शादी में होने वाले रस्मों के मायने क्या है? क्यों होते है?

सात फेरों में सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमे लेना, एक दूसरे को पान खिलाना, कंगन बंधवाना, लाजा होम करके ध्रुव तारे के दर्शन करना।

विवाह से जुड़ी न जाने ऐसी कितनी ही रस्में है, जिन्हें निभाकर दूल्हा अपनी दुल्हन को डोली में बिठाकर उसके सपनों के गांव ले जाता है। पर ये विधान और रीती-रिवाज़ केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इनके पीछे कई महत्वपूर्ण और दिलचस्प कारण भी है।

शादी के दौरान होने वाले कुछ रस्म जिसके बारे में आप नहीं जानते

1. कंगन बांधना

विवाह का शुभ मुहर्त निश्चित हो जाने के बाद लड़का-लड़की के हाथ में शुभ घड़ी में मंत्रोच्चारण के साथ कंगन बांधा जाता है। कंगन में आम के पत्तो के साथ-साथ मोती बांधे जाते है। इनके अभाव में लोहे की अंगूठी भी बांधी जाती है।

इसमें तीन गांठे लगाई जाती है, जिसका तात्पर्य है कि मैं ऋषिऋण, देवऋण और पित्रऋण से बंध गया हूँ। अब इन्हें उतारना मेरा धर्म है।

कुछ लोग पांच गांठे लगाते है, जिसमे देश और जाती ऋण भी जुड़ जाती है। लोह तरंगे शरीर के लिए काफी लाभदायक मानी जाती है, इसलिए लोहे की अंगूठी बांधी जाती है।

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2. शादी में हल्दी क्यों लगाया जाता है?

शादी में हल्दी लगाने का रिवाज़ काफी दिलचस्प माना जाता है। दूल्हा-दुल्हन दोनों को ही हल्दी लगाई जाती है। हल्दी को सिर्फ एंटीसेप्टिक (antiseptic) ही नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण औषधि (medicine) के रूप में भी जाना जाता है।

हल्दी लगाने का कारण यह है कि हल्दी न सिर्फ त्वचा को रोगमुक्त रखती है, बल्कि इस लगाने से त्वचा में नई चमक और निखार आ जाता है।

3. शादी में नवग्रही तेल का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?

घर के आंगन में गणेश पूजा के साथ सभी देवताओं का आगमन किया जाता है। इसके बाद कलस स्थापना करके नवग्रहों की पूजा की जाती है और उन्हें सुगन्धित तेल आदि चढ़ाया जाता है।

यही तेल लड़के-लड़की के सिर पर लगाया जाता है। इसी को नवग्रही तेल कहा जाता है। लड़के या लड़की के सिर पर सुगन्धित तेल लगाने का भाव यह है कि अभी तक वह ब्रह्मचर्य आश्रम में था।

सुगन्धित तेल उत्तेजना बढ़ानेवाला होता है। इसलिए ब्रम्ह्मचार्य के समय इन्हें लगाना वर्जित था, परन्तु गृहस्तआश्रम में प्रवेश के कारण इन्हें लगाना चाहिए। लड़की को सोभाग्यवती महिलाएं तेल लगाती है, ताकि वो भी सोभाग्यवती रहे।

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4. शादी में घोड़ी चढ़ना का क्या मतलब?

हर लड़की का ख़्वाब होता है कि सफ़ेद घोड़े पर सवार उसका राजकुमार उसे ब्याहने आए। लेकिन दूल्हा घोड़े पर नहीं, बल्कि घोड़ी पर चढ़कर आता है।

इसके पीछे रहस्य यह है कि घोड़ा बहुत चंचल होता है, जबकि घोड़ी स्वभाव से बहुत शांत होती है, जिससे गिरने का खतरा नहीं रहता।

5. अग्नि को साक्षी बनाना

अग्नि को साक्षी मानकर कन्या देना, फिर वर-वधु द्वारा अग्नि परिक्रमा करना, दरअसल इस बात का प्रमाण है कि कोमार्य के समय कन्या के सोम, गंधर्व, अग्नि ये तीन पालक होते है।

एक-एक वर्ष वे अपने अधिपत्य रखकर फिर बाद वाले को सोप देते है। कोमार्य में अंतिम पालक अग्निदेव होते है।

उनको स्थापित करके, उनको साक्षी बनाकर यह भाव प्रकाशित किया जाता है कि वही अग्निदेव अपने आश्रित कुमारी कन्या को उसके जीवनसाथी के अधिपत्य में दे रहे है। अब पति ही कन्या का पालक है।

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6. शादी में अग्नि की परिक्रमा क्यों होती है?

वर-वधु हवन द्वारा अग्नि की पूजा करके उसकी परिक्रमा करते है। सात बार परिक्रमा करने का विधान है। जिस सात फेरे कहते है।

पहली तीन परिक्रमा में स्त्री आगे होती है। पहले जब स्त्री मंडप में आती है, तब वह वर के दाहिनी तरफ बैठती है। इसका कारण यह है कि उस समय तक स्त्री पर पुरुष का पूर्ण अधिकार नहीं होता।

इस अवसर पर कन्या पति की सहायता से अपने कन्यात्व को समाप्त करने के लिए लाजा होम करती है। चौथी परिक्रमा में कन्या शेष लाजों का होम करके अपने कन्यात्व को समाप्त कर देती है। इसके बाद वह पति की भार्या बन जाती है। इसलिए चौथी परिक्रमा में वह पति के पीछे चलती है।

पहली तीन परिक्रमाओं का तात्पर्य धर्म, अर्थ और काम से है। धर्म के कार्य में स्त्री पुरुष से आगे रहती है अर्थात वह अधि धर्म परायण होती है।

अर्थ यानि धन के संचय में भी स्त्री पुरुष से अधिक कुशल होती है। काम के विषय में वह पुरुष से ज्यादा कुशल जानकर होती है, इसलिए वह तीन परिक्रमाओं तक पुरुष से आगे होती है।

चौथी परिक्रमा मोक्ष की है और स्त्री मोक्ष की है और स्त्री मोक्ष में मार्गदर्शन नहीं कर सकती, इसलिए चौथी परिक्रमा से पुरुष आगे आ जाता है और स्त्री पीछे चलने लगती है।

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7. चौथी परिक्रमा के बाद बाएँ बैठने का रहस्य

स्त्री को बाएँ ओर बैठने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसलिए उसे वामांगी कहा जाता है और उसे दृढ़ अंगों वाले पुरुष से रक्षा की अपेक्षा रहती है।

शरीर के अंदर कोमलतम तथा प्रेम का आधार अंग हृदय होता है, जो शरीर की बाई ओर होता है। इसलिए स्त्री को बाई ओर बैठाया जाता है।

जब तक उसे पत्नी का दर्जा नहीं मिलता, वह दाहिनी ओर बैठती है। चौथी परिक्रमा के बाद वह पति के पीछे चलने लगती है और समाप्ति के बाद पुरुष के बाई तरफ का स्थान प्राप्त करती है।

8. फेरे के वक़्त सिलबट्टा हटाना

शादी के सात फेरे लेते समय जब एक फेरा पूरा होता है, तब दुल्हन पैर से सिलबट्टे को दबाती है और दूल्हा उसे हटाता है। इसके यह राज है कि दूल्हा दुल्हन की राह में आने वाली हर बाधा को इसी तरह दूर करेगा।

इस रस्म के कारण दुल्हन के मन में दूल्हे के लिए एक खास जगह बन जाती है, जो जीवनपर्यंत रहती है।

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9. शादी में लावा परछना क्यों होता है?

छिलके सहित धान को भूलकर लाजा (लावा) बनाया जाता है। इससे होम किया जाता है, जिसे लावा परछना कहते है। यह होम वर-वधु करते है। दुल्हन का भाई होम के लिए लावा देता है। दूल्हा दुल्हन के कंधे पर हाथ रखकर लावा परिछ्ता है।

इससे निष्कर्ष निकलता है कि लावा जैसे छिलके के अंदर सुरक्षित रहता है, ठीक उसी तरह कन्या अपने पिता के संरक्षण में सुरक्षित रहती है।

विवाह के समय अग्नि के संपर्क में आकर जिस प्रकार लावा अपना छिलका छोड़कर खिल उठता है, ठीक उसी तरह अग्निरूपी पति को पाकर लड़की भी खिल उठती है।

वह अपने पिता के संरक्षण को छोड़ कर पति के संरक्षण में आ जाती है और पिता का अधिपत्य समाप्त हो जाता है।

10. शादी में सिंदूरदान क्यों होता है?

शादी में होने वाले रस्मों के मायने क्या है? क्यों होते है?
शादी में होने वाले रस्मों के मायने क्या है? क्यों होते है?

सिंदूर सुहाग का साक्षी होता है, इसलिए शादी की सबसे खास रस्म सिंदूरदान होता है। दूल्हा स्वच्छ वस्त्र की आड़ में सोने या चाँदी के सिक्के से सिंदूर भरता है।

इसके पीछे यह कारण कि सिंदूरदान दूल्हे के अलावा किसी ओर को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इससे दुल्हन को नज़र लगने का डर रहता है।

इसके अलावा एक और कारण भी बताया जाता है कि सिंदूरदान के समय परिवार और समाज के बड़े-बुजुर्ग वहां उपस्थित रहते है, ऐसे में उनके सामने दुल्हन का घूंघट उठाना मर्यादा के विरुद्ध होता है।

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11. सूर्य-ध्रुव दर्शन

विवाह के अंत में वधु को सूर्य (दिन में शादी होने पर) या ध्रुव (रात की शादी में) के दर्शन कराए जाते है। सूर्य को दिखने के अभिप्राय यह है कि वर भी सूर्य के समान दिर्घ्यु व शतायु हो।

ध्रुव तारे को दिखने का अभिप्राय यह है कि वर-वधु का वैवाहिक जीवन भी ध्रुव तारे की तरह स्थिर रहे। ध्रुव तारे की यही तो ख़ासियत है कि वो अन्य तारों की भांति पूर्व से पश्चिम जाते हुए प्रतीत नहीं होता, बल्कि उत्तर दिशा में एक ही स्थान में बना रहता है।

इसलिए वर-वधु को यही सिख दी जाती है कि अपने वैवाहिक जीवन को इसी तरह स्थिर बनाए रखें, ताकि उनकी ग्रहस्ती की गाड़ी अच्छे से चलती रहे। यह खासकर चंचल स्त्रियों के लिए बनाया गया रिवाज है, ताकि वो एक पतिव्रता पत्नी के धर्म का पालन करे।

12. मुट्ठी खुलवाना

शादी के रस्मो में एक ऐसी भी रस्म है, जहां वर के बाहुबल की परीक्षा होती है।कन्या के हाथ में जुड़ होता है और मुट्ठी बांधी होती है। वर को उसे एक हाथ से खोलना होता पड़ता है।

यदि वो उसे खोल देता है, तो वो शक्तिशाली माना जाता है। अगर मुट्ठी खोल नहीं पाया तो यह माना जाता है की लड़की लड़के पर राज करेगी।

13. शादी में पान खिलाने का रस्म क्यों होता है?

दूल्हा-दुल्हन की विवाह के समय पान खिलाने के परंपरा प्रचलित है। सभी मांगलिक कार्यो में भोजन के बाद पान खिलाया जाता है। पान एक औषधि भी है। इसे नियमित रूप से खाने से पेट सम्बन्धी कई बीमारियाँ भी दूर रहती है।

विवाह के दौरान दूल्हा और दुल्हन को कई तरह के व्यंजन खाने पड़ते है। कई बार कुछ भोज्य पदार्थ कब्ज या गैस की तकलीफ़ देना शुरू कर देती है, ऐसे में नियमित रूप से पान खाने से ऐसी कोई समस्या नहीं और नवयुगल का पेट भी ठीक रहता है।

यही कारण है कि विवाह में दूल्हा-दुल्हन को हर रस्म में अनिवार्य रूप से पान खिलाया जाता है।

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