मरने से क्या डरना? ये तो हमारा दोस्त है जो जरुर आएगा

रामचरितमानस में लिखा है – “बड़े भाग मनुष्य तन पावा, मनुष्य योनी की प्राप्ति मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य है”। ऐसा कहा जाता है सभी देवताओं ने प्रजापति ब्रह्मा से कहा कि ऐसी कोई रचना करें जिसमे हम भी निवास कर सकें।

ब्रह्मा जी ने कई रचना की लेकिन देवताओं को कोई उपयुक्त ना लगी। तब ब्रह्मा जी ने मनुष्य की रचना की, देवता सभी प्रसन्न हो गये और सभी ने अपना वास मनुष्य शरीर में किया।

मनुष्य शरीर बड़ा दुर्लभ है और इसमें देवताओं का वास भी है लेकिन एक ही विडम्बना है कि मनुष्य जन्म लेते ही चार शत्रु हमारे साथ लग जाते है। ये है काल, गुण, कर्म और संस्कार। जैसे ही आत्मशक्ति का सम्बन्ध प्रकृति से होता है वैसे ही चारों शत्रु हमारे साथ ही जन्म लेते है।

काल ऐसा सिद्धांत है जिसकी रचना हुई और उसे कुछ समय तक रहना फिर उसका विनाश। हमारे साथ भी यही होता है प्रकृति से संयोग से जो हमारी रचना हुई उसे एक दिन समाप्त भी होना है।

इसलिए जन्म के साथ ही मृत्यु लग जाती है। और यही सबसे बड़ा दुख मनुष्य को हर समय सताता रहता है। कि मेरी मृत्यु भी होनी है। मेरे से बिछड़ने के विचार सोचते ही हम चिंतित हो जाते है। काल बहुत प्रबल है। लेकिन अगर हम काल का ठीक तरह से संयोजन कर लें तो काल भी हमारा मित्र हो जाएगा, हमारे जीवन में श्रेयस प्राप्त करने में हमारी सहायता करेगा।

काल अनेक रूप से हमारे जीवन में आता है। मृत्यु जो काल ही है का स्वरूप हम जान जाए तो मृत्यु का भय ही नहीं रह जायेगा।

आप एक पुराने कमरे में रहते है। वह जगह-जगह से गिर गया है। किसी भी ऋतू (season) में मेरी रक्षा नहीं कर पाता एक व्यक्ति आता है मुझे उस टूटे मकान से निकल कर नये मकान में बिठा देता है उसे आप शत्रु कहेंगे या मित्र?

मृत्यु का यही काम है मेरे शरीर जिसमे जीव निवास करता है, बीमारी या अन्य कारणों से रहने उपयुक्त नहीं रहता, मृत्यु मुझे ऐसे शरीर से निकाल कर नए शरीर में बिठा देती है। इसलिए मृत्यु शत्रु नहीं बल्कि हमारी शुभ चिंतक है।

काल की गति के कारण तीन भागों में बाँट सकते है – भूत काल, भविष्य काल और वर्तमान काल। भूत काल जो बीत गया, भविष्य जो आने वाला है, वर्तमान जो मेरे सामने है।

भूत जो हो गया उसमे मैं कुछ भी नहीं कर सकता। जो बीत गया सो बीत गया। भविष्य जो आने वाला कल है। मैं भविष्य काल के लिए योजनाएं बनाता रहूँ लेकिन क्या हो पाएगा कोई निश्चय नहीं। वर्तमान मेरे हाथ में है। इसलिए वर्तमान जिन्होंने ठीक से बना लिया उनके भूत, भविष्य भी ठीक हो गये।

हम नहीं जानते कि वर्तमान को कैसे जियें, कैसे हमारा वर्तमान सुन्दर बने। एक बड़ा बेहतरीन उपाय भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि जो कुछ भी करते हो मुझे सौंप दो अपना वर्तमान किसी समर्थ गुरु को सौंप दो। बस आपका वर्तमान, भूत और भविष्य बहुत सुन्दर हो जायेंगे जो अवस्था कठिन साधना से प्राप्त नहीं होती वह सहज में आपको प्राप्त हो जाएगी।

गुण और काल के संयोग से काल 4 भागों में बाँटा है – सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग। सतयुग काल का वह खण्ड है जहाँ सत प्रधान है, सत के परमाणु है। लेकिन विज्ञान का सिद्धांत है यहाँ सृष्टि का निर्माण धनात्मक (positive) तथा ऋणात्मक शक्तियों (negative energy) से हुआ। धनात्मक सत (आत्मा), तम (प्रकृति) ऋणात्मक शक्तियां है। इन दोनों का होना आवश्यक है। अत: सत में भी तम के परमाणु रहते है।

सतयुग में सत प्रमुख था तम के परमाणु कम थे जैसे-जैसे तम के परमाणु बढ़ते जाते है सत के कम होते जाते है वहां वे युग, त्रेता, द्वापर के रूप में आते रहते है लेकिन कलयुग वह है जहाँ तम प्रमुख है सत गौण। ये चारों युग सृष्टि के काल खण्ड है ये चरों क्रमबार सृष्टि के प्रारंभ से आज तक चल रहा है। लेकिन सन्तों के अनुसार ये चार अवस्थाएं है जो गुणों के अनुसार हर व्यक्ति पर आती रहती है।

महात्मा गोस्वामी जी ने उन्हें अवस्थाएं माना है। ये अवस्थाएं हर व्यक्ति पर आती रहती है। कभी हम सत में होते है खूब अच्छा ध्यान लगता है, शरीर हल्का रहता है। तभी तम का प्रभाव हुआ विचार आ रहें है जाने कहां-कहां के, आलस्य है ध्यान में मन नहीं लगता यह तम की अवस्था है इसे कलयुग कहा गया है।

इसी समय के लिए गोस्वामी जी ने लिखा है – ‘कलयुग केवल नाम अधारा, जब घोर आलस्य तथा प्रमाद की अवस्था होती है तब मन स्थिर नहीं होता ऐसी अवस्था में गुरु महाराज ने प्रार्थना का प्रावधान किया। प्रार्थना में एक विशेष गुण होता है जैसे हम मोटर कार स्टार्ट करते है तब उसे neutral गेअर में लाते है तब कार स्टार्ट होती है ऐसे ही प्रार्थना से होता है। प्रार्थना था मन अशांत था अब वह धीरे-धीरे शांत हो रहा है।

संसार निकलता जा रहा है, शास्त्रों ने भी उपासना से पहले कर्म रखा है। उपासना में जाने से इस तमो गुणों अवस्था से ऊपर उठते जायेंगे, फिर मन शांत होगा, ध्यान लगेगा। हम इस काल रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त कर लेंगे।

दुख क्यों आते है? क्या है इसकी वजह

हमारा निर्माण प्रकृति और आत्मा के संयोग से हुआ है। आत्मा में अतोगुण प्रधान है तथा प्रकृति में तमोगुण प्रधान है। सत में शांति है तम में शांति है लेकिन जब आत्मा और प्रकृति का मिलन हुआ तो इनके गुणों सत और तम का भी मिलन हुआ। आत्मा और प्रकृति के मिलन से जीव का निर्माण हुआ इसी प्रकार सत और तम के मिलन से रजोगुण बना।

जीव के जन्म के साथ ही रजोगुण का जन्म होता है रजोगुण में चंचलता है। रजोगुण से जीव में क्रिया होती है। प्रकृति से शरीर का निर्माण हो गया इसमें आत्मा की शक्ति ( उर्जा ) आ गई साथ ही रजोगुण ने ऊर्जा का शरीर में संचार कर दिया।

जैसे एक कारखाना लगाया। मशीनें मंगा ली तथा सब लग गई। बिजली का कनेक्शन मिल गया। कारीगर ने स्विच ऑन कर दिया तो मशीनें तो अपने-अपने कार्य में लग ही जाएँगी। लेकिन कारखाने का मालिक चाहेगा कि मशीन मेरे हिसाब से काम करे। उस मशीन से मालिक का हित सधा है।

ऐसे ही शरीर कारखाना है, मशीनें इन्द्रियां है, ऊर्जा आत्मा है। काम तो इन्द्रियां करेंगी लेकिन हमारा अहं इसका मालिक बन बैठा है। अत: वह अपने हित के अनुसार काम करता है। कर्म तो मशीन का सहज कर्म था लेकिन अहं के करण उसमें फल का विचार लग गया।

अब वह सहज कर्म ना होकर सकाम कर्म हो गया। सकाम कर्म का संस्कार बनता है। संस्कार बंधन है। हमारा कर्म बंधन से बांधने वाला हो गया। संसार में आयेंगे कर्म करेंगे कर्म का संस्कार बनेगा। हमारा बंधन जन्म और मरण फिर जन्म फिर मरण। क्या हमें कभी श्रेयस की प्राप्ति नहीं होगी कभी मुक्ति नहीं मिलेगी?

भगवान कृष्ण ने इस कर्म को बंधन से मुक्त करने के कुछ उपाय बतलाए है। हमारा निष्काम हो फल की आकांक्षा ना हो। कर्म करना आवश्यक है, बिना कर्म किए रहना संभव नहीं तन से नहीं करेंगे मन से करेंगे, अहं संग होगा तो फिर निष्काम कर्म कैसे हो जब प्रकृति से जुड़े तब तक अहं रहेगा ही। एक सरल उपाय और बतलाते है कि हमारे कर्म जन साधारण के हितार्थ हों सेवा भाव से हों।

ऐसे कर्मो को गीता ने यज्ञ कर्म कहा है अपने ह्रदय का विस्तार कर लेता है। जहाँ जाती, धर्म, सम्प्रदाय ही नहीं यहाँ जड़ जंगम में हमारे ह्रदय में समा जायें। सभी के लिए प्रेम सभी के लिए सेवाभाव बस कर्म के सारे विकार निकाल जायेंगे। जो हमारे साथ जन्म से चार शत्रु काल, कर्म, गुण तथा संस्कार है सभी हमारे मित्र हो जायेंगे। जीवन में श्रेयस प्रदान कराने में हमारी सहायता करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *