मन की प्रतिरोधक क्षमता (psycho immunity) कैसे बढ़ाएं?

psycho immunity का तात्पर्य मानसिक अस्त-व्यस्त स्थिति से बचाव की क्षमता हासिल करने से है इसमें मन की प्रतिरोधक क्षमता के विकास का अध्ययन किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में psycho immunity एक न्यू कॉन्सेप्ट है इसका सीधा सा प्रयोग यह है कि अपनी मानसिक अस्वास्थ्य की स्थिति में अपना बचाव कैसे किया जाए और मानसिक तनाव, अवसाद जैसे रोगों से उत्पन्न साइकोसोमेटिक रोगों से कैसे बचा जाए।

हमारी प्रतिरोधक क्षमता को हम इम्यूनिटी कहते हैं, शरीर की वह क्षमता जिसकी वजह से हमारा शरीर रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं, विषाणु से हमारे  शरीर को सुरक्षा प्रदान करते हैं जिससे हमारा शरीर रोगों से मुक्त रहे , हम निरोग रहे ,और लंबा जीवन जी सके इसे bio-immunity कहा जाता है।

हमारे दैनिक जीवन में आने वाले अनेकों प्रकार के मानसिक तनाव पैदा करने वाली स्थितियां से हमारा मन अपनी पूरी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार हमारा साथ देता है और वह क्षमता एवं सामर्थ्य बल जिसके बल पर हमारा मन विभिन्न प्रकार के मनो विकारों से लड़ता है और स्वयं को इन मनोविकार से सुरक्षित रखता है और इन मनोविकारों से बचाव करता है उस क्षमता को psycho immunity कहते हैं।

साइको इम्यूनिटी क्या है :- what is psycho immunity in Hindi

साइको इम्यूनिटी अर्थात हमारे मन के द्वारा हमारे मनोविकार या मनो विकृतियों या mind की गलत स्थितियों से लड़ने की मनोप्रतिरक्षा प्रणाली या ब्रेन के सुरक्षा का सिस्टम है जब तक मनुष्य की मानसिक शक्ति मजबूत रहती है स्वस्थ रहती है तब तक मन में किसी भी नकारात्मक एवं मन को दूषित करने वाले विचारों से प्रभावित नहीं होता है , किंतु जब मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक शक्ति कमजोर हो जाती है या कमजोर होने लगती है तो मनुष्य के मन में, दिमाग में, मनोविकार ,मनोविकृति और मनोरोग रोगों  की आंधी आने लगती है। मनुष्य की वर्तमान मानसिक स्थिति इसका एक उदाहरण है।

भारतीय मनोविज्ञान में साइको इम्यूनिटी:-

भारतीय मनोविज्ञान के जनक महर्षि पतंजलि ने psycho immunity को एक्टिविटी आफ माइंड  से जोड़कर देखा है मन और उसके कार्य कलाप जब स्थिर एवं शांत होते हैं तो मन की क्षमता में असाधारण रूप से वृद्धि होती है और यही मन का कंट्रोल और मानसिक क्षमता का विकास ही साइको immunity कहलाता है।

योग मनोविज्ञान के अनुसार मन की अनंत एक्टिविटीज होती हैं जिनमें रियल नॉलेज, फाल्स नालेज, इमैजिनेशन ,सेमी कॉन्शसनेस ,और याददाश्त यह पांच प्रमुख मन की क्रियाएं हैं पांचों को सही ढंग से जान और समझ लेने पर और सही सदुपयोग करने पर जीवन में विकास होना शुरू हो जाता है और मन -चित् के विकार या कमियां दूर होने लगते हैं और मानसिक क्षमता में चमत्कारिक रूप से वृद्धि होने लगती है।

यह psycho immunity की सुपर सिचुएशन है। जब हमें किसी भी क्षेत्र का ज्ञान होता है तो हम सही कार्य करते हैं और अपने मन मस्तिष्क का सही उपयोग कर सकते हैं किंतु गलत जानकारी हमारे रास्ते में बाधा बनकर हमें हानि पहुंचाती है। और कल्पना के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं  सही कल्पना विकास के रूप में स्पष्ट होता है इसके विपरीत नेगेटिव कल्पना हमें आत्मबल से हीन और दुर्बल बना देती है।

आजकल अर्ध विक्षिप्त (neurosis ) कि स्थिति देखने को मिल जाती है इसका कारण है जागते हुए भी सोते रहना, हमें जो पसंद है ,वही सही है, चाहे उसका परिणाम हमारे लिए, हमारी परिवार ,देश, समाज के लिए नुकसानदायक ही क्यों ना हो। वही सही है।

जो हम जानते हैं।और इस पर भी यदि जानकारी हासिल करते रहने की प्रवृत्ति ना हो तो और भी नुकसानदायक स्थिति बन जाती है।psycho immunity के अभाव में हमारे याददाश्त भी प्रभावित होता है।योग मनोविज्ञान के अनुसार हमारे पूर्व जन्म में के ज्ञान, भावनाएं, वासनाएं, क्रियाएं और उन सब के संस्कार हमारे अचेतन (unconscious) मन को बनाते हैं साइको immunity का सीधा संबंध अचेतन मन से है प्रत्यक्ष का ज्ञान , प्रत्यक्षीकरण ,अनुमान लगाना , शब्दों का ज्ञान और प्रयोग, भ्रम की स्थिति होना, और उसका निवारण होना , स्मृति, ज्ञान, याददाश्त का असर होना ,विकल्पों की स्थिति होना, अनुभव करना, मन का स्थिति अस्थिर होना, और संकल्प लेना, चेतन मन की एक्टिविटीज है। योग मनोविज्ञान में अति मानस(super-conscious) स्थिति भी जोड़ा गया है।

सुपरकॉन्शियस मन की स्थिति मन के परिशोधन और परिमार्जन ( rectifying and redesigning) के बाद आती है। जब मन के सभी दोषों और कमियों, विकारों को मुक्त कर दिया जाता है। फ्री कर दिया जाता है। और उसकी मन की प्रक्रियाओं ( माइंड एक्टिविटीज) को rest or stop  कर दिया जाता है।तब यह सुपरकॉन्शियस की स्थिति की प्राप्ति होती है।

आधुनिक मनोविज्ञान :-

आधुनिक मनोविज्ञान में psyche ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ मन से होता है। यहां पर मन का स्वरूप तीन रूप में माना जाता है।चेतन मन ,अचेतन मन, और अवचेतन मन। जो बातें हमारे अचेतन में होती हैं वही हमारे चेतन मन के द्वारा दिखाई देती हैं इसलिए हमें लगातार कुछ दिनों तक अपने मानसिक स्थिति को नियंत्रित एवं नियमित करना पड़ता है।ताकि हमारी अचेतन और अवचेतन में सही रूप से सही विचारों को स्थान मिल सके। और गलत विचारों का को हटाया जा सके  और ऐसा कर लेने पर ही हमारे मन की इम्यूनिटी बढ़ सकती है।

X