असंतोष का कारण है ईर्ष्या – The reason for dissatisfaction is jealousy

दुनिया में अगर कोई हमारा competitor या हमउम्र का व्यक्ति हमसे ज्यादा सफल (success), ज्यादा प्रतिभाशाली (brilliant) या ज्यादा सम्मान का पात्र बनता है तो मन में सहज यह भाव आते हैं कि यह सब मेरे साथ क्यों नहीं? ये खुशियाँ मेरी क्यों नहीं? हमारे पास क्या है, इसे देखने के बजाय, दूसरे के पास क्या है – यह जानने के लिए व्यक्ति ज्यादा लालायित  होता है।

दूसरों की सम्पत्ति, सफलता और शोहरत देखकर उसे भी यह लगता है कि यह सब उसके पास भी हो, क्योंकि यह सब हासिल करना आसान नहीं होता और इसमें समय भी लगता है, इसलिए व्यक्ति के अन्दर ईर्ष्या (jealousy) का बीज पनप जाता है।

ईर्ष्या का बीज ऐसा होता है जो हर पल पनपता है और इस क्षण व्यक्ति को यह याद दिलाता है कि वह दूसरों से थोड़ा कम है, दूसरे उससे थोड़ा अधिक है। इस तरह हर समय व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों से करता रहता है, हर चीज में वह तुलना करता है, खुद को अधिक स्तर (level) पर जानकर खुश होता है और कम स्तर पर जानकर दुखी होता है।

तुलना के मूल में ईर्ष्या का बीज ही छिपा होता है, जो लगातार विकसित होता रहता है। जितनी ईर्ष्या बढती है, व्यक्ति उतना ही परेशान होता है।

हमारे आस-पास जो कुछ भी है और हमारे पास जो है, उसमें अंतर है, समानता नहीं है। यह अंतर ही व्यक्ति को बेचैन करता है। सबसे पहले व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि जो भी अच्छी चीज है, वह उसी के पास हो, अन्य किसी के पास नहीं हो और अगर वह अच्छी चीज दूसरों के पास उसे मिल जाती है तो वह उसमे मन ही मन चिढ़ने लगता है। उसके पास है, मेरे पास क्यों नहीं?

वह विचार ही उसके दिलो दिमाग पर इस कदर छा जाता है कि उसके जीवन को ही तहस-नहस कर देता है। ऐसा व्यक्ति कभी अपने विकास के बारे में एकाग्रचित (concentrated) नहीं हो पाता और न ही इच्छित लक्ष्य तक पहुँच पाता है।

ईर्ष्या व्यक्ति के मन में पनपने वाला विचार या भाव मात्र नहीं होता, बल्कि यह उसके जीवन जीने की प्रक्रिया का एक अंग बन जाती है। इसके कारण व्यक्ति हर समय दूसरों से अपनी तुलना करता रहता है और इस कारण उसकी सोचने-समझने की शक्ति, imagination power, creative power ही कुंठित (dull) पड़ जाती है।

इस ईर्ष्या के कारण व्यक्ति का self-confidence लड़खड़ा जाता है और फिर वह अपने जीवन से मात्र शिकायतें ही शिकायतें करता रहता है। इसे एक तरह से मानवीय स्वभाव की विकृति (distortion) भी कहा सकते हैं कि एक व्यक्ति को दूसरे की तरक्की रास नहीं आती।

असंतोष का कारण है ईर्ष्या – The reason for dissatisfaction is jealousy

ईर्ष्यावश व्यक्ति को यह लगने लगता है कि उसके अलावा बाकी अन्य सभी उससे बेहतर हैं, उन्नत हैं। लेकिन जिस समय व्यक्ति इस सोच को जिंदगी का सच मान लेता है, वह अपनी अवनति की ओर बढ़ जाता है, क्योंकि उसकी उर्जा दूसरों से अपनी तुलना करने में, नकारात्मक सोचने में और केवल अपनी कमियाँ देखने में व्यय होती है। वह यह सोच ही नहीं पाता कि अपनी इस तरह की निम्न सोच से कैसे उभरा जाए और किस तरह कुछ अच्छा किया जाए?

ईर्ष्यालु व्यक्ति कभी भी अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होता, असंतोष उसे हर पल घेरे रहता है। हर पल – हर समय दूसरों से आगे बढ़ने की चाहत उसे चैन से बैठने नहीं देती।

एक सफलता मिलने के बाद भी उसे ऐसा लगता है कि अगले प्रयास में कहीं वह पिछड़ न जाए, इस तरह ईर्ष्यालु व्यक्ति हमेशा प्रतियोगिता की दौड़ में होता है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण कभी भी अपना शत-प्रतिशत नहीं दे पाता और इस दौड़ में अगर वह पीछे रह जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं।

America के famous Physiologist Dr. Mariam Lepard ने अपनी पुस्तक  ‘ LIFE WITHOUT JEALOUSY ‘ में यह लिखा है कि किसी की सफलता से ईर्ष्या करना अपने आप को संकुचित (limited) करके सोचना है, क्योंकि एक व्यक्ति कभी भी किसी दूसरे की सफलता पर डाका नहीं डाल सकता है और न ही किसी अन्य तरीके से उसे छीन सकता है। सफलता अगर सच में हासिल करनी है तो उसके लिए ईर्ष्या की नहीं, बल्कि अथक प्रयास की जरुरत है।

यह भी देखा गया है कि कुछ माता-पिता अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं कि दूसरों के बच्चे उनके बच्चों से ज्यादा श्रेष्ठ हैं, लेकिन माता-पिता की यह प्रवृत्ति बच्चे के अन्दर ईर्ष्या के भाव को जन्म दे देती है।

इससे बच्चे का self-confidence डगमगाने लगता है और बच्चा या तो कुंठित होकर हिन भावना का शिकार हो जाता है या चालाक व तिकड़मी। हालाँकि माता-पिता ऐसा नहीं चाहते कि उनका बच्चा बिगड़े, चालाकी करे, लेकिन बच्चे के अन्दर ईर्ष्या का बीज बोने का काम यही करते हैं, शुरुवात वही करते हैं।

Germany के एक Thinker Mark Wall के अनुसार – ‘ ईर्ष्या के बिना जीवन जीना एक कला है, जो व्यक्ति को सीखनी चाहिए। जिसने यह सिख सिख लिया और उसके अनुसार अपनी जीवनशैली निर्मित कर ली, उसकी जिंदगी आसान, सहज और आशा से पूर्ण हो जाती है। ‘ हमें लगता है कि दूसरों का जीवन आसान है, उन्हें कोई कष्ट नहीं, सबसे ज्यादा तकलीफ में हम हैं और यही विचार ईर्ष्या को बढ़ावा देता है कि हम अपनी कठिनाइयों के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे, जबकि दूसरे बिना किसी कठिनाई के ही आगे बढ़ते जा रहे हैं। अगर हमारे साथ भी ऐसा होता तो हम भी आगे निकल सकते थे।

असंतोष का कारण है ईर्ष्या – The reason for dissatisfaction is jealousy

एक संदर्भ में एक प्रसंग है कि असंतुष्ट व ईर्ष्यालु व्यक्ति रोज भगवान से प्रार्थना करता था कि उसे उसके कष्टों से मुक्ति दे दो, इसके बदले में वह किसी ओर का कष्ट भोगने को तैयार है। आखिरकार एक दिन स्वप्न में भगवान ने उससे कहा कि अपने कष्टों की पोटली बनाकर वह मंदिर में पहुंचे। जब उसने अपने कष्टों की पोटली लिए मंदिर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी तरह और भी न जाने कितने लोग अपने कष्टों की पोटली लिए आए हुए थे।

वहां मंदिर में यह निर्देश पहले से अंकित था कि सभी अपनी पोटली दीवार के किनारे रख दें और जिसे जो पोटली सही लगे, उठा ले। लेकिन सभी लोगों ने अपनी-अपनी पोटली ही उठाई क्योंकि दूसरों के कष्टों की पोटली अपनी पोटली से ज्यादा भरी प्रतीत हुई, अपने कष्ट तो परिचित थे, ज्यादातर अपनी ही गलतियों के कारण उत्पन्न हुए थे, जबकि दूसरों के कष्टों की पोटली से पूरी तरह अपरिचित था।

ईर्ष्यात्मक जीवन की यात्रा अधूरी होती है, जिसमे जो मिलता है, उसकी कद्र नहीं होती और जो नहीं मिल पाता, उसका विलाप चलता रहता है। इसलिए जरूरी है कि दूसरों की ओर ना देखकर अपनी ओर देखा जाए, क्योंकि हर इंसान अपने आप में औरों से अलग है, विशेष है, उसकी जगह कोई नहीं ले सकता और न ही उसकी पूर्ति कोई कर सकता।

ईर्ष्या तभी मन में प्रवेश करती है, जब हमारी तुलनात्मक दृष्टि होती है और हम उसमें खरे नहीं उतरते। इसलिए अगर तुलना ही करनी है तो अपने प्रयासों से करनी चाहिए कि हम पहले से बेहतर हैं या नहीं, तभी ईर्ष्यारूपी विषबीज को पनपने से रोका जा सकता है और इसका समूल नाश किय जा सकता है।

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