शेर या धोबी का गधा – पंचतंत्र की कहानी

Dhobi ka gadha, panchtantra ki kahani.. एक समय की बता है। एक किसान अपने खेत में धान की कटाई कर रहा था। इतने में शाम हो गई। अंधेरे को देखकर वह चिंतित हो उठा। चिंतित मन से किसान मजदूरों को चेतावनी देने लगा कि कटाई का काम जल्द पूरा कर लिया जाए, क्योंकि जितना भय अंधेरे का नहीं है, उससे ज्यादा भय साँझा भाई का है। साँझा भाई से जान बची तो शेर और गीदड़ भी आते-जाते रहेंगे।

किसान की बातों को एक शेर सुन रहा था। वह शिकार की तलाश में गन्ने के खेत में छिपा था। किसान की बातों को सुनकर उसके दांत खट्टे हो चुके थे। वह किसान पर आक्रमण करने के काबिल नहीं रह गया था। शेर भय के मारे बैठा-बैठा कांप रहा था।

उसे गर्मी के महीने में पसीना आ रहा था। जिस साँझा भाई के भय से किसान डरकर भागना चाहता था, वह उस साँझा भाई को अपने से भी खूंखार और खतरनाक जंगली जानवर समझने लगा था।

थोड़ी देर में बहुत जोर की आंधी आयी, किसान धान के डंठलो को इकट्ठा कर एक पेड़ पर जा बैठा। वहीं से उसको अपना खेत और मजदूर दिखाई दे रहे थे। इतने में जोरों की बिजली कड़की। गांव के धोबी का गधा डरकर रस्सी तुड़ाकर भागा।

धोबी उसके पीछे-पीछे दौड़ता हुआ गन्ने के खेत में आ गया। वहां शिकार की तलाश में शेर साँझा भाई के डर से दुबका बैठा था। अंधेरे में शेर को गन्ने के खेत में छिपकर बैठा हुआ देखकर धोबी ने समझा कि मेरा गधा यहां आकर छिप गया है और शेर ने समझा कि यह वही साँझा भाई है, जिसके डर से किसान भी घबरा रहा था।

तभी धोबी शेर के दोनों कान पकड़कर उसके ऊपर सवार हो गया। उसके कान उमेठते हुए कहा – ये गधे, बोझ ढोने के भय से यहां आ छिपा है। चल घर पहले तेरी खबर लेता हूं। उसके बाद कोई काम करूंगा।

भयभीत शेर वहां से चल पड़ा।

वह अपने मन में सोचते हुए आगे की ओर आहिस्ता-आहिस्ता पैर रख रहा था। इस भय से कि साँझा भाई उसकी पीठ पर सवार है।

घबराये शेर ने आगे देखा, न पीछे। वह आगे की ओर बढ़ता रहा। धोबी अपने घर पहुंचकर उसे खूंटे से बांधकर सोने चला गया।

दूसरे दिन धोबी घाट पर जाने के लिए कपड़ों का गट्ठर लेकर गधे के पास आया, तो वह चकित रह गया। गधे की जगह खूंटे से एक शेर बंधा था। शेर देखकर भी वह डरा नहीं। बुद्धि और चतुराई का उपयोग करते हुए गधे का काम शेर से लेता रहा।

एक दिन शेरनी के बच्चे का झुंड धोबी घाट के पास से गुजर रहा था, तभी उन्हें धोबी घाट पर एक खूंटे से बंधा शेर दिखाई दिया।

यह दृश्य देखकर शेरनी और उनके बच्चे धोबी की चतुराई को समझ गये। वे अपने मन में सोचने लगे – कहां जंगल का राजा शेर और कहां यह धोबी?

हम लोगों के राजा के लिए यह काम उचित नहीं। शेरनी के बच्चे ने अपनी भाषा में कहा – हे जंगल के राजा शेर। तुम मूर्ख बनाए गये हो। तुम अपने आपको पहचानो, अपनी कौम को पहचानो, अपनी भाषा को पहचानो। तुम गधे के बच्चे नहीं हो, तुम एक शेरनी के बच्चे हो। क्या शेरनी ने तुम्हें इसीलिए जन्म दिया था कि तुम धोबी के जाल में फंसकर कपड़ों के गट्ठर ढोया करोगे, नहीं नहीं। तुम तो जंगल के राजा हो। तुम्हें अपने आपको पहचानना होगा। अपनी आजादी के लिए धोबी से लड़ना होगा। तभी तुम्हारी पीठ से कपड़ों का गट्ठर उतर सकता है। यदि ऐसा नहीं करोगे, तो जीवन भर गुलामी की जंजीर में जकड़े रहोगे।

अपनी जाती के बच्चे की ऐसी निडरता भरी बातें सुनकर शेर की आँखों के साथ उसके दिमाग का दरवाजा भी खुल गया। वह अपने आपको जान गया तथा उसके दिल और दिमाग से साँझा भाई के डर का भूत उतार गया।

वह धोबी को एक साधारण मानव और चालाक समझने लगा।

अब वह इस टोह में था कि कब धोबी कपड़ा धोते-धोते ऊँघे और कब वह उसे मारकर खाये।

वह अपनी इस मुर्खता का बदला धोबी से लेना चाहता था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि धोबी बहुत ही सतर्क रहता था।

एक दिन शेर ने धोबी से कहा – तुम मुझे अपना गधा क्यों समझ रहे हो, तुम अपना हित चाहते हो, तो मुझे तत्काल आजाद कर दो।

वाह, धोबी मुस्कराकर बोला – अगर तुम्हें छोड़ दूं, तो मेरे कपड़ों का गट्ठर कौन ढोयेगा?

तुम अपना गधा ढूँढ क्यों नहीं लेते?

तुम उस दिन अगर गन्ने के खेत में नहीं छिपते तो मैं अपना गधा क्यों खोता, इसलिए मैं तुम्हें तब तक नहीं छोड़ सकता, जब तक मेरा गधा नहीं मिल जाता।

शेर समझ गया कि यह धोबी यूँ नहीं मानेगा। उसने पूरी ताकत के साथ जोर लगाया और खूंटे से बंधी गले की रस्सी तोड़कर धोबी पर झपटा – ए दुष्ट, तू मुझे गधा समझता है, अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूं।

शेर का आक्रामक रुख देखकर धोबी अपनी जान बचाकर भागा। अब आगे-आगे धोबी और पीछे-पीछे शेर। भागते-भागते धोबी थक गया। तभी शेर ने ऊँची छलांग लगाई और धोबी को दबोच लिया और उसे मार डाला। आखिर धोबी शेर को छोड़ देता, तो जान बच जाती। उसने अपनी मुर्खता से अपनी जान गँवा दी।

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