
हम और हमारा भोजन – We And Our Food, in Hindi. यह प्रथा चली आई है कि जब कुछ खाये तो भगवान को अर्पण करें। इसका वैज्ञानिक अर्थ तो कम ही लोग जानते हैं लेकिन इतना सच है कि हमारे ऋषियों ने दो तरह का भोजन बताया एक शाकाहारी और दूसरा मांसाहारी।
आज से 20-25 साल पहले से मनोविश्लेषकों ने यह निष्कर्ष निकालने की कोशिश की है भोजन और अपराधी प्रकृति में क्या संबंध है। उन्होंने ये पाया कि जो भोजन शाकाहारी भोजन कहा जाता है, उसको खाने से मस्तिष्क में जो amino acid निकलती है, रासायनिक पदार्थ निकलते हैं, वह इंसान को शांत बनाते हैं।
इसके विपरीत उसी रिसर्च में यह भी पाया कि माँस-मछली मांसाहारी भोजन किया जाता है तो उनके द्वारा जो मस्तिष्क में रासायनिक पदार्थ amino acid पहुँचती है वह दूसरी होती है, वह इंसान को चंचल बनाती है। चंचल मनुष्य ही अपराधी प्रवृत्ति का अधिक होता है। जो हमारे ऋषियों ने कहा था कि साधक को शाकाहारी भोजन करना चाहिए वह इसीलिए था कि भोजन के साथ हमारा मन शांत रहे, हम साधना में अच्छी तरह लग सके।
खाना खाने से पहले भोजन को क्यों भगवान को अर्पण करते हैं ? – Why do food offerings to God before eating?
दूसरी बात जो हमारे ऋषियों ने बताई थी कि भोजन करने वाले के अलावा भोजन बनाने वाले और परोसने वाले के विचार भी उस भोजन को प्रभावित करते हैं। लेकिन यह प्रभाव उन्ही के लिये होता है जिनका मन शांत और निर्मल होता है।
एक उदाहरण है स्वाधीनता से पहले का। एक लड़का था जिसको फांसी की सजा देश-विद्रोह के नाम पर दी गई थी, जैसा रिवाज है, जब उसको फांसी लगने वाली थी तो जेलर ने आकर उससे पूछा कि आपकी जो अंतिम इच्छा है वह बता दीजिए वह पूर्ण कर दी जाएगी।
उस लड़के ने कहा कि मैं गीता सुनना चाहता हूं। उसके पिता आनंद स्वामी बहुत बड़े विद्वान थे, धार्मिक विचारों के थे। उनको कहा गया कि आप ऐसा प्रबंध करें कि आपके पुत्र को गीता सुनाने के लिये जेल में कोई रोज आ जाया करे। वह बोले कि इस कार्य को तो मैं खुद ही करूँगा।
वह रोज पुत्र को आकर गीता सुनाते और वह प्रसन्नता से सुनता परन्तु एक दिन क्या हुआ कि जब आए तो पुत्र का चेहरा काला पड़ा हुआ था, चेहरे पर आंसुओं के निशान थे। वह बोले पुत्र आज क्या बात है क्या तुम मृत्यु के भय से डर गये। लड़का बोला कि नहीं पिताजी मृत्यु से तो मुझे कोई डर नहीं, मैं देश के लिये क़ुर्बान होना चाहता हूं। लेकिन आज मैंने एक बहुत बुरा सपना देखा इसलिए दुखी हूं।
आनंद स्वामी ने पूछा कि बेटा क्या सपना देखा ? उसने कहा कि आज मैंने सपने में देखा कि मैं अपनी माँ की छाती में छुरा भोंक रहा हूं। आनंद स्वामी बोले कि तुम्हारे कल की दिनचर्या में क्या परिवर्तन हुआ था। वह मुझे बताओ। लड़का बोला कि – सारी दिनचर्या ऐसी ही थी जैसे पहले होती थी परन्तु कल भोजन बहुत सुन्दर मिला।
आनंद स्वामी जेलर के पास गये और पूछा कि कल भोजन के स्वाद में परिवर्तन था, ऐसा क्यों ? उन्होंने कहा कि हमारा जो रसोइया था कल छुट्टी पर गया था। एक दूसरे कैदी से भोजन बनवाया था, इसीलिए वह स्वादिष्ट था।
आनंद स्वामी ने पूछा कि उस कैदी को सजा किस लिए हुई तो उन्होंने कहा कि वह जुआरी था रोज अपनी विधवा माँ से पैसा छिनकर ले जाता था और उस दिन उसने उसका मंगलसूत्र माँगा तो माँ ने माना कर दिया कि या तुम्हारे पिता की अंतिम निशानी है, इसको मैं नहीं दूंगी। तो उसने सब्जी काटने के छुरे से ही उसकी हत्या कर दी।
इस प्रसंग से हमको पता लगता है कि बनाने वाले के विचार भी भोजन में आते हैं। इसी तरह से भोजन परोसने वाले के विचार भी आते हैं। इन सबसे आपने को बचाने के लिये हमारे ऋषियों ने एक ही उपाय बताया था। वह था कि इसको ईश्वर या गुरु को अर्पण करके खाये तो इसका दुष्प्रभाव कम हो जाता है। इसीलिए हमारे यहाँ की यह प्रथा है कि जब भी जल पीयें या कुछ खाये तो मन ही मन गुरु या ईश्वर को अर्पण करें।
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