पंचकर्म आयुर्वेद विज्ञान की वह विधि है जिसमें रोगी के शरीर में बढ़े हुए दोषों को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है जिससे रोग का पूर्ण नाश हो जाता है तथा रोगी के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी अधिक आ जाती है कि वह पुनः रोग ग्रस्त नहीं होता। पंचकर्म को कुछ विद्वान मेजर ऑपरेशन या पांच ऑपरेशन भी कहते हैं। उनका मानना है कि शल्य चिकित्सा से भी रोगी के खराब हिस्से को शरीर से बाहर कर दिया जाता है और पंचकर्म में भी वर्णन विरेचन निरोप अनुवासन और नस्य के द्वारा शरीर के विकारों और दोषों को बाहर कर दिया जाता है l
पंचकर्म में भी शल्यक्रिया की तरह पूर्व कर्म प्रधान कर्म तथा पश्चात कर्म क्रियाएं क्रमशः करनी पड़ती है। ऑपरेशन शब्द किसी अभियान या मुहिम के लिए प्रयोग किया जाता है। किसी हानिकारक तत्व को योजनाबद्ध तरीके से येन-केन-प्रकारेण अपनी सीमा से बाहर कर के सफलता प्राप्त करती है ठीक उसी प्रकार एक उद्देश्य विशेष को लेकर एक चिकित्सक रोगी रोग को शरीर रूपी स्थान से बाहर करता है, तो यह उस चिकित्सक का ऑपरेशन ही हुआ।
आज हम पंचकर्म से होने वाले फायदे के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि आखिर क्यों पंचकर्म हमारे शरीर के लिए हमारे रोग को बाहर करने में मदद करता है
पंचकर्म की विशिष्टता
पंचकर्म आयुर्वेद चिकित्सा में एक विशिष्ट स्थान पर स्थित है तभी तो इसका विदेशों में प्रसार होने लगा। पंचकर्म की विशेषता है व्याधियों का समूल नाश क्योंकि यह क्रियाव्याधियों के मूल कारण को निकाल सकती है। इन तथ्यों को लेकर पंचकर्म की विशेषता प्रतिपादन में संपादित रोगों की सरल चिकित्सा विशेषांक का यह उद्धरण प्रसांगिक है।
1. रोग का समूल नाश
जब शरीर में दोषों का बहु प्रकोप पता चले तब समन, लंघन और कई उपचारीय शकित ना करके शोधन चिकित्सा करनी चाहिए क्योंकि पंचकर्म से ही लोगों का समूल नाश (पूरी तरह से ) हो सकता है। दूसरे शब्दों में यूं कहें कि पंचकर्म एक ऐसी विधा है जो रोगों का समूल नाश कर सकती है।
पंचकर्म से शरीर में उपस्थित विकार, दोष, टॉक्सिंस, विषैले तत्व पूरी तरह से बाहर निकल जाते हैं। परिणाम स्वरुप रोग समूल नष्ट हो जाता है। पुनः रोग उत्पत्ति की संभावना नहीं रहती। जबकि समन चिकित्सा के बाद रोग उत्पत्ति की संभावना बनी रहती है।
2. सम्पूर्ण चिकित्सा और कायाकल्प
कई प्रयोग और अनुसंधान से यह ज्ञात हो चुका है कि पंचकर्म से केवल रोग विशेष में सुधार नहीं होता अपितु शरीर की संपूर्ण चिकित्सा हो जाती है। पंचकर्म से कायाकल्प की सिद्धि हो जाती है। आरोग्यता के अनुसार आयुर्वेद मतानुसार रोग का मूल कारण दोषों की विशालता है और दोषों का संग रहना ही आरोग्यता है। एक नवयुवक रोगी पंचकर्म विशेषज्ञ के पास जीर्ण अम्लपित्त की शिकायत लेकर आता है उसे सिर दर्द भी है, स्वप्नदोष भी हो जाता है, कब्ज भी रहता है, घबराहट , बेचैनी और अनिद्रा रहती है।
पंचकर्म चिकित्सा कि मदद से वह इलाज करा लेता है उसी दिन उसकी बेचैनी घबराहट समाप्त हो जाते हैं। इस तरह से पंचकर्म पूर्ण रुप से चिकित्सा कर पाने में संभव है जिसकी मदद से एक ही बार में पूरे शरीर से रोगों का नाश किया जा सकता है।
3. स्वास्थ्य रक्षण
पंचकर्म से आंतरिक ऊर्जा का विकास होता है। महत्वपूर्ण अंग लीवर, दाएं गुर्दे, फेफड़े आदि कार्य क्रम होते हैं जिससे आंतरिक शक्ति बढ़ती है। पंचकर्म से शरीर शोधन के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से व्याधिछमक यानी की इम्यूनिटी में बढ़ोतरी होती है। वैज्ञानिक तथ्य तो यह है कि शरीर में जीवनी शक्ति जितनी मजबूत होगी उतनी ही रोग प्रतिरोधक क्षमता श्रेष्ठ होती है।
जीवनीय शक्ति को ही आयुर्वेद में व्याधि क्षमत्व कहा जाता है। यह रोग केबल को नष्ट करती है और रोगों की उत्पत्ति रोकती है। एक स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन लाखों जीवाणुओं कीटाणुओं के संपर्क से गुजरता है पर तब भी स्वस्थ बना रहता है क्यों ? आखिर यह रोग कारक जीवाणु हमें क्यों नहीं बीमार कर लेते। इसका उत्तर यही है कि जीव की शक्ति उनका मुकाबला करती है।
आहार-विहार काल विपर्यय जैसे गर्मी में गर्मी ना पढ़कर वर्षा प्रारंभ हो जाना, वर्षा का काल में वर्षा ना होकर, घर में सुख आदि होना, प्रज्ञापराध और साथ में शब्द स्पर्श रूप रस गंध सेवन भी हितकर आहार का सेवन करने वाले को भी रोगी बना देते हैं। पंचकर्म द्वारा शरीर का अंत परिमार्जन होकर रोगों की उत्पत्ति के पूर्व मौजूद हुए विकार दोष, टॉक्सिंस , विषैले तत्व, पूरी तरह से बाहर निकल जाते हैं। अतः स्वास्थ्य का संरक्षण होता है।
4. दीर्घायु
दीर्घायु कैसे हो ? इसके पूर्व इस कारण पर चर्चा होनी चाहिए कि आयु का हनन क्यों होता है ? इसका महर्षि आत्रेय उत्तर देते हैं कि आहार विहारों के सेवन से मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले की भांति नहीं होती तथा शरीर रोगों से पीड़ित होने लगता है। अतः धीरे-धीरे प्राणियों की आयु का हनन होने लगता है।
पंचकर्म द्वारा आहार विहार के सेवन से जो रोग कारक तत्व शरीर में उत्पन्न हुए उनका निर्धारण हो जाता है। एक एक कोशिका विश्व विकार रहित हो जाती है। परिणाम तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। जिससे रोगों की उत्पत्ति नहीं होती और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
5. औषधियों का प्रभाव
प्रायोगिक बात यह है कि गंदे कपड़े में रंग-रोगन का प्रभाव नहीं होता, बिना धुलाई की एक इंजन की ओर कॉलिंग नहीं करनी चाहिए। ऐसे ही जब शरीर विजातीय तत्व यानी टॉक्सिंस से भरा हो तो औषधियों का प्रभाव कितना व कैसा होगा यह सभी जानते हैं। इधर हम शरीर में दवाइयां पर दवाइयां करते जा रहे हैं पर उनका प्रभाव नहीं दिख पा रहा है। हर साल कई ऐसे किडनी फेल्योर रोगी आते हैं जिनका 3 प्रकार के परिणाम मिलते हैं।
1. रोगी के शरीर में किडनी फेल में बिल्कुल लाभ नहीं होता क्योंकि वह असाध्य श्रेणी के होते हैं
2. कुछ में आंशिक और अस्थाई लाभ होता है।
3. कुछ रोगी जो असाध्य श्रेणी के होते हैं उनमें पूर्ण लाभ हो जाता है। इससे आधुनिक चिकित्सकों को अपने प्रयोगों के द्वारा प्रत्यक्ष दिखा सकते हैं कि हम अपनी वैज्ञानिक पद्धति पंचकर्म के बलबूते परअधिकांश किडनी रोगियों को डायलिसिस से उच्च रक्तचाप ग्रस्त रोगियों को रक्तचाप नियंत्रण औषधियों से छुटकारा दिला सकते हैं। पंचकर्म से एक और फायदा होता है कि अलग मात्रा में भी औषधि अपना कार्य प्रदर्शित कर देती है। आयुर्वेद से औषधियों के बारे में जो बताया गया है उसकी सत्यता पंचकर्म से ही सिद्ध होती है।
6. बुढ़ापा ठहरता है
40 की आयु पार करने के बाद शारीरिक और मानसिक क्षमता में कमी आने लगती है, पौरुष शक्ति भी कम होने लगती है, फ्री रेडिकल्स और स्टेशन संबंधी समस्याएं बढ़ने लगती है, लोग एंटीआक्सीडेंट ढूंढने लगते हैं। ऐसी स्थिति पंचकर्म से शरीर निर्विकार होता है , उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, एंटीआक्सीडेंट का कार्य होने लगता है। तभी तो पंचकर्म को व्यवस्थापक कहा गया है।
7. हानिकर प्रभाव नहीँ
योग्य और कुशल पंचकर्म विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में पंचकर्म कराने और चिकित्सा अर्थी द्वारा चिकित्सक के निर्देशों का पालन करने से किसी भी प्रकार के दुष्परिणाम या साइड इफेक्ट जैसे प्रभाव होने की गुंजाइश नहीं रहती। पंचकर्म का प्रभाव सदैव लाभ कर ही होता है तभी तो भारत सरकार आयुष योजना के तहत पंचकर्म केंद्रों को हर जिले में स्थापित करने की योजना को कार्य रूप देता जा रहा है।
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