मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना- निबंध

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना- Hindi essay: आजकल आए दिन धर्म के नाम पर होने वाले संघर्षों के समाचार अखबारों में आते रहते हैं। कहीं अलग-अलग धर्म मानने वाले लोगों के बीच दंगे भड़क रहें हैं। कहीं एक ही धर्म के भिन्न-भिन्न संप्रदाय आपस में टकरा जाते हैं। इसका कारण अपने-अपने धर्म या संप्रदाय को अन्य धर्मों या संप्रदायों से श्रेष्ठ मानने की भावना है। धार्मिक कट्टरता का भाव ही सारे धार्मिक संघर्षों की जड़ है।

धर्म के नाम पर लड़ने वाले यह नहीं सोचते कि वास्तव में सभी धर्म एक ही सत्य पर आधारित है। यह सत्य है – मानवता अर्थात मनुष्य को मनुष्य के प्रति प्रेम, करुणा, दया और मैत्रीपूर्ण व्यवहार। हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन आदि सारे धर्म सहिष्णुता (tolerance) की सीख देते हैं।

‘अहिंसा परमो धर्म:’ की भावना सभी में मिलती है। बाइबल में ईसा की यह सूक्ति ‘LOVE thy neighbour as thyself ‘ और गीता में श्रीकृष्ण का यह कथन ‘ आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पंडित: ‘ एक ही सत्य को व्यक्त करते हैं।

कोई भी मजहब अपने अनुयायियों को लड़ना नहीं सिखाता। फिर भी इतिहास मजहबी हिंसा से भरा पड़ा है। मजहबी लड़ाइयों के पीछे कट्टरवादी और संकुचित राजनीतिज्ञों के स्वार्थ छिपे रहते हैं।

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मजहब के नाम पर लड़ते रहने के कारण ही ‘ वसुधेवी कुटुंबकम ‘ का आदर्श साकार नहीं हो पा रहा है। धर्म पर आधारित शत्रुता युद्ध का रूप ले लेती है। हिंसा की आग में न जाने कितने घर बस्तियां स्वाहा हो जाती है। कितनी माताओं की गोद सुनी हो जाती है, कितनी नारियों की मांग का सिंदूर उजड़ जाता है और कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं।

धर्म के नाम पर खेली जाने वाली खून की होलियाँ जीवन की दिपवालियों का गला घोंट देती है। विश्व इतिहास के पृष्ठ धर्मयुद्धों के रक्त से रंगे हुए हैं। ईसाईयों और मुसलमानों में हुए क्रुसेड और केथोलिकों द्वारा प्रोटेस्टेन्तो की हत्याएं कौन नहीं जनता? क्षत्रपति शिवाजी को मुगलों के अत्याचारों से जनता की रक्षा के लिए विवश होकर उनसे लड़ना पड़ा था। हिंदुस्तान का विभाजन भी अंग्रेजों की कूटनीति के कारण धर्म के आधार पर ही हुआ है।

दुख की बात है कि लोग धर्म के मर्म को नहीं समझते। वे अपने धर्म को दूसरे धर्मों से श्रेष्ठ मानते हैं। सभी धर्म ईश्वर, सत्य और मानवता की ओर ले जाते हैं और भाईचारे की शिक्षा देते हैं। आज की दुनिया में धार्मिक कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं है धार्मिक कट्टरता को आज सर्वधर्म-समभाव में बदलने की जरुरत है। ऐसा होने पर ही मानव-मानव के बीच की दूरी मिटेगी और हम सुख-शांति से रह सकेंगे।