, पर-पोते, नाती सभी ऐसा ही करेंगे। क्योंकि हमारे आँखों में एक पट्टी बंधी हुई है जो सिर्फ अपने बारे में सोचने के लिए कहती है और हमारे माता-पिता भी यही ज्ञान देते है कि अगर दूसरों से बेहतर न हुए तो बेकार हो जरोगे।

मुझे बेहतर बनाने का सौक नहीं, मैं जनता हूँ कि बेहतर बनना एक कोरी कल्पना है। सभी भीड़ में भाग रहे है, सभी एक दूसरे को ठोकर मारना चाहते है। भले ही हमारा देश आजाद हो गया हो पर सही मायने में हम तभी आजाद होंगे जब हमारी सोच दूसरों की भलाई के काम आए।

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मैं बचपन से सुनते आया हूँ कि – ” भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा ” किसी का भला करो तो वही आपको धोखा देता है, मुझे दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि ये सच है। आज के समय में कोई किसी का नहीं, सभी अपने बारे में सोचते है। और जो लोग दूसरों के बारे में सोचते भी है तो उन्हें इतना दबाया जाता है कि वो कुछ करने के लायक ही नहीं रहते।

आपके क्या खूब कहा था कि – हमे मरना होगा ताकि हमारा भारत जी सके

हमारा भारत तब भी जीता था जब हमें आजादी नहीं मिली थी, बस फर्क इतना सा ही है कि उस समय हमारा भारत अंग्रेजों का गुलाम था और अब हमारे उत्कृष्ट राज नेताओं का गुलाम है। बहुत कुछ कहना है पर मैं उस लायक नहीं और न ही सक्षम हूँ कि मैं अपनी बात आपके समक्ष रख सकूँ, क्योंकि मैं बातों से ज्यादा कर्म करने में भरोसा रखता हूँ और एक न एक दिन मैं आपकी सोच को पूरे देश वासिओं के दिनों में जलने में जरुर कामयाब होऊंगा।

आपका
अंकित प्रशाद
एक विद्यार्थी

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