Pregnancy के दौरान क्या तकलीफ होती है?

Pregnancy ke doran kya problem hoti hai? Pregnancy के दौरान क्या तकलीफ होती है? अगर आप पहली बार माँ बनने वाली है तो आपके लिए गर्भावस्था का हर एक पल आपको थोड़ा तनाव में डाल सकता है क्योंकि आपका शरीर आपके नियंत्रण में नहीं होता और आप हमेशा चिंतित रहते हो कि ऐसा क्यूँ हो रहा है और क्या ये सामान्य है?

इस मामले में घर के बड़े, जैसे – सास, माँ, ननद आपकी काफी मदद कर सकती है। आज हम आपको इसी के बारे में बताएँगे कि गर्भावस्था में क्या-क्या तकलीफे हो सकती है और किस हद तक सब सामान्य रहता है। तो आइए जानते है।

गर्भावस्था में तकलीफें

1. मिचली आना

मिचली आना मतलब जी मचलना। ऐसी स्तिथि उल्टी आने से पहले महसूस होती है। अगर आपको सुबह सुबह मिचली आ रही है तो ये सामान्य बात है। गर्भधारण के बाद सुबह के समय मिचली आना आम समस्या है। यह समस्या धीरे-धीरे अपने आप काबू में आ जाती है। इसलिए अगर आपको मिचली आ रही है तो परेशान होने कि जरुरत नहीं है, ये सामान्य बात है और हर गर्भवती महिला को मिचली आती ही है।

2. कमर में दर्द रहना

आप गर्भवती हो और आपके शरीर में एक नयी जिंदगी पनप रही है और वक़्त के साथ साथ वो बड़ा भी हो रहा है। पेट में पल रहा शिशु वक़्त के साथ-साथ बढ़ता है और ऐसे में आपके पेट का आकर भी बढ़ेगा, पेट में खिचाव और बच्चे के भार से आपके कमर में दर्द तो होगी ही। तीन महीने तक कमर दर्द बढ़ने लगता है, क्योंकि शरीर का तनाव और बच्चे का भार बढ़ता जाता है।

3. प्रसव (Delivery) के बाद कमर में दर्द

कुछ महिलाओं का कमर दर्द प्रसव के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन जो महिलाएं ध्यान नहीं रखती उनमें यह समस्या हमेशा के लिए घर कर जाती है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पीठ और कमर दर्द की समस्या हो जाती है। डॉक्टर से जरुर दिखा लें।

ऐसा नहीं है कि प्रसव के तुरंत बाद में ही आपका कमर दर्द एकदम से गायब हो जाए, गायब के कुछ दिन के बाद ही आपको अपने कमर और पेट दर्द में राहत महसूस होगी। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो आप अपने डॉक्टर से जरुर इसके बारे में परामर्श करे।

4. भारी सामान न उठाये

आप गर्भवती है तो आपके शरीर में बदलाव 2 महीने के बाद ही देखने को मिलेंगे, मतलब के शिशु के विकास के साथ-साथ आपके पेट का आकर भी बढ़ता हुआ नजर आता है जो कि 2 महीने के बाद ही कुछ हद तक आप देख सकते हो।

गर्भावस्था के सुरुवाती दिनों में गर्भावस्था के लक्षण का पता नहीं चलता और अगर आपको पता है कि आप गर्भवती हो और फिर भी कड़ी मेहनत, भारी सामान उठाना जैसे काम कर रहे हो, तो ये आपके और आपके बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है।

गर्भावस्था के दौरान अगर आप कड़ी मेहनत करते हो तो ये गर्भपात का कारण बन सकता है इसलिए गर्भावस्था के दौरान भारी सामान न तो उठाए और न सरकाए।

5. ज्यादा काम और ज्यादा आराम न करे

कामकाजी महिलाएं सारा दिन न तो एक जगह पर बैठी रहें और न ही देर तक खाड़ी रहें। कुछ देर उठ कर टहल लें। जब उठे, तो शरीर को starch करें।

शुरू से दर्द रहा है, तो हल्की मालिश ले सकती हैं। दर्द वाले स्थान पर गरम पानी से सिकाई करें। डॉक्टर की सलाह पर Pelvic support belt पहन सकती हैं। हल्की-फुल्की व्यायाम रोज करें। जब बैठे, तो कमर के पीछे तकिया लगाए। आरामदायक जूते पहने, पूरी नींद ले।

अगर गुप्तांग में खुजली की समस्या है, खुजली परेशान कर रही है, तो अपने पेशाब की जांच करा के संक्रमण की जांच कराए। अगर कुछ न निकले, तो समझें कि ऐसा vagina PH level में आ रहे बदलावों की वजह से हो रहा है। यह सामान्य बात है। इस खुजली से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा में पानी मिला कर पेस्ट बनाए और प्रभावित हिस्से में लगाए। सफाई का पूरा ध्यान रखें। ख्याल रखें कि योनी हमेशा साफ और सुखा रहे।

गर्भावस्था में क्या-क्या सावधानिय बरतनी चाहिए?

एक औरत तभी पूरी होती है जब वो माँ बनती है। किसी औरत के लिए पहली बार माँ बनना एक अनोखा और चुनौती भरा काम होता है। गर्भवती होने के बाद से महिला के शरीर में कई तरह के परिवर्तन शुरू हो जाते है। यह परिवर्तन पहले महीने से शुरू हो जाते है और प्रसव के बाद के कुछ महीने तक होते है।

पहली बार माँ बन रही महिला के लिए ऐसे समय में घर की बड़ी अनुभवी महिलाओ का साथ होना जरूरी होता है। शहरों में जहां लोग अकेले परिवार में रहते है वहां किसी अनुभवी महिला के न होने से दिक्कत पेश आती है। ऐसे में gynecologist से सलाह लेते रहना चाहिए।

गर्भावस्था में जरूरी सावधानियां

गर्भधारण करते ही माता-पिता को गर्भ में पल रहे भ्रूण की रक्षा के लिए सबसे पहले से-क्स की स्तिथि में बदलाव लाना चाहिए। किसी भी हालत में गर्भ पर या पेट पर दबाव नही पड़ना चाहिए। चौथे महीने से नोवे महीने तक से-क्स की frequency कम कर देना चाहिए। चौथे महीने में जहां से-क्स हफ्ते में एक बार करना चाहिए वही सातवें महीने में एक बार से-क्स करना चाहिए।

गर्भावस्था शुरू होते ही gynecologist से नियमित परामर्श लेते रहना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान माँ को अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है। ऐसे में आहार विशेषज्ञ से अलग-अलग महीने के chart बनवा लेने चाहिए और उसी के हिसाब से नियमित भोजन लेना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान ज्यादा कड़ी मेहनत नहीं करना चाहिए।

अपने मन से कोई भी दवा नही लेनी चाहिए। डॉक्टर के परामर्श से ही दवा लेनी चाहिए। बहुत सी दवाओं का गर्भ में पल रहे शिशु पर विपरीत असर पड़ता है।

गर्भावस्था में योनि से खून आने पर डॉक्टर को जरूर बताए। संक्रमण या घाव होने पर या सफेद और पीला श्राव होने पर गंभीरता से लेना चाहिए और डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

24 हफ्ते से पहले खून का आना गर्भपात (miscarriage) के लक्षण हो सकते है। इसमे कभी खून कम आता है और कभी ज़्यादा मात्रा मे। ऐसे में gynecologist को तुरंत दिखना चाहिए।

दूसरे महीने से कुछ ज़्यादा सावधानिया बरतनी चाहिए जैसे समान उठना नही चाहिए, अधिक सीढ़ियां नही चढ़नी चाहिए, उछल-कूद से भी बचना चाहिए। अगर कोई व्यायाम पहले करती है तो उसे बंद कर देना चाहिए।

चौथे महीने से ऊंचाई पर चढ़ना बंद कर देना चाहिए, दोपहर में आराम करना चाहिए।

छठे महीने से आहार में परिवर्तन कर देना चाहिए। वैसे तो डॉक्टर अलग से vitamin, calcium और iron की गोलियां शुरू कर देते है पर यहां पर चटपटे, मिर्च-मसालेदार भोजन और fast-food से परहेज करना चाहिए।

धार्मिक और ज्ञानवर्धक साहित्य पढ़ना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे का संस्कार बनने लगे। ऐसे दीनो में TV और फिल्मों में भी अच्छे और खुशनुमा सीरियल और फिल्में ही देखनी चाहिए ना की horror और action फिल्में।

8 वां महीना और 9 वां महीना में घर में हल्के-फुल्के काम ही करे। अधिक झुकना नही चाहिए और जितना हो सके लेट कर समय गुजरना चाहिए।

गर्भवती महिला का भोजन कैसा होना चाहिए?

गर्भवती महिला का भोजन संतुलित होना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान महिला के भोजन में iron, calcium, proteins और minerals की जरूरत बढ़ जाती है। गर्भ में पल रहा बच्चा भी माँ के भोजन पर ही निर्भर करता है। गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए iron और calcium बहुत जरूरी होता है। Iron से खून की कमी नही होने पाती है और शिशु का विकास ठीक से होता है। Calcium शिशु की हड्डियाँ निर्मित करता है, इसलिए माँ के ख़ान-पान में calcium भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आइए जानते है की भोजन में किन-किन चीजों से कौन-कौन सा पोषण मिलता है।

1. Iron

पालक, बंधा-गोवी, पुदीना, धनिया, गुड़, किसमिस, मुंग की दाल, काबुली चना, राजमा और सोयाबीन के सेवन से गर्भवती महिला को iron मिलता है।

2. Calcium

Calcium के लिए गर्भवती महिला को दूध या दूध से बनी चीजें खानी चाहिए जैसे पनीर, दही, मक्खन आदि। अंडे में भी calcium काफी मात्रा में होता है। कम से कम एक गिलास दूध जरूर पीना चाहिए। Calcium की कमी से मांसपेशियाँ में ऐठन, हड्डियों और कमर में दर्द होने लगता है।

3. Protein

Protein भी गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए जरूरी है। Protein युक्त भोजन के लिए आप इन चीजों को भोजन में शामिल कर सकती है। चना, सोयाबीन, दूध से बनी चीजें जैसे पनीर, दही, मूँगफली, काजू बादाम, खजूर। मांस और मछली के सेवन से protein की अत्यधिक मात्रा प्राप्त की जा सकती है।

4. Folic acid

Folic acid गर्भ में पल रहे शिशु के दिमाग और spinal code के विकास में जरूरी होता है। यह हरी सब्जियों, मक्‍के के आटे, चावल में पाया जाता है।

5. Vitamin-D

Vitamin-D हड्डियों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। आजकल calcium की tablet में यह mixed रहता है। यह हमें सूरज की रोशनी से पर्याप्त मात्रा में मिलता है। इसलिए नवजात शिशु को कम से कम 15 मिनट के लिए दिन में एक बार हल्के धूप में ले जाना चाहिए।

6. Minerals

गर्भवती महिला को भोजन में minerals भी पर्याप्त मात्रा में लेते रहना चाहिए जैसे phosphorus, copper, iodine, cobalt, zinc आदि। इनसे खून बनता है और मांसपेसिया मजबूत होती है। ये अधिकतर सब्जियों, फलो और अंकुरित अनाज और दालों से प्राप्त होते है।

गर्भावस्था के दौरान होने वाली सामान्य समस्यायें

1. गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर के कई अंगों का रंग सांवला होने लगता है, ऐसा त्वचा के नीचे melanin जमा होने के कारण होता है।

2. गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में कई जगह सफेद धारिया पड़ने लगती है जैसे नाभि के नीचे की और, पेट पर, स्तानो पर, जाँघो पर। ऐसा मांसपेसियो के खिचाव के कारण होता है।

3. गर्भवती महिला के शरीर के कुछ हिस्सों में नसें दिखने लगती है। ऐसा खून के दबाव के कारण होता है। इनमें दर्द भी होता है। ऐसी स्तिथि में अधिक देर खड़े नही रहना चाहिए और लेटते समय पैरो के नीचे तकिया लगा लेना चाहिए।

4. 8 वां, 9 वां महीना में गर्भवती महिला को साँस लेने में दिक्कत आती है। यह गर्भ में पल रहे शिशु का आकर बढ़ने पर होता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है। ऐसी हालत में गर्भवती महिला को आराम अधिक करना चाहिए।

5. गर्भावस्था में महिला का blood pressure low हो जाता है जिसके कारण उन्हे चक्कर आने लगता है और घबराहट होने लगती है। ऐसे में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

6. गर्भावस्था में महिला को शरीर के खुजली और जकड़न की भी सीकायत होती है। ऐसा त्वचा में खिचाव के कारण होता है। नारियल तेल या जैतून का तेल लगाने से ये दिक्कत दूर हो जाती है।

7. कमर दर्द की दिक्कत गर्भावस्था में आम बात है। ऐसा शरीर में protein और calcium की कमी के कारण होता है।

8. गर्भावस्था में शरीर का वजन बढ़ जाता है और कूल्हे की हड्डियों के ढीले होने के कारण होता है। ऐसी स्तिथि में आराम अधिक करना चाहिए।

9. गर्भावस्था में महिला को उल्टी की दिक्कत आती है। यह पेट में भोजन आगे ना बढ़पाने के कारण होता है। इस वजह से पेट का फूलना, गैस बनाना, हाजमा कमजोर होना, अम्लता आदि की समस्या आती है। ऐसे में खाना थोड़ा-थोड़ा करके खाना चाहिए। तुलसी की चाय, green tea, इलायची खाने से आराम मिलता है।

10. गर्भावस्था के दौरान खून का दौरा कम हो जाता है ऐसे में हाथ पैर सुन्न होने लगते है। इन दीनो ढीले कपड़े पहनने चाहिए। ज़्यादा दिक्कत होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

11. गर्भावस्था के दौरान महिला को खट्टा, ईमली, कच्चे आम, मिट्टी खाने का मन करता है। यह शरीर में protein और minerals की कमी के कारण होता है।

12. गर्भावस्था के दौरान नींद कम आती है। यह भविष्य की चिंता के कारण भी होता है। मानसिक चिन्ताओ के बारे में घरवालों से सलाह लेनी चाहिए। चाय-कॉफी का प्रयोग कम कर देना चाहिए। तेल की हल्की मालिश और गर्म पानी से पिंडलियों की सिकाई से भी नींद अच्छी आती है।

13. गर्भावस्था के दौरान पैदल चलना और साफ हवा में सास लेना अच्छा व्यायाम है। तेज नही चलना चाहिए और heel नही पहनना चाहिए।

14. गर्भावस्था के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, तंबाकू या शराब गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ज़्यादा हानिकारक होता है।

15. गर्भावस्था में अपने से कोई भी दवा नही लेनी चाहिए। डॉक्टर के सलाह से दवा लेनी चाहिए।

16. गर्भावस्था के दौरान महिला के blood pressure पर हमेशा निगाह रखनी चाहिए। Blood pressure अधिक हो जाने पर गर्भपात भी हो सकता है।

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