प्राण वह वायवीय शक्ति है जो समस्त ब्राह्मांड में व्याप्त है। यह सजीव या निर्जीव सभी वस्तुओं में मौजूद है। पत्थरों, कीड़े-मकोड़ों प्राणियों तथा मानव जाति में भी यहस्थित है। सांस द्वारा ली जाने वाली हवा से उसका घनिष्ठ संबंध है लेकिन यह ना समझ लेना चाहिए कि दोनों एक ही चीज है। प्राण- प्रकार और आवश्यकता, पढ़कर जीवन करे स्वस्थ प्राण हवा की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्राण वह मूलशक्ति है जो हवा तथा समस्त सृष्टि में उपलब्ध है।
दरअसल, प्रण मनुष्य की वह शक्ति है जिसके बिना मनुष्य का जीवन नहीं रह सकता है। यह शरीर में हर चीज के आदान-प्रदान में कार्यरत है। खैर, इन बातों को छोड़कर हम सीधा प्राण के प्रकार और इसका शरीर में महत्व के बारे में जानते हैं। शरीर में मौजूद प्राण को 5 विभागों में बांटा गया है देखा जाए तो इसे पंचप्राण कहा जा सकता है यह नीचे दिए गए हैं।
1. प्राण
यह पूरी शरीर में नहीं केवल एक विशेष अंग में स्थित प्राण है। डायफ्राम के मध्य में इसकी स्थिति है। स्वसन अंग, वाणी संबंधी अंग, निकल या अन्नालिका (gullet) से इसका बहुत गहरा संबंध है, साथ ही इन्हें क्रियाशील बनाने वाली मांसपेशियों से भी इसका काफी गहरा संबंध है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा सांस नीचे की ओर खींची जाती है।
2 अपान
यह नाभि के नीचे स्थित है, यह शक्ति बड़ी आत को बल प्रदान करती है। वृत्त, गुदाद्वार तथा मूत्र इंद्रियों को भी शक्ति देती है। अतः प्राथमिक रूप से इसका संबंध प्राणवायू के गुदाद्वार तथा साथ ही नासिका एवं मुह द्वारा निष्कासन से है।
3. समान
इसका संबंध छाती एवं नाभि के मध्यवर्ती क्षेत्र से है। यह पाचन संस्थान व कृती आर्थिक लाभ एवं जठार तथा उनके रचनाओं को प्रेरित और नियंत्रित करता है दिल तथा रक्ताभिसरण संस्थान को भी क्रियाशील बनाता है।’प्राण- प्रकार और आवश्यकता, पढ़कर जीवन करे स्वस्थ’ भोज्य पदार्थों में अनुकूलता लाने का इसी का कार्य है।
4. उदान
इस प्राण शक्ति द्वारा कंठ नली (गले की नली) के ऊपर के अंगों को नियंत्रित नियंत्रण किया जाता है। नेत्र, नाक. कान आदि सभी शरीर की इंद्रियों और मस्तिष्क इसी के शक्ति के द्वारा कार्य करते हैं इसकी अनुपस्थिति में हम में सोच विचार की शक्ति नहीं रह जाएगी साथ ही पूरे जगत के प्रति चेतना भी नष्ट हो जाएगी।
5. व्यान
यह जीवन से शक्ति संपूर्ण शरीर में व्याप्त है। यह अन्य शक्तियों के मध्य सहयोग स्थापित करती है, समस्त शरीर की गतिविधियों को नियमित तथा नियंत्रित करती है, सभी शारीरिक अंगों तथा उनसे संबंधित मांसपेशियों, पेशी तंतु और नाड़ियों और संधियों में समरूपता लाती है तथा उन्हें क्रियाशील बनाती है। यह शरीर की लंबी उपस्थिति के लिए भी जिम्मेदार है।
उपप्राण
प्राचीन संतो एवं योगियों ने शरीर में प्राण का वर्गीकरण ही नहीं वरन पांच भागों में उप वर्गीकरण भी किया है, इन्हें उपप्राण कहते हैं। यह क्रमशः नाग, कूर्म, क्रिकर, देवदत्त कथा धनंजय हैं। इनका संबंध छीकना, जम्हाई लेना, खुजलाना, पलक झपकना, हिचकी लेना आदि छोटे कार्य के संपादन से है।
प्राण- शरीर एवं आत्मा के मध्य की कड़ी
प्राण के माध्यम से ही शरीर एवं आत्मा के मध्य संबंध स्थापित होता है। प्राण चेतना एवं भौतिक तत्व को जोड़ने वाली शक्ति है इसे तत्व एवं शक्ति का अत्यंत सूक्ष्म रुप कहा जा सकता है, जो शरीर में व्याप्त नाड़ियों या जीवनशक्ति नलिकाओं द्वारा स्थूल शरीर को किया शील बनाती है, जीवन शक्ति प्रदान करती है, जीवन शक्ति प्रदान कर शरीर को जीवित रखने में बहुत बड़ा काम करती है। अन्यथा शरीर निर्जीव अवस्था को प्राप्त हो जाएगा। प्राण एवं श्वसन वायु का गहरा संबंध है लेकिन वह दोनों एक ही वस्तु नहीं है जो हम शासन द्वारा लेते हैं। श्वसन अधिक सूक्ष्म प्राण को वहन करती है।
वायु का नियंत्रण रहता है प्राण में
परंपरा अनुसार सभी प्राण शक्तियों पर वायु का नियंत्रण रहता है, प्रत्येक वायु का संबंध प्रत्येक प्राण के साथ है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो अपान वायु का नियंत्रण अपान जीवन शक्ति से है। श्वसन प्रक्रिया द्वारा सही वायु उत्पन्न होती है वायु के माध्यम से ही प्राणायाम की क्रिया शरीर की प्राण शक्ति पर प्रभाव डालती है।
प्राण से ही बना है प्राणायाम
प्राणायाम प्रक्रियाओं की वह श्रृंखला है जिसका उद्देश्य शरीर की प्राण शक्ति को उत्प्रेरणा देना, बढ़ाना तथा उसे विशेष अभिप्राय से विशेष क्षेत्रों में संचालित करना है। प्राणायाम का अंतिम उद्देश्य संपूर्ण शरीर में प्रवाहित प्राण को नियंत्रित करना भी है प्राणायाम से शरीर को लाभ है परंतु इसे शरीर को अतिरिक्त ओषजन प्रदान करने वाला मात्र श्वसन व्यायाम ही नहीं समझना चाहिए। सूछ्म रूप से प्राणायाम स्वसन के माध्यम से प्राणमय कोष की नाड़ियों, प्राण नलिकाओं एवं प्राण के प्रवाह पर प्रभाव डालता है। “प्राण- प्रकार और आवश्यकता, पढ़कर जीवन करे स्वस्थ” प्राणायाम से नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है तथा भौतिक और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
स्वांस रोकने से प्राण पर नियंत्रण प्राप्त होता है तथा साथ ही मन पर अधिकार भी किया जा सकता है।
एक अच्छे प्राण के द्वारा बढ़ाया जा सकता है उम्र।
प्रत्येक श्वांस की लंबाई बढ़ा कर मनुष्य कि अवधि या उम्र भी अवश्य बढ़ाई जा सकती है। प्रत्येक श्वास को दीर्घ और गहरी बनाकर प्रत्येक श्वांस से अधिक प्राणशक्ति ग्रहण की जा सकती है। इस प्रकार एक व्यक्ति अपने जीवन का अच्छा उपभोग कर सकता है। देखा जाए तो सर्प हाथी कछुआ आदि जानवर लंबी सांस लेने लेते हुए लंबे समय तक जीवित रहते हैं इसके विपरीत तेज गति से सांस लेने वाले पक्षी कुत्ता खरगोश आज की जीवन जीने की सब बहुत कम होती है।
इस तरह से अगर आप प्राण को थाम लेने कि शक्ति रखते हैं तो आप अपने उम्र को बढ़ा सकते हैं और अपने ध्यान को भी केन्द्रित कर सकने में कामयाब हो सकते हैं।
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