बचपन के दिन कितने सुहाने होते है- निबंध

बचपन के दिन कितने सुहाने होते है- निबंध, Hindi essay: बचपन, जवानी और बुढ़ापा – जीवन की इन तीनों अवस्थाओं में बचपन सबसे प्यारी अवस्था है। जिस तरह सुबह सुहावनी होती है, उसी तरह बचपन भी बड़ा मधुर और सुहावना होता है। बचपन में किसी बात की चिंता नहीं होती। जिम्मेदारी नाम की चीज का तो पता ही नहीं होता। सुबह आराम से उठना, खाना और खेलना, यही तो बचपन के तीन काम हैं। कुछ घंटे स्कूल में बिता आयें तो बहुत बड़ी बात है। वहां भी पढ़ाई के नाम पर खेल-कूद और मौज-मस्ती ही होती है।

बचपन में ही तो हम पर सबके प्यार की बरसात होती है। दादाजी अपने साथ बाजार ले जाते हैं और जो मांगते हैं वह दिलाते हैं। दादीजी परियों की कहानियां सुनती है। माँ की गोद किसी राजा के सिंहासन से कम नहीं लगती दीदी कॉलेज से आती है तो चॉकलेट लाना नहीं भूलती। पिताजी बाजार जाते हैं तो कोई खिलौना जरुर लाते हैं और गुड़िया नाचने लगती है। कितना मजा आता है उन खिलौनों की हरकतें देखकर।

बचपन भेद-भाव करना नहीं सिखाता। ऊँच-नीच का ख्याल ही मन में नही आती। जो हमउम्र मिला उसे गले लगा लिया। बचपन में मन की निर्मलता में जाती-पांति, भाषा और प्रांत के भेद मिट जाते हैं। एकता के सुगन्धित फूल तो बचपन की फुलवारी में ही खिलते हैं।

जन्मदिन मनाने की जो ख़ुशी बचपन में मिलती है, वह बाद में फिर कभी नहीं मिलती। उस दिन घर की सजावट देखने योग्य होती है। माँ बढ़िया-बढ़िया पकवान बनती है। मैं नए कपड़ों में किसी राजकुमार से कम नहीं लगता। केक काटने के बाद ‘ Happy Birthday To You ‘ की ध्वनि से घर गूंज उठता है। मित्रों की बधाइयाँ और बड़ों का आशीर्वाद मिलते हैं। तरह-तरह के उपहार पाकर जन्मदिन की ख़ुशी दोगुनी हो जाती है।

सचमुच, बचपन के दिन इतने सुहावने होते हैं कि उन्हें हम कभी नहीं भूल सकते।

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