अच्छा व्यवहार ही अच्छी सोच लाती है – प्रेरक बातें

महात्मा के कपड़े मत देखो, उसकी योग्यता मत देखो, उसकी आयु मत देखो, बस उसका व्यवहार देखो। जो व्यवहार ठीक जनता है, वही महात्मा है। व्यवहार में मनुष्य को दूसरे कर्तव्य नहीं देखना है। बल्कि उसे यह देखना है कि उसे क्या करना चाहिए। कुछ लोग अच्छे व्यवहार के बदले भी अच्छा व्यवहार नहीं करते, कुछ लोग अच्छे का अच्छा, बुरे का बदला बुरा दोनों देने को तैयार रहते हैं, लेकिन कुछ मनुष्य ऐसे भी हैं जो बुरे व्यवहार के बदले में भी भला व्यवहार करते हैं।

अच्छी सोच कि वजह है अच्छा व्यवहार

अच्छा व्यवहार ही अच्छी सोच लाती है - प्रेरक बातें

व्यवहार में सौदा नहीं होता, जैसे का तैसा भी नहीं दिया जाता। तुम बहुत प्यारे थे, किसी ने एक गिलास पानी देकर तुम्हारी जान की रक्षा की तो तुम उसके बदले में एक गिलास पानी देकर बदला चुका दोगे? कोई-कोई आपके साथ ऐसा व्यवहार कर गये होंगे कि तुम सोच रहे हो कि इसका क्या बदला दें।

तुम क्या किसी की निष्काम सेवा का बदला चुका सकोगे? वह तो एक धर्म है, बस तुम्हें अपने धर्म का पालन करना है। वही व्यवहार में आना चाहिए।

ये भी जाने- व्यवहार क्या है? Behaviour कैसा होना चहिये?

व्यवहार तभी पूरा होगा, जब हम दूसरों से द्वेष और घृणा करना त्याग दो। घृणा और द्वेष हमारे अंदर एक गन्दगी है। तुम्हारे पास कोई गंदी वस्तु है तुम उसे अच्छे कपड़ों में छुपाये हुए हो, पर उसकी दुर्गन्ध तो छिपेगी नहीं, जब वह दुर्गन्ध फैलेगी तो लोग तुमसे अलग बैठेंगे। सैंकड़ो उपाय करो, दुर्गन्ध जायेगी नहीं, जायेगी तभी जब तुम गन्दगी को दूर फेंक दोगे।

मैं पवित्र हूं, तुम्हारे स्पर्शमात्र से मैं अपवित्र हो जाऊँगा ऐसा कहने से यह कह दें अधिक उपयुक्त है कि मैं गंदा हूं, मुझे मत छुओ। दूसरों के लिये कहना कि मैं पवित्र हूं, मुझे मत छुओ, बड़ा भारी पाप है और पाप तो संभव है क्षमा भी कर दिये जायेंगे मगर यह तो महान पाप है और ईश्वर उसे क्षमा नहीं करेंगे। क्योंकि यह पाप ईश्वर के प्रति ही किया जा रहा है। क्या बिना ईश्वर के कोई यहाँ जीवित रह सकता है?

अरे, दिन-रात तो हम ऊँच-नीच में लगे ही रहते हैं, लेकिन एक क्षण भी तो ऐसा लाओ कि सबको समानता से देख लो, पशु भी वैसा ही देखता है, मनुष्य भी वही देखता है, परन्तु एक अंतर है – जानवर न मालिक का खेत जानता है, न पराया, खाता चला जाता है, वह नहीं जनता कि यह माँ है, बहन है या भाई है या मित्र है, न चाहा व्यवहार करता है। किस पर दया करनी चाहिए, यहाँ मेरा हक है या नहीं, वह कुछ नहीं देखता। मनुष्य वह है जो यह सब देखता है।

मनुष्य कितना भी पढ़ जाए, कितना ही धनि और वैभवशाली हो जाए परन्तु वह अपने मन के दोष को कदापि नहीं देख सकता क्योंकि उसका यह स्वभाव ही है कि वह अपने दोषों पीछे की ओर डालता है और शुभ कर्मो को आगे रखता है।

संसार में यदि किसी को भी यश मिला है, अच्छे विचार से ही मिला है, कोई विशेष गुण प्राप्त हुआ तो निश्चय ही समझो कि इसने किसी सतपुरुष का संग किया है क्योंकि मनुष्य एक स्वच्छ वस्त्र के समान है, जैसा रंग चढ़ा दिया, वैसा ही हो जायेगा।

जरुर पढ़ें- सबके साथ अच्छा व्यवहार करना ही हमारा पहला धर्म है

मानव रोटियों के बिना इतना दुखी नहीं है, वस्त्र और धन के बिना भी इतना दुखी नहीं है जितना वह अपने अशुद्ध विचारों से दुखी है। यदि तुम किसी के साथ बड़ा सा उपकार करना चाहते हो तो उसे उत्तम विचारों की ओर लाओ, यह महान पुण्य है।

यदि तुम शहर में घूमने जाओ तो कुछ स्थान ऐसे मिलते हैं जिनमें कुछ सुगन्धि आ रही है, चित्त प्रसन्न होता है, अच्छे विचार आते हैं, मन सोचता है यहाँ कोई देवालय है, ईश्वर की और ध्यान जाता है फिर आगे गन्दगी का स्थान है, दुर्गन्धि से अन्तर भर जाता है, आपका ध्यान अवश्य बदल जाता है, यहाँ में कैसे आ गया, जल्दी निकल।

ऐसे ही यदि कोई अच्छे विचार ही संसार में भेजता रहे तो वह एक बड़ा पुण्य का काम कर सकता है। वह संसार के दुखों से बचा सकता है और खुद भी सुखी रह सकता है।

यदि तुक किसी संत या ईश्वर की बात सुनना चाहो तो अपने अंदर का कोलाहल बंद करना होगा। आत्मा की बात सुनने के लिए दुनिया की बात सुनना छोड़ दो, ऐसे ही जब तुम कुछ क्षण संसार में देखना बंद कर दो ईश्वर को भी देख सकते हो।

वायुमंडल के दूषित होने पर हवन, यज्ञ आदि द्वारा वायु को शुद्ध करते हैं, ऐसे ही चित्त का भी मंडल है, उसका भी घेरा है, उसके दूषित होने पर, वहां विचारों में दोष आ जाता है और आदमी अच्छा सोच भी नहीं सकता और जब अच्छा सोच नहीं सकता तो फिर सुन्दर काम कर कैसे सकता है?

जहाँ सुन्दर विचार हैं, वह स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा होता है। विचारों से ही दुख है, विचारों से ही सुख है और ऊँचे विचार ही मनुष्य को परमेश्वर के निकट पहुँचाने का अवसर दिया करते है। जिनके विचार गंदे हैं वह नरक के प्राणी हैं।

ये भी जाने-

सुन्दर विचार मनुष्य की वह हड्डी है जिसको जीवन के किसी भी काल में, किसी भी देश में और किसी भी अवस्था में भुलाकर हर प्रकार का सुख व शांति प्राप्त की जा सकती है।

जहाँ मनुष्य को अपनी विद्या भी सुख नहीं दे सकता, वहां सद्विचार उसे माता के समान सुख देते हैं। जैसा पानी समुद्र में मिलता है, धुप सूर्य से, अन्न धरती से, ऐसे ही सद्विचार भी सतपुरुषों के द्वारा ही मिलते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top